पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१२८

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विना - गवारि...... १२०४ गउख . प्रभु तुम वह नाइक, हम गॅवारि, तुम चतुर कहाये ।-नंद० के रस बसन सबनि गॅसि छोड़ि दयो है। विहसि आपने उर ग्रं०, पृ०३५७1 ... सों लाल लगाय लयो है।-नंद००, पृ० २१ । . गवारि -संत्रा सौ हि०] गवार स्त्री। गवारी। 50-बरषा गॅसीला-वि० [हिं० गाँसी] [वि० स्त्री गसीली] गाँसीवाला। तीर रितु बीतन लगी, प्रति दिन सरद उदोति । लह लह जुवार के समान नोकदार । चुभनेवाला । 30-लखनि गॅसीलो त्यों की अरु गॅपारि की होति ।-मत्ति० ग्रं०, पृ०४४४ . फंसीली नय फांसी पो हँसीली सों हिय मैं विषम विप बै गॅवारिन-वि० [हिं० गॅचार+इन (प्रत्य॰)] अशिष्ट । बेतहजीव । गई।-(शब्द०)। 'फूहड़। उ०-अंगरेजी फैसनबालियाँ औरों को गँवारिन गैसीला-वि० [हिं० गॅसना] गंसा हुया । ठस । ३. 'गसीला'! समझती थीं, और गवारिन उन्हें कुलटा कहती थीं।- गसीली-संज्ञा स्त्री० [] चुभनेवाली। गांव्वाली। उ०-सुन गॅसीली काया०, पृ० १७२। बात हायों के मले । छिल गया दिल हाथ में छाले पड़े।-

गॅवारी'- संशा स्त्री० [हिं० गॅवार]. १. गवारपन । देहातीपन । २. चोले०, पृ०६१।

.... मूर्खता । बेवकूफी । अज्ञानता । ३. गॅवार स्त्री। ग-संज्ञा पुं० [सं०] १. गीत 1 २. गंधर्व । ३. गुरुमात्रा । २.गणेश। ... गवारी२- वि० घी [हिं० गॅवार--(प्रत्य॰)] १. गवार का सा। ग-मंशा पुं० [सं०] १. गानेवाला । जैसे,—सामग। २. जानेवाला । ... जैसे, गेवारी यौल । २. भद्दा । बदसूरत । वेढुंगा । जैसे, गवारी पहुँचानेवाला । जैसे,—अध्वग, कठग । - वृही। वारी इजारबंद। विशेष—इस अर्थ में यह समस्त शब्दों के अंत में प्राता है। विशेष-इस विशेषण का प्रयोग स्पीना ही में विशेष होता है, ग-@-संक्षा पुं० [सं० गण, प्रा० गन्न, गय ] हाथी। ८०--कि ' बद्यपि दिल्ली आदि में पुं० में भी होता है। करव ततिखने होय गन मनिधने झखइते वेग्रोकुल मने 1--- गॅवारू-वि० [हिं० गॅवार+ऊ (प्रत्य॰)] गंवार का सा। गंवार विद्यापति, पृ० ५०६ । की रुचि का । भट्टा । वेदंगा । गइंद@-बापुं० [हिं०] दे० 'गयंद'। गवेलि@, गबेली@--संज्ञा चौ० [हिं० गाँव--एली (प्रत्य॰)] गांव गइनाही -सहा स्त्री० [म० ज्ञान] जानकारी। उ०-उसी री माई - की स्त्री। ग्राम में रहनेवाली औरत। उ०—(क) हम है श्याम भुग्रंगम कारे। मोहन मुख मुसकान मनह विप जाते मरे - गंवलि ग्वालि नौगन की बेटी तिन्हें, दीवे को संकोच अति सो मारे। फुरै न मंत्र यंत्र गइनाही चले गुनी गुन डारे।-- ... 'न्याम पासि ल्याइयो --ब्रज पं०, पृ० २७ । (ख) रूप सूर (शब्द०)। .. मद छाक तगवेली नरवीली ग्वाति तोहि ता रूपी तमगनि गई करनाल मि० अ० [सं० गति, प्रा० गई+हि फरना | तरह

उमदात है 1-धनानंद, पृ० २६ ।

देना । जाने देना। छोड़ देना। ध्यान न देना। उ०-(क) गॅस'@-संज्ञा पुं० [सं० ग्रंथि] १. गाँठ । द्वप। वैर । उ० मानी केलि को रैनि परी है, घरीक गई करि जाहु दई के निहोरे ।- ..राम अधिक जननी ते जननिहूँ गॅस न गही। सीय लखत दास (शब्द०)। (ख) तुम्है लग लागी मुबारक पान सुनागर रिपुदमन राम रख लखि सब की निवही।-तुलसी (शब्द०)। ही सृख सागर सार । नई दुलही की लटूरता देखि गई करि २. लाग की दात । मन में चुभनेवाली बात । आक्षेप । ताना। जैयत वारहिं वार |--मुधारक (शब्द०)। चुटकी। गईबहोरी-वि० [हिं गया--बहोरना = लौटना ] खोई हुई वस्तु गैस--संज्ञा स्त्री० [सं० कया = चावुक ] तीर की नोक । गांसी। को पुनः देने अथवा विगढ़ी हुई वस्तु को बनानेवाला । उ०- गई बहोर गरीव निवाजू । सरल सबल साहब रघुराजू ।- सना'@-क्रि० स० [सं० ग्रन्थन] १. अच्छी तरहं कसना। तुलसी (शब्द०)। नकड़ना । गांठना । २. बुनावट में तागों या सूतों को परस्पर गथ-संभा नौ [देश॰] एक प्रकार की घास जो अफगानिस्तान खुब मिलाना जिसमें छेद न रह जाय। बनावट में बाने को और बिलोचिस्तान में आपसे प्राप होती है और भारत में 'कसना। अनेक स्थानों में चारे के लिये बोई जाती है। गॅसना-कि अ०१.बुनावट में सूतों का खूब पास पास होना। विशेप- इसे तैयार करने के लिये पहले जमीन को अच्छी तरह ठे जाना। कस जाना। २. ठसाठस भरना। छा जाना। जोतते और उसमें खाद डालते हैं। इनके बीज कुमार कातिक उ०—(क) मनै रघुराज ब्रह्मलोक के अवध लगि गमन में में खेत में बनाई हुई मेड़ों पर बो देते हैं और पानी से खूब गसिगै विमान के कतार हैं।-रघुराज (शब्द०.)। (ख) सींचते हैं। जाड़े में पाठवें दिन और गरमी में पांचवें छठे दिन विधु कसी कला वधू गैलनि में गैसी ठाड़ी गोपाल जहाँ इसमें पानी की आवश्यकता होती है । पहली बार यह छह जुरिगो!--पजनेत (शब्द०)। महीने में तैयार होती है और तदुपरांत साल भर में दस बार गसना --- क्रि०अ० [सं० ग्रसन] ३० 'असना' । उ० ---यह रहस्यशील काटी जा सकती है। इसे विलायती होल या हूल भी कहते हैं। दूरधिगम्य सुनीता को मानो एक ही साथ गैस लेता है।- गउखg--संभा श्री० [सं० गवाक्ष ] दे० 'गीता'। उ०-बाबहिया ...मुनीता, पृ० २६६ । चढ़ि गइखसिरि, चढ़ि के चहरी भीत। मत ही साहिद बाहड़इ, गंसिर-संचासी० [हिं०] गांसी । गाँस । क्रोध । ३०-सुनि पिय कर गुन यावइ चीत।-ढोला०, २०२८।