पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/११९

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गंदमगंदा गंधकवटी रंग बदलता है। जाड़े के महीनों में यह पंजाव और संयुक्त प्रांत में दिखाई पड़ता है। यह झुड में रहता है; और छोटी झाड़ियों में घास फूस से प्याले के आकार का घोंसला बनाता है। गंदमगंदा-वि० [फा० गदह +गंदह]बहुत ही गंदा खराव या बुरा। उ०-दसौ दुवारे मैल है सब गंदमगंदा !-चरण. वानी, पृ०६२। गंदा-वि० [फा० गंदह] [वि० सी० गंदी] १. मैला । मलिन । उ०- बरसात में नदियों का पानी गंदा हो जाता है। २. नापाक । अशुद्ध । जैसे,---एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है। ३. घिनौना । घृणित । जैसे, तुम्हारी गंदी आदत नहीं जाती। यो०-दादहन । गंदापानी।। महा०-गंदा करना=(१) खराब करना। भ्रष्ट करना । (२) दागी करना । दाग लगाना । कलंकित करना। गंदादहन-वि० [फा० गंदहदहन] जिसके मुह से दुर्गध पाती हो । गंददहन। गंदापानी-संधा पुं० [फा० गंदह + हिं० पानी] १. मद्य । शराब। २.वीर्य । शुक्र धातु । -(वाजारू)। मुहा० - गंदा पानी निकाल ना= अयोग्य स्त्री से मैथुन करना । संभोग करना। गंदाबगल - संज्ञा पुं० [हिं० गंदा+फा० बगल] वह घोड़ा जिसके दोनों बगल दो भौंरियां हों। गंदुम-संभा पुं० [फा० तुल० सं० गोधूम ] [ वि० गंदुमी ] गेहूँ। गंदुमी-वि० [फा० गंदुम] गेहूँ के रंग का । ललाई लिए हुए भूरा। गेहु आँ । जैसे,—ांदुमी रंग। उ०-रंग तेरा गंदुमी देख और वदन मखमल सा साफ।-कविता कौ०, भा० ४, पृ० २३ । गंदोलना-क्रि० स० [फा० गंदह ] कोई चीज, विशेषतया पानी को गंदा करना। गंद्रप -संज्ञा पुं॰ [सं० गन्यर्व ] दे० 'गंधर्व'। उ०---सो हुतो गंद्रप थाप वासव धिके प्राक्रम धारिया। विएसीस दूर प्रसार बाहाँ धरणां जीव संहारिया।- रघु० रू०, पृ० १२५।। गंध-संशा सी० [सं० गन्ध] १. वास । महक । विशेप-न्याय या वैशपिक में गंध को पृथिवी का गुमा और प्राण या नासिका का विषय कहा है। यद्यपि साधारण भेद दो है-सुगंध और दुर्गध, पर शास्त्रकारों ने इसके प्रधान दस भेद किए हैं। (प) इप्ट, जैसी कस्तूरी आदि की। (ख) अनिष्ट, जैसी मुर्दै धादि की। (ग) मधुर; जैसी मधु, फूल पादि की। (घ) अम्ल, जैसी ग्राम, यांवले की। (च) कटु, जंसी मिर्च मादि की। (छ) निहारी, जैसी हींग यादि में। (ज) संहत, जैसी चित्रगंध की। (झ) स्निग्ध जैसी घी की। (2) रक्ष, जैसे सरसों, राई आदि की। (ठ) विशद, जैसी चावल आदि की। २.सुगंध । मुवास! विशेष—इसे लोगों ने पांच प्रकार की माना है। (क) चुर्णाकृत, (क) पृष्ट, (ग) दाहायापित (घ) संगर्दज और (क) प्रारमंगोद्भव । ३ सुगंधित द्रव्य जो शरीर में लगाया जाय । जैसे,—चंदन आदि। का लेप । ४. लेश । अए मात्र । संस्कार। संबंध । जैसे,---- उसमें भलमंसाहत की गंध भी नहीं है। उ०-जेहि घंध .. जाकर मन बसे सपने सूझ सो गंध 1.