पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१२५

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गंधोष्णीष "१२०१ .:. गंगेरनः .. गंधोष्णीष-संघा पुं० [सं० गन्धोष्णीष ] सिंह (को०)।

चरक ने दो प्रकार का कहा है. एक तो उत्तान दूसरा

गंधीतु-संज्ञा पुं० [सं० गन्ध+श्रोतु ] दे० 'गंधविलाव' । । गंभीर ।-माधव०, पृ०१५१ गंधौली-संक्षा स्त्री० [सं० गन्धौली ] कपूरकचरी। गंभीरक-वि० [सं० गम्भीरक] गहरा । गंभीर (को०)। ... . गंध्य-संज्ञा पुं॰ [सं० गन्ध्य ] वह वस्तु जिसमें अच्छी महक हो। गंभीरज्वर-संक्षा पुं० [सं० गम्भीर-+-ज्वर ] मल के रुक जाने से, ... सुगंधयुक्त वस्तु ।' जलन से, श्वास खाँसी से उत्पन्न ज्वर-माधव०. पृ०३६ । । गंध्रपल-संघा पु० [सं० गन्धर्व प्रा० गंधव्य] दे० 'गंधर्व' । उ-- गंभीरवेदी-संक्षा पुं० [सं० गंभीरवेदिन] वह हाथी जो अंकुश की : गंध्रप जित प्रस्थ तिहि लिन्नव । गोरख गुरु वरदान गहरी चोट को भी कुछ न माने । मत्त हाथी .. सु दिन्नव 1--प. रासो, पृ० १५४ । . . गंभीरा-संथा स्री० [पुं० गम्भीरा ] -एक नदी का नाम को० | गंध्रपेश--संज्ञा पुं० [हिं० गंध्रप+स० ईश] गंधों के राजा। गंभीरिका-संगा पुं० [मं०] बड़ा ढोल ।। .. .. .." गंधर्वराज 1 30-गंध्रपेस गीवनि गुह्मपति गंधवाह गुर। गंसह-संज्ञा पुं० [सं० ग्रन्थि] १. गाँठ 1 द्वेपा। उ०—कहा हमहि । सुजान०, पृ०१। .: रिसि करत कन्हॉई। इहरिसि जांइ भरो मथुरा पर जहँ गंध्रबधु-संज्ञा पुं० [सं० गन्धर्व, प्रा० गंधव्व ] दे० 'गंधर्व' । उ०- है कंस बसाई। अपने घर के तुम राजाहौ,सव के राजा कंस। ___ सुरंग गुलाल कदम और कूजा । सुगंध वकौरी गंध्रव पूजा :-- सूर श्याम हम देखत ठाढ़े अव सीते ए गंस ।-सूर (शब्द०)। जायसी ग्रं॰, पृ० १३ । । २. लाग की बात । आक्षेप । ताना। उ०-चलतं सो सोहति .. गंध्रव-संज्ञा पुं० [सं० गन्धर्व, प्रा० गंधब्ब] दे० 'गंधर्व' 1 उ०- . गति गजहंस । हँसति परस्पर गावत गंन ।-सूर (शब्द०)। प्रथम पुत्र सोमेस गंधपुर ढुढा गढ्ढिय । भई सुद्धि गंध्रवन गंसना_किस [सं० ग्रन्थन] अच्छी तरह 'कसना जकड़ना। . पुहुप मंगल दुज पढ्ढिय । -पृ० रा०,१।६८६ । गाँठना। उ०—लाल उन सुनी मनोहरं बंसी। नहिं सँभार . गंफा -संज्ञा पुं० [हिं० गफा] बड़ा कौर जो तेजी से खाया जा अजहू युवतिन बल मदन भुगंगम अंसी। वृदांवन की माल . ' रहा हो । ग्रास । उ०-गरमैं गरमैं हेलुया गंफा लीजी कलेवर लता माधुरी गॅसी। सूरदास प्रभु सब सुख दाता ले .. मारि ।--पलटू०, भा० १, पृ० २१ । गंभारिका-संशा स्त्री० [सं० गम्भारिका] दे० 'गंभारी'। भुज वीच प्रसंसी ।—सूर (शब्द०)। . .. गंभारी-संशा खी० [सं० गम्भारी] एक बड़ा पेड़ जिसके पत्ते पीपल गगन-----संवा पुं० [सं० गगन] दे० 'गगन' 1 30-धूनि रमा गुरिया के पत्तों के से चौड़े होते हैं । . सरकावें । गगन चढ़ाय के जग भरमा ।-कवीर सो०, पृ० ८२६। विशेष--इसकी छाल सफेद रंग की होती है और उसमें से दुध स दूध गॅगरी—संघा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार की कपास जिसको बनी भी का निकलता है । फूल और फल पीले होते है। इसकी छाल और कहते हैं। ... .. .. फल दवा में काम आते हैं। छाल कुछ कुछ कसैलापन, और विशेष---इसकी पत्तियां चीड़ी. 'और. बड़ी तथा रेशे पतले और मिठास लिए कड़वी होती है। वैद्यक में यह भारी, दीपक, नरम होते हैं । फूल के नीचे की कमरखी पत्तियाँ बड़ी और पाचक, वृष्य, मेधाजनक तथा रेचक मानी गई है । इसका बैंगनी रंग की होती हैं। इसे बिहार में जेठी, बंगाल में भोगला . प्रयोग आमशूल बवासीर, शोष, क्षयी और ज्वरादि में होता और बरार में टिकड़ी या जूड़ी आदि कहते हैं। .. ..... . है । फल पकने पर कसैला और खटमिट्ठा होता है। गँगला-संज्ञा पुं० [हिं० गंगा] एक प्रकार का शलगम जो गंगा के . पर्या-काश्मरी । श्रीपर्णी । मधुपर्णी । भद्रपर्णी । भद्रा। किनारे होता है । यह आकार में बड़ा. और अच्छा होता है। गोपभद्रा । कृष्णफला । कट फला । कंभारी । कुमुदा । हीरा । गँगवा----संज्ञा पुं० [देश॰] एक पेड़ का नाम जो 'दक्षिण में समुद्र के कृष्णवृत्तिका। सर्वतोभत्रिका। महामुद्रा। स्निग्धपणी । . -किनारे तथा-वरमा, अंडमन और लंका में होता है। . कृष्णा । रोहिणी । गृष्टि । मधुमती । सुफला । मोहिनी। विशेष—यह सदाबहार होता है। इससे सफेद रंग का दूध . महाकुमुदा । काश्मीरा । मधुरसा।

