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उच्चारण आघात के साथ होता है। स्वराघात-संबंधी कुछ नियम नीचे दिये जाते हैं---


( क ) यदि शब्द के अंत में अपूर्णांचरित अ आवे तो उपांत्य अक्षर पर जोर पड़ता है; जैसे, घर, झाड़, सड़क, इत्यादि।


( ख ) यदि शब्द के मध्य-भाग में अपूर्णाञ्चरित अ आवे तो उसके पूर्व- वर्ती अक्षर पर आघात होता है, जैसे, अनबन, बोलकर, दिनभर !


( ग ) संयुक्त व्यंजन के पूर्ववर्ती अक्षर पर जोर पड़ता है; जैसे, हल्ला,आज्ञा, चिता, इत्यादि ।।


( घ ) विसर्ग-युक्त अक्षर का उच्चारण झटके के साथ होता है; जैसे, दुःख, अंतःकरण ।


( च ) यौगिक शब्दों में मूल अवयवों के अक्षरों को जोर जैसा को तैसा रहता है; जैसे, गुणवान् , जलमय, प्रेमसागर, इत्यादि ।


( छ ) शब्द के आरंभ का अ कभी अपूणोंचरित नहीं होता; जैसे घर, सड़क, कपड़ा, तलवार, इत्यादि ।

५७-संस्कृत ( वा हिंदी ) शब्दों में इ, उ वा ऋ के पूर्ववर्ती स्वर का उच्चारण कुछ लंबा होता है; जैसे, हरि, साधु, समुदाय, धातु, पितृ, मातृ, इत्यादि ।

५८---यदि शब्द के एकही रूप से कई अर्थ निकलते हैं तो इन अर्थों का अंतर केवल स्वराघात से जाना जाता है; जैसे, बढ़ा' शब्द विधिकाल और सामान्य भृतकाल, दोनों में आता है, इसलिए विधिकाल के अर्थ में ' बढ़ा' के अंत्य 'आ' पर जोर दिया जाता है। इसी प्रकार की संबंधकारक की स्त्रीलिंग-विभक्ति और सामान्य भूतकाल का स्त्रीलिंग एकवचन रूप है, इसलिएर क्रिया के अर्थ में 'की' का उच्चारण आघात के साथ होता है ।

[सूचना-हिंदी में संस्कृत के समान स्वराघात सूचित करने के लिए चिह्न का उपयोग भी नहीं होता।]