पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१२४

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गंवाधिक १२०० - गंबोली स्वर्णयूथी । है. रामतरुणी। ४. आरामशीतला ! ५. गंधाली लिये चंदन, अगर, कपूर, तमाल, जल,कुंकुम, कुशीद, कुल; गणेश के लिये चंदन, चोर, रोचन, अगर, मृग और मृगी गंधाधिक-संवा पुं० [सं० गन्धाधिक] एक प्रकार का गंधद्रव्य [को०। का मद, कस्तुरी, कपूर, अथवा चंदन, अगर, कपूर, रोचन, गंधाना-क्रि० स० [हिं० गन्ध ] गंध देना। बसाना । कुंकुम, मद; रक्तचंदन, ह्रीवर; सूर्य के लिये जल, केसर, '. दुर्ग'ध करना। . . कुष्ठ, रक्तचंदन, चंदन, उशीर, अगर, कपूर । गंवाना–संवा पुं० [सं० गन्धन ] रोला छंद का एक नाम। गंधिक-वि० [सं० गन्धिक ] गंधयुक्त । सुगंधित । गंधानुवासन-संवा पुं० [सं० गन्धानुवासन ] अर्क का एक संस्कार। गंधिक संज्ञा पुं० १. गधी । इअफरोस । २. गंधक फिो०] । .... अर्क को गंध की वासना दैना, जिससे वह तेज रहे। गंविकापण-संवा पुं० [सं० गन्धिकापरण] वह स्थान जहाँ सुगंध- गंधाविरोजा संज्ञा पुं० [हिं गंप+थिरोजा ] चीर नामक वृक्ष का द्रव्य का विक्रय हो (को०] । - गोंद जो फारस से आता है। . गंधिन-संदा सी० [सं० गन्धिनी] १. गंधी की स्त्री। २. गंधद्रव्य - विशेष.---शीराज और किरमान इसके लिये प्रसिद्ध स्थान है। बचनवाला स्त्रा। ३. मादरा । सुरा। शराब। , यह तीन प्रकार का होता है-खसनिय जो लेवान्ट से याता गधिन - वि० सी० गंधयुक्त । गंधवाली।। है, बिरोजा खश्या चौर विरोजा गावीर या जवाशीर। गंधिनिहु-मंधा सी० [हिं०] गंधद्रव्य वेचनेवाली औरत । गंधित । बिरोजा या गावीर पीले रंग का गोंद है, जो बहुत पतला उ०-पंदन अरगजा सूर केसरि धरि लेऊ। गंधिनि हो होता है। यह कभी-कभी हरापन लिए भी होता है। इसमें जाऊँ निरखि नैनन सुख देऊ। -पूर (शब्द०)1 . डंठल, फूल और पत्तियां मिली रहती हैं। इसकी गंध दुरी गंधी -मंचा पुं० [सं० गन्धिन्] [श्री० गन्धिनी; गाँधन, गंधिनि ] नहीं होती और इसका स्वाद कड़वा होता है। यहाँ इसे शुद्ध १. सुगधित, तेल और इस प्रादि वैचनेवाला । अत्तार । उ०- करते हैं और इससे खींचकर विरोज का तेल निकालते हैं। ए गंधी, मति मंध तू अतर दिखावत काहि । करि फुलेल को ... मिट्टी के तेल में से भी इसका तेल निकाला जाता है। यह आचमन मीठो कहत सराहि ।-विहारी (शब्द०)। २. गंधिया प्रोपध में बहुत काम आता है। इसका शोधा हया सत्त नाम की घास । गाँधी । ३. गंधिया नाम का कीड़ा। निकालकर दवा में मिलाते हैं और मरहम बनाकर फोड़े गंवीलाल-वि० [हिं० गंदा ] मैला। गेंदला । बदबका राज - यादि पर भी लगाते हैं। एक विरोजे में ताड़पीन के ऐसी बहता पानी निर्मला, बंधा गंधिला होय । साधु जन रमते भलें, गंध पाती है। इसे फंदर भी कहते हैं। यह हिमालय और दाग न लार्ग कोय ।