पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१०५

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खेलाभ खेलाना--क्रि० स० [हिं० खेलना का प्रे० रूप] १. किसी दूसरे को खेवरिया@-संया पुं० [हिं० खेबट ] पार उतारनेवाला । केवट । खेल में लगाना । दे० 'खेलना' १२. खेल में शामिल करना। खेवरियाना-क्रि० स० [देश॰] १.. एकत्र करना । संग्रह करना। जैसे,—जायो, हम अब तुम्हें नहीं खेलावेंगे। ३. उलझाए " 'बटोरना।. . रखना । बहलाना । विशेष-इस शब्द का प्रयोग प्रायः चरवाहे अपनी गोषों के लिये.. मुहा०-खेला खेलाकर मारना-दौड़ा दौड़ाकर धीरे धीरे - करते हैं। . . . ... . .. मारना । सौमत से मारना। उ०--ततिही तोहि खेलाइ २. धता करना । चलता करना ।-( वेश्यां)1 . खेलाई । अवहिं बहुत का कनें बड़ाई।--तुलसी (शब्द०)। खेवा-संशा पुं० [हिं० खेना 1१. वह धन जो केवट को नाव द्वारा खेलार-संक्षा पुं० [हिं० खेल+पार (प्रत्य॰)] खेलाड़ी। उ०- पार उतारने के बदले में दिया जाय । नाव खेने का किराया। - खेलत फागु खेलार खरे अनुराग भरे बड़ भाग कन्हाई।- २. नावं द्वारी नदी पार करने का काम । जैसे,---अभी यह . सुंदरीसर्वस्व (शब्द०)। पहला खेवा है। ३. वार। दफा । अवसर । जैसे, (क) खेलि-संशा स्त्री० [सं०] १. क्रीड़ा । खेल। २ ऋचा। गीत (को०)। . पिछले खेवे उन्होंने कई भूलें की थीं। (ख) इस वेव सेब । खेलिर-संज्ञा पुं० १. सूर्य । रवि । २. इए । वाण। ३. पशु। . - झगड़ा निपट जायगा :....: विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग केवल कार्य प्रादि करने जानवर । ४. पक्षो (को॰) । के.संबंध में होता है! . .:. . खेलुमा-संज्ञा पुं० [हिं० खिलना या खिलना] चमड़ा रंगनेवालों का ४. बोझ से लदी हुई नाव। उ०--राजा का भा अगमन - रकाबी या थाली के आकार का काठ का एक औजार जिससे खेवा । खेवक आगे सुवा परेवा !- जायसी (मान्द०)। चमड़े को रंगने के पहले मुलायम करने और खिलाने के लिये लिय खेवाई-संज्ञा स्त्री हि खेना १. नाव खेने का काम । नाव . उसपर खारी नमक प्रादि रगड़ते हैं। चलाने की क्रिया । २ नांव खेने की मजदूरो । ३. वह रस्सी खेलौग-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'खेलौना'। जो डांड़ को नाव से बाँधने के काम में पाती है। . खेवइया@-संक्षा 'पुं० [हिं०] खेने वाला व्यक्ति । खेवया । खेवैया-संज्ञा पुं० [हिं० खेना खेनेवाला। केवट। . खेव-संज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की घास । .. .. खेस-संज्ञा पुं॰ [देश॰] बहुत मोटे देशी सूत की बनी हुई एक प्रकार . विशेष-वर्षा ऋतु में पहला पानी पड़ ही यह बहुत अधिकता की बहुत लंबी चादर जो पश्चिम में अधिकता से बनती मोर . ___ से उगती है और इसे घोड़े बहुत प्रसन्नता से खाते हैं। इस प्राय: बिछाने के काम में लाती है। ... .. पलंजी या ऊसर की घास भी कहते हैं। खेसर संज्ञा पुं० [सं०] खच्चर (को०). . . . खेवक@- संज्ञा पुं० सं० क्षेपक] ना खेनेवाला । मल्लाह । केवट । खेसारी-संज्ञा स्त्री० [सं० कृसर या सजकारि] एक प्रकार की मटरः । माझी। उ०---राजा कर भा अंगमन खेपा । सेवक आगे सुवा जिसकी फलियां चिपटी होती हैं। इसकी दाल बनती है। .. परेवा ।--जायसी (शब्द०)। .. दुविया मटर, । चिपटया मटर । लतती । तेउरा। खेवट'-- संधा पुं० [हिं० खेत+बाँट ] पटवारी का एक कागज जिसमें विशेष-यह अन्न बहुत सस्ता होता है और प्रायः सारे भारत हर एक पट्टीदार के हिस्से की तादाद और मालगुजारी का में, और विशेषत: मध्य भारत तथा सिंध में इसकी खेती होती . विवरण लिखा रहता है। ... .. ..": है। यह अगहन में बोई जाती है और इसकी फसल तैयार याँ०-- खेवटहार - हिस्सेदार । पट्टीदार ,... - होने में प्रायः साद तीन मास लगते हैं। लोग कहते हैं कि । खेवटर--संज्ञा पुं० [हिं० खेना ] नाव खेनेवाला। मल्लाह । माँझी। . इसे अधिक खाने से पादमी लेंगड़ा हो जाता है। वैद्यक में इसे खेवटिया --संशा पुं० [हिं० खेवट ] खेवट । मल्लाह। ...... ..... रूखा, कफ-पित्त-नाशक, रुचिकारक, 'मलरोधक, शीतल, खेवणी-भला स्त्री० [सं० क्षेपणी] नाव का डाँड। -(डि.)। रक्तशोधक और पौष्टिक कहा गया है। और यह शूल, सूजन, .." खेवनहार-संक्षा पुं० [हिं० खेना + हार (प्रत्य॰)] १. खेनेवाला। ..... दाह, बवासीर, ह दाह, बवासीर, हृदरोग और खंज उत्पन्न करवाली कही । मल्लाह । केवट । २. ठिकान · तक पहुँचानेवाला ।पार ... गई है। इसके पत्तों का साग भी बनता है, जो बंधक के . . लगानेवाला। अनुसार 'वादी, रुचिकारी और फफ-पित्त-नाशक होता है। ..... ..::.. .खेह-संज्ञा स्त्री॰ [ हि, मि०.५० खेह या मप० खेह ] धूल.। राख। खेवना--क्रि० स० [हिं० छेना ] दे० 'खेना। ..... खाक । मिट्टी । उ०--(क) कीन्हेसि प्रागिनि पवन जल खेहा।.. सेवनाव-संज्ञा पुं०] देश ] एक प्रकार का बड़ा बूक्ष । कीन्हेसि बढ़त, रंग उरेहा ! जायसी (शब्द०) । (ख) दादू . " विशेष-यह उत्तर भारत में चनाब नदी के पूर्व और बंगाल तथा क्योंकर पाइये उम चरनन की खेह ।-दादू (शबा)। उड़ीसा की नदिःों के किनारे अधिकता से पाया जाता है। मुहा०-खेह खाता = (१) धूल फांकना । मिट्टी छानना । झख -- इसके गूदे से एक प्रकार के रेशे निकलते हैं । इसमें एक .. मारना । व्यर्थ सपय खोना । मष्ट जाना। उ०-मुनि सीता. प्रकार के लाह भी लगती है। कहीं कहीं इसे दुबरसेव भी पति सील सुभाऊ । मोद न मन तन पुल नयन जल सो नर . कहते हैं। .: . खेहहिं 'खाक 1--तुलसी (शब्द०)। (२) दुर्दशाग्रस्त होना।