पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१०६

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.. ११८२ खोखों |:50-सोई रघुनाथ कपि साथ पायनाय वाँधि यायो नाव भागे खैर-अन्य १. कुछ विता नहीं। कुछ परवा नहीं। २. प्रस्तु। । ते ििरर खेह खाहिगो। तुलसी (शब्द०)। अच्छा । खेहर-संशा स्त्री० [हिं० खेह] दे० 'खेह' । उ०-सो नर खेहर खैर माफियत संद्धा श्री० [फा० खर-प्रो-माफियत] कुशल मगल । । खाउ |-तुलसी पं०, पृ०.५०६। क्षेम कुशल। खेंग-संशा पुं० [फा० खिग] घोड़ा-(डि०) । क्रि० प्र०कहना !-पूछना। बैंचना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'खींचना' । खैरखाह-वि० [फा० खैरख्वाह] भलाई चाहनेवाला । शुवितक । संचनी-संशा स्त्री० [हिं० खींचना] डेढ़ हाथ लंबी और एक वित्ता खैरखाहीं-संक्षा सौ० [फा० खैरहवाही] शुभचिंतन । भलाई 1. चौड़ी देवदार की लकड़ी की एक तरती जिसपर तेल लगाकर सोचना। ' संकल किए हए औजार साफ किए जाते हैं। खैरवाल-संज्ञा पुं॰ [देश॰] कोलियार नाम का वृक्ष । | बैचाखंबी-संक्षा ली [हि.] दे० 'खींचाबींची'। खैरसार-संप्या पुं० [सं० खदिर+सार] कत्या । खैर । बँचातान-संवा मी० [हिं०] दे० 'खींचतान' । सैरा-वि० [हिं० खर] खेर के रंग का । कत्थई । खचातानी-संज्ञा मी० [हिं० खचातान-ई (प्रत्य॰)] खींचाखींची। खैरा-संशा पुं०१. वह कायतर या घोड़ा जिसका रंग कत्थई हो। |. डींचतान । २. एक प्रकार का बगुला जिसका रंग कत्यई होता है। खैबर-संज्ञा पुं० दिश०] भारत और अफगानिस्तान के बीच की एक खैरा--संज्ञा पुं० दिश०1१. धान की फसल का एक रोग, जिसमें - घाटी का नाम । उसकी चाल पीली पड़ जाती है । २. तबला बजाने में एक- | खैयात-संक्षा पुं० [अ० खयात] दी। सूचीकार। सिलाई करने- ताले (ताल) की देन । ३. एक प्रकार की छोटी मछली जो - बाला । सीवक को। वंगाल की नदियों में अधिकता से पाई जाती है। खंयाम-वि० [अ० खंयाम] खेमा बनानेवाला । तंबू बनाने- खैरात--संशा पुं० [अ० खरात] [ वि० खैराती] दान । पुण्य । वाला को। क्रि० प्र०—करना ।-चाहना --बांदता ।--पाना ।-मांगता। खैयाम--संज्ञा पुं० फारसी का प्रमिद्ध कवि उमर याम । चौ०--खैरातजना अन्नसन । विशेप-नगापुर निवासी इस प्रसिद्ध कवि की दायाँ संसार खैराती--वि० [अ० खरात] दान या खैरात में प्राप्त । मुफ्त का। की.अनेक भाषानों में अनूदित हो चुकी हैं। कवि होने के साथ जैसे, खैराती अस्पताल। खैराती दवाखाना । बराती माल । | ही यह बढ़ा वैज्ञानिक, चिकित्सक, तथा ज्योतिपी भी था। खैरियत-संज्ञा स्त्री॰ [फा० खैरियत] १. कुशल क्षम । राजीखुशी । र' --संज्ञा पुं० [सं० खदिर,प्रा. खइर,खबर] १. एक प्रकार का २. भलाई। कल्याण । बबूल । कथकीकर । सोनकीकर। खैरीयत-संज्ञा स्त्री॰ [फा० खरीयत] दे० 'खैरियत'। | विशेप-इसका पेड़ बहुत बड़ा होता है और प्रायः समस्त भारत खेल-संझा पुं० [अं० खेल] समुदाय । जमाव । जनसमूह (को। में अधिकता से पाया जाता है। इसके हीर की लकड़ी भूरे रंग यो०-खैलखाना=कुटुव । खानदान । वंश। . की होती है, घुनती नहीं और घरतथा खेती के नौजार बनाने खेलर'- संज्ञा स्त्री० [सं० श्वेल] मथानी । । के काम में पाती है । बबूल की तरह इसमें भी एक प्रकार का खैला"-संग्रा पुं० [सं० वेड] वह वैल जिससे अभी तक कुछ काम गोंद निकलता है और बड़े काम का होता है। नलिया गया हो। नाटा ! बछड़ा। २.इस बधा की लकडी के टकड़ों को उबालकर निकाला और बैला...संधा [० क्ष्वेल] मथानी । उ०-मन माठा सम अरु ... जमावा हृया रस जो पान में चूने के साथ लगाकर खाया धोई। तन खैला तेहि माहि विलो।-जायसी (शब्द०)। . ..जाता है। कथा ! खोइचा-महा पुं० [हिं० खुट वा कोंछ प्रयवा सं० कुक्ष्यञ्चल या देश खर-संघा पुं० [देश॰] दक्षिण भारत का भूरे रंग का एक पक्षी। (स्त्रियों के कपड़ों का) अंचल । किनारा । विशेप---लंबाई में यह पक बालिश्त से कुछ अधिक होता है और मुहा०-खोइचा भरना-शकुन के रूप से किसी (स्त्री) के । .. भोपड़ियों या छोटे पेड़ों में घोसला बनाकर रहता हैं । इसका अांचल में चावल, गुड़ आदि देना। घोसला प्रायः जमीन से सटा हुना रहता है । इसकी गरदन खोइछाई-संहा पुं० [हिं०] दे० 'खोइचा'। । . और चोंच कुछ सफेदी लिए होती है। खोखना--क्रि० प्र० [खों खों से अनु०] खांसना । खर'-संज्ञा स्त्री० ]फा० खैर] कुशल । क्षेम । मलाई। खोबरी; खोखल--वि० [हिं०] दे० 'खोखला'। यो०-खरअंदेश हितचिंतक। शुभवितक । खैरन देशी- खोखी:-संघा सी० [हिं० खोखना] खांसी 1 कास । ... शुभक्तिन । मलाई चाहना । खैराफियत । खरख्वाह= खोखों--संदा पुं० [अनु०] १. खांसने का शब्द । २ बंदरों के T :. दे० 'खरखाह' । खैरबाही = दे० 'खरखाही'. । खरोवरकत घुड़कने का शब्द । .... .कल्याण । समृद्धि । खैरोसलाह। खैरसल्ला=कुशलक्षेम। ... क्रि० प्र० करना।