पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१०७

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खोगा ११८३ खोखा खोगा -संज्ञा पुं॰ [देश॰] अटकाव । रुकावट। खौंप-संघा सी० [हिं० खोपना] सिलाई में दूर दूर पर लगा हुआ खोंगा -संत पुं० [सं० खोङ्गाह] वह बैल जो अभी किसी काम टांका । सलंगा। में न लगाया गया हो। नाटा । बछड़ा। क्रि० प्र०-भरना।-मारना। खोगात--संज्ञा पुं० [सं० होङ्गाह] पीलापन लिए सफेद रंग का खोपना--क्रि० स० [हिं० खोपना] धसाना । गडाना। . . घोड़ा। खोपा-संक्षा पुं० [हिं० खोपना] [को खोपिया खोपी] १. हल की खोंगी--संशा बी० [हिं० खोंसना या देश०] लगे हुए पानों का वह लकड़ी जिसमें फाल लगा रहता है। २. छाजन का - चौघड़ा। कोहा । ३. भूसा रखने का घेरा जो छप्पर से छाया रहता .. खोंच-संज्ञा स्त्री० [म कुञ्च या सं० धोरणाञ्चन] १. किसी नुकीली है। ४. दे० 'खोपा'-३,४। भी से छिलने का प्राघात । २. किसी मेख या काटे प्रादि में खोंपी--संबा स्त्री० हिं० खोपा] १. दे० 'खोपा' । २. हजामत में खत फंसकर कपड़ें आदि का फट जाना। का कोना ! कि०प्र०-लगना। खौंसना- क्रि० स० [देश० या सं० कोश +ना (प्रत्य॰)] किसी वस्तु खोंच-संशा पुं० [देश॰] १. मुछी । २. उतना अन्न या और कोई को कहीं स्थिर रखने के लिये उसका कुछ भाग किसी दूसरी पदार्थ जो एक मुट्ठी में ना जाय। वस्तु में घुसेड देना । अटकाना । २०-सखी री मुरली लीज खोंच--संज्ञा पुं० [सं० क्रौञ्च एक प्रकार का बगुला । चोर । पाहूकर फवह अधरन पर कबहूँ कटि में खोंस॥ खोंचा--संशा पुं० [सं० फुज या हिं० खोंचा] १. बहेलियों का वह जोर ।-सूर (शब्द०)। बांस जिसके सिरे पर लासा लगाकर वे पक्षियों को फंसाते खोप्रा-संच पुं० [हिं०] दे० 'खोया' । हैं। उ०-पांच बानकर खोंचा लासा भरे सो पांच ! पाँच खोया--संवा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'खोई'। भरा तन उरझा कित मारे विन बांच ।-जायसी (शब्द०)। खोइडार--संहा पुं० [हिं० खोई+पार (प्रत्य०)] कोल्हौर में वह .. वि०प्र०-मारना। स्थान जहाँ खोई जमा की जाती है। २ दे० 'खोंच' ।। ३. छोटे बछड़े या बैल के मुह पर लगाने की खोइलर--संज्ञा स्त्री० [सं० वेल] तीन चार हाथ लंबी बाँस की एक प्रकार की जाली जिससे वे गाय का दूध न पी सके या छड़ी जिससे कोल्ह में पड़े हुए गंडों को उलटते पलटते हैं। . दवाई के समय खा न सकें। खोइहटा--वि० [हिं०] दे० 'खोई'। खचिया--सं० [हिं० खोंची] १.खोंची लेनेवाला । २. भिक्षुक । खोइहा-संशा पुं० [हिं० खोई+हा (प्रत्य०)] कोल्हौर का वह भिखमंगा। मजदूर जो खाई उठाता या फेकता है। खोची-संशा [देश॰] वह थोड़ा अन्न, फल, तरकारी प्रादि जो खोई'- संज्ञा स्त्री० [संक्ष.] उख के गंडों के वे डंठल जो रस दूकानदार मंडी ग बाजार में छोटी छोटी सेवाएँ करनेवालों निकल जाने पर कोल्ह, में शेष रह जाते हैं । छोई । २. भुने या भिखमंगों को देते हैं। उ०---खाई खोंची मांगि मैं तेरो हुए चावल या धान की खील । लाई। ३ कंबल की घोषी। नाम लिया रे । तेरे बल बलि बाजु लौं जग जागि जिया रे । ४. एकप्रकारकी वास जिसे 'बूर' भी कहते हैं। वि० दे० 'बूर'।.


तुलसी (शब्द०)।

खोई---वि० [हिं०] नटखट । शरारती। . बना...कि सकसिं० खरण न किसी वस्तु का अपरी भाग तोड़ना। खोखर--संघा देश जाति का एक राग जो मालकोश क.पटना । नोचना । जैसे,-साग खोंटना। राग का पुत्र माना जाता है। इसके गाने का समय दिन का खोटा-वि० [हिं०] दे० 'खोटा। पहला पहर है। खोंडर-संषा पुं० [सं० कोटर] पेड़ का नीतरी पोला भाग । खोख रा--संज्ञा पुं० [हिं० खुरल, या खोखला] टूटा हुआ जहाज 1--- खोंडहा-वि० [हिं०] दे॰ 'खोंडा'। (लश०)। खोडा,खोंढा-वि० [सं० खुरड] जिसका कोई अंग भंग हो। खोखल-वि० [हिं०] दे० 'खोखला'। सदोष । अपूर्ण। खोखला-वि० [हिं० खुक्ख+ला (प्रत्य॰)] जिसके भीतरी भाग -इस शब्द का प्रयोग प्रायः उस मनुष्य के लिय हाता हा में कुछ न हो। सारहीन । पोला। जिसके प्रागे के दो तीन दांत टूटे हों। खोतलो-संझा पुं० [सं० कोटर, देश० पोत्थर] खोता. । घोंसला। सखिलासा पु०१. खाली स्थान। पोली जंगह। २. बड़ा . उ०-- यह सुधि नहि किहि को जटान में खंग कुल खोतल हि को जटान में खंग कल खोतल छेद । रंध्र। लागे ।-प्रताप (शब्द०)। खोखा'- संन्या पु० [हिं० खुदखा] वह कागज जिसपर हुडी लिखी खोता--संज्ञा पुं० [हिं० सीता) घास, फूस, बाल प्रादि का बना हमा हुई हो; विशेषतः वह हुंडी जिसका रुपया चुका दिया चिड़ियों पर निवासस्थान, जो प्रायः वृक्षों नादि पर होता गया हो। है। घोंगला। खोखा'--संशा पुं० [सं० फोख, स. खोका] [ो खोखी] बालक । खोगा-संसा पुं० [हिं०] है 'खोंदा'!