पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/११६

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साथ एकत्र हों जैसे-एक बरतन जो नगर या बाल्टी के गंजनी · संज्ञा स्त्री॰ [देश ?] 1 एक घास जो सुगंध बनाने के काम में आकार का होता है और जिसमें रसोई बनाने के बहुत से आती है। इसकी महक नीबू से मिलती जुलती होती है। बरतन होते हैं , गंज कहलाता है। इसी प्रकार वह चाकू जिसमें गंजफा-संडा पुं० [फा० गंजफूह ] दे० 'गंजीफा'। चाकू कैंची मोचने आदि बहुत सी चीजें होती है, गंज गंजवश- वि० [फा० गंजवएश] खजानी लुटा देनेवाला । बहुत कहलाता है। ___ बड़ा दानी [को०। यो०-गंजगुठारा, गंजगुवारा= दे० 'गंजगोला'। गंजगोला। गंजा' संज्ञा पुं० [सं० सज या कज] गंज रोग । वि० दे० 'गंज' । ___गंजचाकू । गंजा' वि०वि० सी० गंजी] जिसके गंज रोग हो गया हो। जिसके ज-या पुं० [सं० गज] १. अवज्ञा । तिरस्कार । २. गौशाला। सिर के बाल झड़ गए हों। गोठ (को०।। . गंजा-संशा खी० [सं० गजा] १.पर्णकुटी। झोपड़ी। २. मदिरा- ज-संज्ञा स्त्री॰ [देश०] एक मोटी लता जिसमें नीचे की ओर झुकी लय । शराबखाना। ३. मद्य पीने का पात्र। ४. रत्न की हुई टहनियाँ निकलती हैं, खान [को०] । विशेष-इसकी पत्तियां सीकों में लगती हैं और चार से पा० इंच गंजिका - संशा स्त्री॰ [सं० गञ्जिका] शरावखाना । मदिरालय [को०) । तक लंबी, सिरे की और चौड़ी, दलदार और चिकनी होती गंजित-वि० [सं० गजित] १. अपमानित । तिरस्कृत । २. कष्ट- है, इसमें पांच सात इंच लंबी, एक इच मोटी फलियाँ लगती युक्त । दुखी । ३. मष्ट [को०] । हैं, जिनपर रोंई होती हैं। टहनियों से रेशा निकलता है और गंजो'-संशा स्त्री॰ [हिं० गंज] १.ढेर । समूह । गाँज । जैसे,-घास पत्तियाँ चौपायों को खिलाई जाती हैं। यह लता जंगल के की गंजी, अन्न की गंजी।२. शकरकंद। कंदा। पेड़ों को बहुत हानि पहुचाती है और देहरादून से लेकर गोर- गंजी-संवा सी० [अ० गुएरनेसी-एफ टा] बुनी हुई छोटी खपुर और बुदेलखंड तक पाई जाती है। इसे गोंज भी कुरती या बंडी जो बदन में चिपको रहती है । बनियायन । कहते हैं। गंजी-संज्ञा पुं० [हिं० गाँजा] दे० 'गजेड़ी'। गंजगोला-संघा पुं० [हिं० गंज+गोला] तोप का वह गोला जिसके गंजीना संश पुं० [फा० गंजीनह] कोप । खजाना [को०] । - यंदर बहुत सी छोटी छोटी गोलिय. भरी रहती हैं । दे० गंजीफा-संश्चा पुं० [फा० गंजीफह] एक खेल जो आठ रंग के ६६ - 'किरिच' का गोला'।-(लश०)। __ पत्तों से खेला जाता है। गंजचाक-संज्ञा पुं० [हिं० पंज+फा चाकू] वह चाफू जिसमें फल विशेप- इसके पत्तों के प्राकार गोल होते हैं पीर रंग लाल । - के साथ ही सरीता, मोचना आदि लगा हो।। ये पत्ते कड़े होते हैं और फेंकने से मड़ते नहीं हैं । रंगों के गंजड़-वि० [हिं० गाँजा] दे० 'गजेड़ी'। उ०-लोग निकम्मे नाम चंग, वरात, किमास, शमसेर यादि हैं। प्रत्येक रंग के भंगी गंजड़ लुच्चे वे विसवासी ।--भारतेंदु ग्रं० भा०१, १२, ११ पत्ते होते हैं। इस खेल को तीन आदमी खेलते हैं । गंटम संशा गुं०[सं० ग्रन्म?] लोहे की कलम जिससे ताडपत्र पर गंजन'--संचा पुं० [सं० गजन] १. अवना । तिरस्कार । उ०-- लिखते थे। _ (क) रस सिंगार मंजनं किये, कंजन भंजन दैन । अंजन गंठ@-संज्ञा पुं० [सं० ग्रन्थि प्रा० गंठि] गाँठ। उ०-फर टैरा पण ... रंजन हूं विना जन गंजन नैन ।-बिहारी (शब्द॰) । (ख) धारियो, जमण तणं उपकंठ । उवर तणी इंद्रसिंघ सू, साह काली विय गंजन दह आये।-सूर (शब्द०)। २. हरा देना। प्रकासी गं०।-रघु० २०, पृ० २७। ३. संगीत में अप्टताल के पाठ भेदों में से एक । ३. कष्ट । तकलीफ।-(क) जेहि मिलि बिछुरनि यो तपनि मत गाठय -वि० [सं० प्रथित प्रा० गंव्यि] १.बाँधा हा । २.गया होइ जो, नित । तेहि मिलि गंजन को सह नर विनु मिला । ३. गावाला। निचित |--जायसी (शब्द०)। (ख) पुण्यात्मा सूख से.यो गंठी-संशा की [वि.] दे० 'गाँठ'। - पापी सब नाना गंजन से जाते हैं। सदल मिथ (शब्द०)। गंड संज्ञा पुं० [२० गण्ड] १. कपोल । गाल ।२.कनपटी। 3. -:. ४. नीचा दिखाना । ५. नाश। गाल से कनपटी तक का भाग! गंजन:-वि०१. अवज्ञा करनेवाला। २.हरा देनेवाला । ३. कष्ट या यौ०-गंडदेश । गंडपिंड । गंडप्रदेश। गंडमंडल। गंडस्थल । दुःख देनेवाला । ४. नीचा दिखानेवाला । ५. नाशक । उ०- गंडस्थली= कनपटी । गाल। ... जो भवं भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन विपति वरूथ 1- ४.ज्योतिप के अनुसार ज्येष्ठा, श्लेप्पा और रेवती के अंत के पाँच - मानस, १।१८६। दंड और मूल, मघा तया अश्विनी के आदि के तीन दंड । जना-कि० स० [सं० गञ्जन] १. अवज्ञा करना । निरादर करना। विशंप-इसमें उत्पन्न होनेवाले लड़के को दुपित मानते हैं। - २. चूर चूर करना। नाश करना। उ०-राम कामभरि कर लोगों का विश्वास है कि गंड में उत्पन्न लडके काम - धनु. भंजा। भंगपति सहित नपन मद गंजा ।-विधाम को नहीं देखना चाहिए। दिन में ज्येष्ठा और मला

(शब्द०)

. । रात में पलेपा और ममा का गंड तथा सायंकाल, प्रातःकाल