तेहि कारन तपसी' तप साधहि करहि प्रेम चित बंध ।-जायसी (शब्द०)। ५. गंधक । ६. शोभांजन । सहिजन । गंधकंदक-संज्ञा पुं० [सं० गंधकन्दक] कसेरू [को॰] । गंधक---संज्ञा सी० [सं० गन्धक [वि. गंधकी] एक खनिज पदार्थ जिसे वैद्यक में उपधातु माना है। विशेष-- यह खरी और विना स्वाद की और ज्वालग्राहिणी होती है। इसकी कालमें चमकदार होती हैं और इसे घिसने या गरम : करने से इसमें से एक प्रकार की असह्य तीव्र गंध निकलती है। यह ज्वालामुखी पर्वतों से निकले पदार्थों में प्रायः मिलती हैं । धातुओं के साथ भी यह लगी मिलती है। गंधक पानी, अलकोहल और ईथर में नहीं घुलती, पर द्विगंधित कार्बन, मिट्टी के तेल और बेंजोन में सुगमता से घुल जाती है । प्राग में जलने से इसमें से नीले रंग की लौ निकलती है। यह २३८ दर्जे की आंच में पिघलती है योर ८२४ दर्जे की आँच में उबलने लगती है । उवलने के समय इसमें गु लाल रंग की घनी भाप निकलती है। आइसलैंड के ज्वालामुखी पर्वतों के. पास यह शुद्ध रूप में मिलती है, पर सिसली में यह नीली मिट्टी के साथ मिली हुई पाई जाती है। इसे साफ करने के लिये गंधक मिली हुई मिट्टी को एक गड्ढे में आग के ऊपर रखकर . . ऊपर से मिट्टी डाल देते हैं। इससे गंधक जलने लंगती है और पिघल पिघलकर नीचे गड्ढे में जमा होती जाती है। इसे हिंदुस्तान में फिर साफ करके पत्तियों के रूप में बनाते हैं। ये : वत्तियाँ बाजार में विम स्टोन या गंधक की वत्तियाँ कहलाती : हैं। गंधक प्रायः लोहे, तांबे आदि धातुओं और कभी कभी पशु, पक्षी और वनस्पतियों में भी मिलती है । इससे रबर भी कड़ा करते हैं। चर्मरोग में यह लगाई और खिलाई भी जाती है। वैद्यक के ग्रंथों के अनुसार गंधक चार प्रकार की होती है, सफेद, लाल, पीली और नीली। पर लाल और सफेद . . गंधक देखने में नहीं आती; पीली और नीली मिलती है। नीली को तूतिया, नीला थोथा आदि कहते हैं । गंधक शब्द से भाजकल केवल पीली गंधक समझी जाती है। . कुछ लोग हरताल को भी एक प्रकार की गंधक मानते हैं। वैद्य लोग खाने के लिये गंधक को शोधते हैं। शोधने के लिये इसकी बुकनी को खोलते हुए घी में डालते हैं । फिर .. जब घी में मिलो गंधक खूब गरम हो जाती है, तब उसे एक । बर्तन में दुध रखकर छानते हैं, जिससे गंधक छनकर नीचे बैठ जाती है। यह क्रिया तीन बार की जाती है । डाक्टर लोग गंधक जलाकर वायु शुद्ध करते हैं। . . .. . पर्या-गंवाश्मा। गंधमोहन । पूतिगंध । अतिगंध । बर। सुगंध । दिब्यगंध। कीटघ । ऋ रगंध । गंधी। गंधिक । पामागंध। रसगंधक । सौग धिक । सुगंधिक कुष्ठारि। गौरीवीज़। गंवकवटी-संसा पी० [सं० गायफ+वटी एक औषध या गोली। .