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प्रत्यय कहते हैं और चरम प्रत्यय लगने के पहले शब्द का जो मूल रूप होता है यथार्थ में वही शब्द है। उदाहरण के लिए, 'दीनता से' शब्द को लो। इसमें मूल शब्द अर्थात् प्रकृति 'दीन' है और प्रकृति में 'ता' और 'से', दो प्रत्यय लगे हैं। 'ता' प्रत्यय के पश्चात् 'से' प्रत्यय आया है; परंतु ‘से' के पश्चात् कोई दूसरा प्रत्यय नहीं लग सकता, इसलिए 'से' के पहले 'दीनता' मूल रूप है और इसीको शब्द कहेंगे। चरम प्रत्यय लगने से शब्द का को रूपांतर होता है वही इसकी यथार्थ विकृति है। और इसे पद कहते हैं। व्याकरण में शब्द और पद का अंंतर बढ़े महत्व का है और शब्द-साधन में इन्हीं शब्द और पदों का विचार किया जाता है।]

८८—व्याकरण में शब्द और वस्तु*[१] के अंतर पर ध्यान रखना आवश्यक है। यद्यपि व्याकरण का प्रधान विषय शब्द है तथापि कभी कभी यह भेद बताना कठिन हो जाता है कि हम केवल शब्दों का विचार कर रहे हैं अथवा शब्दों के द्वारा किसी वस्तु के विषय में कह रहे हैं। मान लो कि हम सृष्टि में एक घटना देखते हैं और तत्संबंधी अपने विचार वाक्यों में इस प्रकार व्यक्त करते हैं—माली फूल तोड़ता है। इस घटना में तोड़ने की क्रिया करनेवाला (कर्त्ता) माली है, परंतु वाक्य में 'माली' (शब्द) को कर्त्ता कहते हैं, यद्यपि 'माली' (शब्द) कोई क्रिया नहीं कर सकता। इसी प्रकार तोड़ना क्रिया का फल फूल (वस्तु) पर पड़ता है, परंतु बहुधा व्याकरण के अनुसार वह फल 'फूल' (शब्द) पर अवलंबित माना जाता है। व्याकरण में वस्तु और उसके वाचक शब्द के संबंध का विचार शब्दों के रूप, अर्थ, प्रयोग और उनके परस्पर संबंध से किया जाता है।

८९—परस्पर संबंध रखनेवाले दो या अधिक शब्दों को जिनसे


  1. * वस्तु शब्द से यहाँ प्राणी, पदार्थ, धर्म और उनके परस्पर संबंध का अर्थ लेना चाहिए।