पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/११५

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गंगायात्रा ११६१ गंज विशेष-इसमें गाँव और कुटुव की स्त्रियां वर को साथ लेकर गंगोतरी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० गंगोत्तरी] दे० 'गंगोत्तरी'। उ०. गाती बजाती गांव के बाहर नदी या तालाव पर जाती हैं बद्रीनाथ गंगोतरी की यात्रा में राला ने रामेश्वर के लिये . और वहाँ गाँव के देवता प्रादि की पूजा करके घर लौट पाती गंगाजली भरी:-किन्नर०, पृ० १००। हैं। इसी दिन वर या वधू के हाथ के कंगन खोले जाते हैं। गंगोत्तरो--संशा स्त्री० [सं० गङ्गावतार ] गढ़वाल में हिमालय पर्वत . इसी दिन विवाह का कृत्य समाप्त होता है। इस रीति को पर एक स्थान जहां गंगा ऊपर से गिरती है। 'कंगन छोड़ ना' या 'बरनवार' भी कहते हैं । विशेष-यह हिदुओं का एक प्रधान तीर्थ है और यहाँ गंगादेवी : गंगायात्रा-संज्ञा स्त्री० [सं० गङ्गायात्रा] १. मरणासन्न मनुष्य का का एक मंदिर बना हुया है। गंगा के तट पर मरने के लिये गमन । २. मृत्यु । गंगोद संवा पुं० [सं० गङ्गा+उद = जल ] दे० 'गंगोदक' | 30- गंगाराम–पा पुं० [हिं० गंगा+राम ] तोते का प्यार का नाम । धन्य नदी नद स्रोत, विमल गंगोद गोत जल ।-काश्मीर, गंगाल-संज्ञा पुं० [सं० गंगा+श्रालय] पानी रखने का बड़ा वरतन । पृ० १।। कंडाल। गंगोदक-संशा पुं० [सं० गङ्गोदक ] १. गंगाजल । २: चौबीमा । गंगालहरी-संज्ञा ली० [सं० गङ्गालहरी ] गंगा से संबंधित स्तुति- अक्षरों का एक वर्णवृत्त जिसमें प्रा० रगण होते हैं। परक पद्यों का संग्रह । जैसे,--पंडितराज जगन्नाथ, पृथ्वीराज विशेष--इसे गंगाधर, खंजन आदि भी कहते हैं। यह यथार्थ में राठौर, और पद्माकर आदि द्वारा रचित इस प्रकार के छंदों सग्विणी छंद का दूना है। जैसे,—जन्म वीता सबै, चेत मीता ।' का संकलन । अब, कीजिए का तवं, काल के प्रान कै । मुडमाला गर, सीस । गंगाला-संज्ञा पुं० [सं० गङ्गा+आलय ] वह भूमि जहाँ तक गंगा गंगा धर, पाठ याम हरे, घ्याइ लगान के। का चढ़ाव पहुंचता है । कछार । गंगोदिक -संज्ञा पुं० [ मं० गङ्गोदक ] दे० 'गंगोदक' 1 उ०--एक - गंगालाभ संज्ञा पुं० [सं० गङ्गालान ] गंगा की प्राप्ति । मृत्यु। घट माहिं पुनि गंगोदिक राख्यो नि !---सुदर ग्रं०, भा० २, . मुहा०- गंगालाभ होना (१) गंगा के किनारे पर मरना । ०५६४। मुक्त होना । (२) डूबकर मरना । (३) मरना । गंगोद्भेद-संशा पुं० [सं० गङ्गोभेद ] जहां से गंगा नदी निकलती गंगावतरण-संज्ञा पुं॰ [सं० गङ्गावतरण ] स्वर्ग से गंगा का पृथ्वी है। गंगा को उद्गम को पर आना (को०)। गंगोला-संज्ञा पुं० [सं० गङ्गोला गोमेदक नामक मणि । उ-: गंगावतार-संज्ञा पुं० [सं० गङ्गावतार] दे० 'गंगावतरण' । गंधक गंजाफल गंगोला। गोपीचंदन लुटेउ अतोला ।