( ख ) इ और ई की संधि--
इ+इ= ई–गिरि + इंद्र=गिरींद्र,
इ+ई = ई-कपि+ ईश्वर= कपीश्वर।
ई + ई = ई-जानकी + ईश-जानकीश ।
ई+इ=ई–मही + इंद्र=महींद्र ।
( ग ) उ, ऊ की संधि--
उ+ उ = ऊ–भानु + उदय=भानूदय ।
उ+ऊ=ऊ—लघु + ऊर्मि=लधूमि ।
ऊ+ ऊ=ऊ-भू + ऊर्द्ध= भूर्द्ध।
ऊ+ उ==ऊ-वधू + उत्सव= वधूत्सव ।
( घ) ऋ, ऋ की संधि--
ऋ के संबंध से संस्कृत व्याकरणों में बहुधा मातृ ऋण= मातृण, यह उदाहरण दिया जाता है, पर इस उदाहरण में भी विकल्प से ‘भातृण’ रूप होता है। इससे प्रकट है कि दीर्घ ऋ की आवश्यकता नहीं है।
६२-–-यदि अ वा आ के आगे इ वा ई रहे तो दोनों मिलकर ए, उ वा ऊ रहे तो दोनों मिलकर ओ, और ऋ रहे तो अर् हो जाता है। इस विकार को गुण कहते हैं।
उदाहरण ।
अ-+इ=ए-देव+इंद्र= देवेद्र ।
अ+ई =ए–सुर+ईश =सुरेश ।
अ +इ=ए—महा+इंद्र=महेंद्र ।
आ+ई=ए-रमा+ईश-रमेश ।
अ+उ =ओ-चंद्र+उद्य= चंद्रोदय ।
अ+ ऊ=ओ-समुद्र + ऊर्मि= समुद्रोमि ।
आ+ उ =ओ-महा + उत्सव=महोत्सव ।