पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१२९

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गरि गगनाच्वंग गरि-संसा मी० [सं० गौरी] दे० 'गौरी,। उ०-कतने जतने गंगनचुबी-वि० [सं० गगन+चुम्बिन] आकाश को छूनेटाला। गरि प्रराधिन भागिय स्वामि सोहाग । --विद्यापति, पृ० बहुत ऊँचा । जैसे,—गगनचुबी प्रासाद । १२०। गंगनघूल-संश सी० [सं० गगन+घूलि>हिं० धूल ] १. कुकुर- . गउव@:-संदा स्त्री० [सं० चौ] गऊ। गाय । उ०-गउव सिंघ मुत्ते का एक भेद। विशेष- यह गोल गोल सफेद रंग की होती हैं और बरसात के " पं० (गुप्त), पृ० १३० । दिनों में साखू आदि के पेड़ों के नीचे या मैदानों में निकलती . गउहरु · संज्ञा पुं० [ फा० गौहर ] मोती। पाये गउहरु आपे है। इसके ताजे फूल की तरकारी बनाई जाती है। कई दिनों हीरा । अाप परखि विसाहे हीरा 1- प्राण, पृ० २४०।- की हो जाने पर इसके वीच से सूखने पर हरे रंग की मैली .. गळg+-संशा भी० [सं० गो, गौ] गाय । गौ। उ०-कर्महि ते धुल निकलती है, जो कान वहने की बहुत अच्छी दवा है। बन ग चराई। कर्म ते गोपी केलि कराई 1---कवीर सा०, २. केकड़े या केतकी के फूल पर की घूल । पृ०६६० गगनघूलि-संक्षा बी० [सं०] १. केतकी या केवड़े के पेड़ पर पड़ी। योoगऊघाट = गाय बैलों के पानी पीने का समथल घाट। धूलि । २. एक प्रकार का कुकुरमुत्ता [को॰] । = गोपद। गगनध्वज-संज्ञा पुं० सं०] १. सूर्य । २. वादल। . गळपद -संग सी० [सं० गोष्ठपद] है 'गोपद' । उ-गऊपद गगनपति-संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र। माहीं पहोकर फदक, दादर भरय झिलोर 1-गोरख०, पृ० गगनबाटिका संज्ञा स्त्री० [सं०] आकाश की वाटिका अर्थात् असंभव . २११ । वात । वि० दे० 'गंधर्वनगर'। उ०--गगनवारिका सींहि भरि . गककर संशा पुं० [सं० केकय] पंजाव के उत्तरपश्चिम में रहनेवाली __ भरि सिंधु तरंग। तुलसी मानहिं मोद मन ऐसे अधम । एक जाति। गगनंतरि@ मंचा पुं० [सं० गगन+ अन्तर ] ब्रहारंध्र या त्रिकुटी . अभंग ।-तुलसी (शब्द०)। . का स्थान । उ०- चंचल नारि न जाय अपाडे । गगनंतरि गगनभेड़-संशा खी० [सु० गगन+हिं०'भेड़ ] कस्कूल या कुज, धनुप सहजि महिं हाड़े। प्रारण, पृ०१०१।। . नाम की चिड़ियाँ जो पानी के किनारे रहती है। . ..- गगन-संज्ञा पुं० [सं०] अाकाश । गगनभेदी वि० स० गगनभेदिन] आकाशभेदी । बहुत ऊँचा । मुहा०-- गगन खेलना=बहते हुए पानी या नदी आदि का गगनरोमंथ----संबा पुं० [सं० गगनक्षोमन्थ ] निरर्थक बात । असंभव . उछलना । गगन होना- पक्षी य गुड्डी आदि का बहुत ऊपर बात (को०)। श्राकाश में जाना। गगनवटी@ संज्ञा पुं० [सं० गगनवर्ती] सूर्य ।- (डि०)। यो...-गगनध्वग। गगनच्वज । गगनेचर । गगनोल्मुक। गगनवाणी-संज्ञा श्री० [मं०] नाकाशवाणी। २. शून्य स्थान । ३. छप्पय छंद का एक भेद जिसमें बारह गुरु और गगनविहारो'--संज्ञा पुं० [4. गगनविहारिन् ] १. प्रकाशपिंड । १२८ लघु, कुल १४० वर्ण या १५२ मात्राएँ अथवा १२ गुरु २. सूर्य । ३. देवता (को०)। और १२४ लघु, कुल १६ वर्ण या १४८ मात्राएं होती हैं। गगनविहारी२-वि० ग्राकाशचारी नभचारी। ४. अवरक। गगनस्थ, गगनस्थित-वि० [सं०] आकाश में स्थित (को०)।... गगनकुसुम-संघा पुं० [सं०] आकाशकुसुम। गगनस्पर्शन-संज्ञा पुं० [सं०] १. पाठ मरुतों में से एक । २. वायु । गगनगढ़-- संशा पुं० [सं० गंगन+हिं० गढ़] गंगनस्पर्शी प्रासाद । पवन [को०] 1 . बहुत ऊँचा नहस । बहुत ऊँचा गढ़ । उ०—देखा साह गगनगढ़ गमनस्पर्शी-वि० [सं०] आकाश को छूनेवाला । बहुत ऊँचा। . इंद्रलोक कर साज । फयि राज फुर ताकर सरग कर अस गगनस्पृक-वि० [सं०] आकाश को छुनेवाला । वहुत ऊँचा। . राज । - जायसी (शब्द०)। गगनांगना-संशा स्त्री० [सं० गगनाङ्गना] १. अप्सरा । २. एक छंद गगनगति- संश पुं० [९०] १.वह जो ग्राफाश में चले। आकाश- चारी । २. सूर्य, चंद्र प्रादि ग्रह । ३. देवता ! का नाम (को०)। गगनांगरा-संघा मी० [सं० गगन---गिराकाशवाणी। उ०- गगनाव. संघा पुं० [सं० गगनाम्बु] आकाश से गिरा हुया था - गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह 1--मानेस, १११८६ । वष्टि का जल । गगनगुफा -संघा पुं० [सं० गगन+हि गुफा] ब्रह्मरंध्र । उ०- विशेप-वैद्यक में यह जल त्रिदोषघ्न, बलकारक, रसायन, शीतल गगन गुफा के घाट निरंजन भेटिए । घरम०, पृ०४१ ॥ और विपनाशक माना जाता है । गगनचर'-संधः पुं० [सं०] १. पक्षी । २. ग्रह। नक्षत्र । ३. देव। गगनाग्र--संज्ञा पुं० [सं०] आकाश का सबसे ऊँचा भाग या स्थान 'येयता [को०४. २७ नभन जो चंद्रमा की पत्नी को भूप में (को०)। है।1०।५. राजिवक [को०)। गगनाधिवासी संमा पुं० [2 गगनायिवासिन्] ग्रह । नक्षत्र कि गगनचर-वि० याकाश में चलनेवाला आकारागामी। गगनावग-संका पुं० [सं०] १. सूर्य । २. ग्रह । ३.देवता [को०] ।