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पच्चीसी, शुकबहत्तरी, हितोपदेश, आदि कल्पित विपयों, की पुस्तकों में तथा कल्पित नाटकों और उपन्यासों में जिस सृष्टि का वर्णन रहता है उस सृष्टि के प्राणियों, पदार्थों और धर्मों के नाम भी व्याकरण के सज्ञा-वर्ग में आ सकते हैं । इस दृष्टि से ऊपर लिखे लक्षणों में अव्याप्ति दोष भी है।]

(ख) 'संज्ञा' शब्द का उपयोग वस्तु के लिए नहीं होता, किंतु वस्तु के नाम के लिए होता है। जिस कागज पर यह पुस्तक छपी है वह कागज सज्ञा नहीं है, किंतु पदार्थ है। पर 'कागज' शब्द जिसके द्वारा हम उस पदार्थ का नाम सूचित करते हैं, संज्ञा है। ९८–संज्ञा दो प्रकार की होती हैं--( १ ) पदार्थवाचक, (२) भाववाचक ।

९९—जिस संज्ञा से किसी पदार्थ वा पदार्थों के समूह का बोध होता है उसे पदार्थवाचक संज्ञा कहते हैं, जैसे, राम, राजा, घोड़ा, कागज़, काशी, सभा, भीड़, इत्यादि ।

[ सूचना--इन लक्षणों में ‘पदार्थ' शब्द का प्रयोग जड़ और चेतन, दोनों प्रकार के पदार्थों के लिए किया गया है। ]

१००--पदार्थवाचक संज्ञा के दो भेद हैं-( १ ) व्यक्तिवाचक (२) जातिवाचक ।

१०१—जिस संज्ञा से एक ही पदार्थ वा पदार्थों के एक ही समूह का बोध होता है उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं, जैसे, राम, काशी, गंगा, महामंडल, हितकारिणी, इत्यादि ।

‘राम' कहने से, केवल एक ही व्यक्ति ( अकेले मनुष्य ) का बोध होता है। प्रत्येक मनुष्य, को 'राम' नहीं कह सकते । यदि हम'राम' को देवता माने तो भी 'राम' एक ही देवता का नाम है। उसी प्रकार 'काशी' कहने से इस नाम के एक ही नगर का बोध होता है। यदि 'काशी' किसी स्त्री का नाम हो तो भी इस नाम से उस एक ही स्त्री का बोध होगा । व्यक्तिवाचक संज्ञा चाहे जिस