पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१२२

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गंधमासी ११९८. गंधर्वनगर . . गंधमासी-संझा की. सिं० गन्यमासी जटामासी।" प्रवर्तक और सोम के रक्षक माने गए हैं। इंद्र इनसे लड़कर गंधमुड-संशा गुं० सिं० गन्धमुण्ड] एक लता का नाम । सोम को छीनंता और मनुष्यों को देता है । इनका स्वामी | पर्या-नंदी। ताम्रपाकी । फलपाकी। पीतक । गर्दभांड वरुण है । द्य स्थान के गंधर्व से सूर्य, सूर्य की रश्मि, तेज, | . क्षिप्रपाकी। प्रकाश इत्यादि और मध्यस्थान के गंधर्व से मेघ, चंद्रमा, विद्या त । गंधमुल-संज्ञा पुंसिं० गन्यमूल कुलंजन गोगा . आदि निरुक्त शास्त्र के अधार पर लिये जाते हैं क्योंकि 'गा' । गंधमूला संहा सी० [सं० गन्यमूला। दे० 'गंधमूली' (को०] । या 'गो' को धारण करनेवाला गंधर्व कहा जाता है; और | गंवमूलिका, गंधमूली संश की० [सं० गन्धमूलिका) कपूरकचरी। 'गा' या 'गों से पृथिवी, वाणी, किरण इत्यादि का ग्रहण | गंधमूपिका-संडा सी० [सं० गन्यमूषिका । छछु दर । होता है। इसके अतिरिक्त उपनिषद और ब्राह्मण ग्रंथों में । पर्यायधमूपिक । गंगभूपी ! गंवडिनी । गंवसुखी । गंधसूयो । भी गंधों के दो भेद मिलते हैं देव गंधर्व और मनुष्य । गंवमृग -संदा पुं० [सं० गन्यमृग] १. कस्तूरी मृग । २.गंधविलाव गंधर्व । कहीं गंधर्व को राक्षस, पिशाचादि के समय एक । कि०] । प्रकार का भूत माना है। पर्या-विद्याधर । | गंधमैथुन-संशा पुं० [सं० गन्धर्म युन] साँड़ [को । २.मृग । ३.घोड़ा । ४.वह आत्मा जिसमें एक शरीर छोड़कर । गंधमादन-संहा पुं० सं० गन्यमोदन गंधक [को०] । गंधमाहिनी-मंशा को सिं० गन्धमोहिनी। चंपारी कली को। दूसरा ग्रहण किया हो । मृत्यु के बाद तथा पुनर्जन्म के पूर्व की । गंधयुक्ति-संशाली [सं० गन्धयुक्ति, सुगंध द्रव्य तैयार करने की श्रात्मा। प्रेत । ५ स्त्रियों को वह अवस्या जब उनके स्वर | विद्या [को०]। में माधुर्य उत्पन्न होता है। ६. वैद्यक में एक प्रकार का मानसिक रोग जिसे 'ग्रह' कहते हैं। | गंधयुरि- पुं० सिं० गन्धयुति | सुगंधित चूर्ण लो। . विशंप--इस रोग मे ग्रस्त मनुष्य बाग, वन, नदी या करनों के गंधरव . संश सं० गन्धवं | दे० 'गंधर्व' 1 30-जच्छ मृत किनारे घूमता है। गंध और माल्य उसे अच्छे लगते हैं। वह वासुकी नाग मुनि घरव सकल बसु जीति मैं फिए परे । - नाचता, गाता, हँसता और दूसरों से कम वोलता है। गंधर्व- सूर०, १०६। ग्रह, गंधर्व रोग आदि नामों से इसका वर्णन मिलता है। । गंवरबिनधु-संत्रा को हिला दे० 'गंधदिन'। ७. एक जाति जिसकी कन्याएँ नावती गाती और वेश्यावृत्ति I. गंचम्म-संज्ञा पुं०० गन्यरत १. सुगंध तार । २. गुग्गुल (को०)। करती हैं। ये लोग कुमाऊ' आदि पहाड़ों तथा काशी यादि | गंवराज-हा पुं० [सं० गन्यराज] १.