-कवीर (शब्द०)(जो भीमार . शिवालक पर्वतों के जंगल से भी आता है। इस गंधाभिरोजा, धार तीच्छन महा गंधीलो नौर।-चरण बानी, पृ०६०। . सरल का गोंद, चंद्रस भी कहते हैं। गंवेंद्रिय-संश सी० [सं० गन्येन्द्रिय ] घ्राण । नासिका को०) । . पर्या---श्रीवास। थौवेष्ट । वक्षयूपका श्रीपिष्ट । पद्मदर्शन। गधेज-संहा सी० [सं० गन्ध] अगिया घास । नकवप। यास। वायस । चितागंध। धीरस। पांग। गंधेल-मया ५० [सं० गन्ध] एक छोटा पेड़ या कार। तिलपर्ण । विशंप-यह हिमालय के किनारे किनारे पंजाब से सिकिम - गंधाम्ला-संशादी० [सं०] जंगली नीबू [को०)। 'तक होता है। यह बंगाल और दक्षिण में भी मिलता है। गंवार-मंचा पुं० [सं० गन्धार ] दे० 'गांधार'। इसकी पत्तियों और व्हनियों से रोई होती हैं। और उनमें से गंधारी-संशा की [सं० गान्धारी ] दे० 'गांधारी'। कड़ी सुगंध निकलती है । पत्तियाँ पाठ दस इंच लंबे सींकों गंधाला-संवा स्त्री० [सं० गन्याला ] एक गंधमयी लता [को०] 1. में लगती हैं, जो नुकीली पीर डेढ़ दो इंच लंबी होती हैं। गंवाली-संशा स्त्री० [२० गन्वाली ] १. प्रसारिणी। गंधपसार । इसमें सफेद रंग के फूल और बेर के समान लंबी लंबी फलियाँ लगती हैं। पत्तियाँ मसाले के काम में तया छाल और जड़ २. भिड़ । ततैया (को०)। दवा के काम में आती है। ___ गंवालु-वि० [सं०. गन्धालु] गंधाय । गंधपूर्ण । सुगंधित [को०) । गंबाशन-संचा पुं० [सं० गन्धाशन] पवन । वायु।। गंधला' संशा स्त्री० [हिं० गंध ] [ मो गंधली ] एक प्रकार की गंधाप्टक-संचा पुं० [सं०] आठ गंधद्रव्यों के मिलाने से वना. हुआ . चिड़िया। - एक संयुक्त गंध जो पूजा में चढ़ाने और यंत्रादि लिखने के गघलान-वि० दुगंध करनेवाला । गंधोत्कट--संका पुं० [सं० गन्धोत्कट ] दमनक । दौना मिले। काम में आता है । अष्टगंध । ". विशेप-तंत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओं के लिये भिन्न- गंधोत्तमा-संशा स्त्री० [सं० गन्धोत्तमा द्राक्षामा -भिन्न गंवाप्टक का विधान पाया जाता है। तंत्र में पंचदेव प्रधान [को० " हैं। उन्हीं के अंतर्गत सब देवता माने गए हैं। अतः गंधाष्टक गंधोपजीवी-संधा पुं० [सं० गन्धोपजीविन सगंधविक्रेता - भी पांच ही हैं। शक्ति के लिये चंदन, अगर, कपूर, चोर, गंधोपल-संत्रा ० [सं० गन्धोपल] गंधक [को० 'कुम, रोचन, जटामासी, कपि, विष्णु के लिये चंदन, अगर, गंधोली-संद्या प्रो० [सं० गन्धोली] १. भितीजी . होवेर, कुट, कुंकुम, उशीर, जटामासी और मुर; शिव के ३. इंद्राणी को०] | .. वा ] . .