निकलता है जो हवा. लगने से जम जाता है और काले रंग का .

गंभोर'- वि० [सं० गम्भीर ] १. जिसकी थाह जल्दी न मिले। होता है । ताजा दूध बहुत, "खट्टा होता है, और लोगों का . नीचा । गहरा । जैसे, गंभीर नद । २. जिसमें जल्दी घुस न विश्वास है कि जहरीला होता है। इसकी लकड़ी-दियासलाई .. सके। घना ! गहन । ३. जिसके अर्थ तक पहुँचना कठिन यादि बनाने के काम में आती है। इसे: कड़वा, फल या कड़वा हो । मुदा जटिल । जैसे, गंभीर विचार । ४. घोर । भारी। पल भी कहते हैं। . .... . . जैसे, गंभीर निनाद । ५. शांत । सौम्य । जैसे, वह बड़ा गँगेटी-संज्ञा स्त्री० [गङ्गाटी] एक बूटी जो दवा के काम में - . गंभीर आदमी है। .. आती है । यह : फोड़े को गलाती और मल-मूष- लाती है। . गंभीर संपु०१. जंभीरी नीबू । २. कमल । ३.. ऋग्वेद में एक गंगेरन.-संज्ञा स्त्री० [सं० गाङ्गरुको ] एक प्रकार का पौधा जो पीपध- . प्रकार का मंत्र । ४. शिव । ५.. एक राग जो श्रीराग का शास्त्र में चतुविध; बला के अंतर्गत माना जाता है, और सहदेई पुत्र माना जाता है। नुमत् 'नो मत से यह हिंडोल राग, काके पौधे के समान होता है।..... . . . पुत्र है। . वात रोग का एक भेद । उ०—यह वात रक्त : विशेष-सहदेई. से इसमें भेद यह है कि इसके पत्ते अधिक मोट..