मोगरा बेला । २:नख नामक नगरों में पाए जाते हैं। ८. संगीत में ताल के साठ मुख्य - सुगंधद्रव्य । ३.चंदन । भेदों में से एक। यथा-चत्वारो गुरवो विदुश्चत्वारश्च प्लुता गंवराज गुग्गुल-संशा पं० [सं० गन्धराज गुग्गुल) एक प्रकार की अपि । विदवो दश पट्लाश्च ताले- गंधर्वसंक्षके-संगीत धूप या गोंद । वि० दे० 'गुग्गुल' । दामोदर (शब्द०)। ६.विधवा स्त्री का दूसरा पति । १०. गंघराजी-संज्ञा स्त्री० [सं० गन्धराजी नख नामक सुगंधित द्रव्य । गायक (को०)। ११.सूर्य (को०)। १२.कोकिल (को०) १३. | गंधपती संज्ञा पुं० [सं० गन्धर्व' दे० 'गंधर्व'। उ०देव मुन एरंड। रेड- (को०)।" । दैत.गंधर्व और मानवी। केवली काल मुन्द्र सकल जाई। गंवखंड---संवा पुं० [सं० गन्धर्व खण्ड] भारतवर्ष के नव खंडों में । तुलसी० शा०, पृ० १५ .. से एक का नाम [को०] । गंवर्वग्रह-संशा पुं० [सं० गन्धर्वग्रह] एक मानसिक रोग । दे० - गंधर्व-संज्ञा पुं॰ [सं० गन्धर्व ] [सी० गन्धर्वी, हि० सी० गयावन गंधर्व-६ --माधव०, पृ० १२५ । . ..१ देवताओं का एक भेद । .. गंधर्वतैल---संज्ञा पुं० [सं० गन्धर्व तैल] रंडी का तेल । ......विशेष. ये पूराण के अनुसार स्वर्ग में रहते हैं और वहां गाने गंधर्वनगर- गंधर्वनगर-संज्ञा पुं० [गन्धर्व नगर ] १. नगर, ग्राम आदि का काम करते हैं। अग्निपुराण में गंधवों के ग्यारह गरण माने का बह मिथ्या आभास जो आकाश में या स्थल में दृष्टिदोप से .... गए हैं,---प्रथाज्य, अंधारि, बंभारि, शूर्यवर्चा, कृधु, हस्त, दिखाई पड़ता है। सुहस्त, स्वन, मधवा, विश्वावसु, और कृशानु । इन गधवा विशेष-जव गरमी के दिनों में मरुभूमि या समुद्र में वाय की में हाहाहह, चित्ररथ, हस, विश्वावसु, गोमायु, तुचुर और तहों का घनत्व उष्णता के कारण असमान होता है.स I.., . नंदि प्रधान माने गए हैं। वेदों में गंधर्व दो प्रकार के माने समय प्रकाश की गति के विच्छेद से दूर के शहर, गाँव, वक्ष, ..: गए हैं.-एक ध स्यान के, दूसरे अंतरिक्ष स्थान के ।' यु स्थान , नीका आदि का प्रतिक्वि आकाश में पड़ता है और कभी कभी के गंधर्वो को दिव्य गंधर्व भी कहते हैं। ये सोम के रक्षक, नोका यादि का प्रतिबिंब का प्रतिबिंव उलटकर पृथिवी पर पड़ता रोगों के चिकित्सक, सूर्य के अश्वों के वाहक, तथा स्वर्गीय ज्ञान है, जिससे कभी दूर के गांव, नगर आदि आदि या तो आकाश .. के प्रकाशक माने गए हैं। यम और यमी के उत्पादक मा ..' में उलटे टंगे 'या. समीप दिखाई पड़ते हैं। यह दष्टिदोष ... स्थान के गंधर्व नक्षनचक्र के असमान तह के कारण उस समय होता है जब नीचे की तह - -- - --