वि+सम = विषम; सु + सुप्ति= सुषुप्ति ।।
( अ ) जिस संस्कृत धातु में पहले से हो और उसके पश्चात् ऋ वा र, उससे बने हुए शब्द का स पूर्वोक्त वर्षों के पीछे आने पर प नहीं होता ; जैसे-
वि +स्मरण ( स्मृ--धातु )= विस्मरण ।
अनु + सरण (स-धातु) अनुसरण ।
वि + सर्ग (सृज्-धातु)= चिसर्ग ।
७७-यौगिक शब्दों में यदि प्रथम शब्द के अंत में न हो तो उसका लोप होता है; जैसे-
राजन्+ आज्ञा=राजाज्ञा; हस्तिन्+ दंत= हस्तिदंत । प्राणिन्+ मात्र=प्राणिमात्र, घनिन्+त्व = धनित्व ।
(अ) अहन् शब्द के आगे कोई भी वर्ण आवे तो अंत्य न के बदले र होता है, पर रात्रि, रूप शब्दों के आने से न को उ होता है, और संधि के नियमानुसार अ+उ मिल कर ओ हो जाता है, जैसे-
अहन् -+गण= अहर्गण; अन् = मुख= अहर्मुख ।
अहन् + रात्र= अहोरात्र, अहन् + रूप = अहोरूप ।
विसर्ग संधि ।
७८-यदि विसर्ग के आगे च वा छ हो तो विसर्ग का श हो जाता है; ट वा ठ हो तो प; और त वा थ हो तो स् होता है; जैसे-
निः + चल= निश्चल; धनुः +टंकार = धनुष्टंकार।
निः + छिद्र = निश्छिद्र , मन.+ताप=मनस्ताप ।
७६-विसर्ग के पश्चात् 'श् , ष् स् आवे तो विसर्ग जैसा का तैसा रहता है अथवा उसके स्थान में आगे का वर्ण हो जाता है, जैसे-~--
दुः+ शासन =दुःशासन वा दुश्शासन ।