पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/७४

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( ख ) इ और ई की संधि--

इ+इ= ई–गिरि + इंद्र=गिरींद्र,

इ+ई = ई-कपि+ ईश्वर= कपीश्वर।

ई + ई = ई-जानकी + ईश-जानकीश ।

ई+इ=ई–मही + इंद्र=महींद्र ।

( ग ) उ, ऊ की संधि--

उ+ उ = ऊ–भानु + उदय=भानूदय ।

उ+ऊ=ऊ—लघु + ऊर्मि=लधूमि ।

ऊ+ ऊ=ऊ-भू + ऊर्द्ध= भूर्द्ध।

ऊ+ उ==ऊ-वधू + उत्सव= वधूत्सव ।

( घ) ऋ, ऋ की संधि--

ऋ के संबंध से संस्कृत व्याकरणों में बहुधा मातृ ऋण= मातृण, यह उदाहरण दिया जाता है, पर इस उदाहरण में भी विकल्प से ‘भातृण’ रूप होता है। इससे प्रकट है कि दीर्घ ऋ की आवश्यकता नहीं है।

६२-–-यदि अ वा आ के आगे इ वा ई रहे तो दोनों मिलकर ए, उ वा ऊ रहे तो दोनों मिलकर ओ, और ऋ रहे तो अर् हो जाता है। इस विकार को गुण कहते हैं।

उदाहरण

अ-+इ=ए-देव+इंद्र= देवेद्र ।

अ+ई =ए–सुर+ईश =सुरेश ।

अ +इ=ए—महा+इंद्र=महेंद्र ।

आ+ई=ए-रमा+ईश-रमेश ।

अ+उ =ओ-चंद्र+उद्य= चंद्रोदय ।

अ+ ऊ=ओ-समुद्र + ऊर्मि= समुद्रोमि ।

आ+ उ =ओ-महा + उत्सव=महोत्सव ।