-सूदन । गंगावासी-वि० [स० गङ्गावासिन ] गंगा के किनारे रहनेवाला। (शब्द)। गंगासप्तमी-संक्षा श्री॰ [सं० गङ्गासप्तमी वैशाख महीने की शुक्ल गंगोटी-पंधा सी.[हिं० गङ्गा+मिट्टी ] गंगा के किनार का बालू .. __ पक्ष की सप्तमी (को०)। या मिट्टी। गंगासागर- संचा पुं० [सं० गङ्गासागर] १. एक तीर्थ जो उस स्थान गंगोलिया--संज्ञा पुं० [हिं० गंगाल ] एक प्रकार का खट्टा नवि: पर है जहाँ गंगा समुद्र में गिरती हैं। जिसका छिलका दानेदार होता है। विशेष- कहते हैं, यहाँ कपिल मुनि का आश्रम था और यहीं गंज-संवा पुं० [सं०कज या खज] १. एक रोग का नाम जिसने सगर के पुत्रों को उन्होंने भस्म किया था। यह स्थान कलकत्ते सिर के बाल उड़ जाते हैं और फिर नहीं जमते । चाई।। से दक्षिणपूर्व सुंदरवन में है, जहां मकर की संक्रांति के दिन चंदलाई। खल्वाट। बा। २. सिर का एक रोग जिसम" बड़ा मेला लगता है। सिर में छोटी छोटी फुसियाँ निकलती रहती हैं और जल्दी - २. मोटे कपड़े की छपी हुई जनानी धोती जो १७-१८ हाय प्रच्छी नहीं होती । वालखोरा ।। लंबी होती है। ३. एक प्रकार की बड़ी टोंटीदार झारी जो गंज-संवा श्री० [फा०, सं० गज 1१. खजाना । कोप । २. बर।। हाथ धुलाने के काम आती है। अंवार । राशि । अटाला । गंगासुत-- संज्ञा पु॰ [सं० गङ्गातुत] १. कार्तिकेय । २. भीष्म (को०)। क्रि० प्र०—लगाना ।। गंगासूनु ---संघा पुं० [सं० गङ्गासू नु] दे० 'गंगासुत'। . ३. समूह । झुड । ज० कै निदरहु के आदरहु सिंहहि स्वान .. गंगिका संशा झा [सं० गङ्गिका ] गंगा। सियार । हरप विपाद न केसरिहि कुंजर गंजनिहार ।- गंगेऊ-संज्ञा पुं॰ [सं० गाङ्गेय, गनेय] भीम 30 तुम ही द्रौन तुलसी (शब्द०)। ४. वह स्थान जहाँ अन्न प्रादि रखा जाय । ." और गंगेऊ । तुम लेखौं जैसे सहदेऊ । जायसी (शब्द०)। गल्लाखाना अंबारखाना । कोठी। भंडार । ५. गल्ले की । गंगेय-संभा पुं० [सं० गङ्गेय] गंगा के पुत्र भीष्म पितामह ! मंडी। गोला । हाट । बाजार। गंगेश -- संज्ञा पुं० [सं० गङ्गेश शिव । महादेव। . मुहा०—ज डालना-वाजार लगाना। मंडी पावाद करना । गंगोझ संज्ञा पुं० [सं० गलोद ] दे० 'गंगोदक' । उ०—तुलसी ६. वह आबादी जिसमें बनिए बसाए जाते हैं और बाजार लगता। रामहि परिहरे निपट हानि सुनु अोझ । सुरसरि गत सोई है । जैसे,- पहाड़गंज, रायगंज। ७. मद्यपात्र ८. मदिरालय ।। सलिल, सुरा सरिस गंगोझ ।-तुलसी ग्रं, पृ० ११।। कलवरिया । ६. वह चीज जिसमें बहुत सी काम की चीजें एक - :