पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१३१

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१२०७ - गजगाह गर्ज-संवा पुं० [सं०] [बी० गजी] १. हाथी। २ एक राक्षस का गजक-संझा ० [फा० कज़क, गजक ] १. वह चीज जो शराय आदि नाम, जो महिपासुर का पुत्र था। ३. एक बंदर का नाम जो पीने के बाद मुह का स्वाद बदलने के लिये खाई जाती है। रामचंद्र की सेना में था। ४. पाठ की संख्या । ५. मकान की जैसे,कबाब, पापड़, दालमोठ, सेव, बादाम, पिस्ता मादि । नींव या पुश्ता। ६.ज्योतिष में नक्षत्रों की वीथियों में से शराब के बाद, और मिठाई, दूध, रबड़ी आदि अफीम या भंग - एक । ७. लंबाई नापने की एक प्राचीन माप जो साधारणतः के बाद । चाट । २. तिलपपढ़ी। तिलशकरी । ३. नाश्ता । ३० अंगुल की होती थी किो०।। जलपान 1 ४. चटपट खा जाने की चीज । गजरे संज्ञा पुं॰ [ फा० गज [ १. लंबाई नापने की एक माप जो गजकरन पालू मंशा ५० [म गजफरतु] अग्वा नाम की लता सोलह गिरह या तीन फुट की होती है। __जिसमें लंवा कंदा पड़ता है। वि० दे० 'अरुवा' । विशेष- गज कई प्रकार का होता है; किसी से कपड़ा, किसी से गंजकर्ण-संन्ना पुं० [सं०] १. एक यक्ष का नाम (को०२ दान । जमीन, किसी से लकड़ी, किसी से दीवार नापी जाती है। दद्र, रोग। .. : पुराने समय से भिन्न भिन्न प्रांतों तथा भिन्न भिन्न व्यवसायों गजमी =संशबी० [सं०] एक बनौषधि [को०] . में भिन्न भिन्न माप के गज प्रचलित थे और उनके नाम भी गजकुभ संधा पुं० [स० गजकुम्म] हाथी के माथे पर दोनों और उठे अलग अलग थे । उनका प्रसार अब भी है। सरकारी गज ३ हुए भाग। हाथी का उभरा हुआ मस्तक । फुट या ३६ इंच का होता है। कपड़ा नापने का गज प्रायः गजकुसुम-संग्रा पुं० [सं०] नागकेसर। लोहे की छड़ या लकड़ी का होता है जिसमें १६ गिरहें होती गजर्माशी---मंधा ई० [सं० गजकूर्माशिन] बनतेय । गरुड़ (को०)। हैं और चार चार गिरहों पर चौपाटे का चिह होता है। गजकेसर-मंना पं० ( गज+केसर) एक प्रकार का धान जो अगहन । कोई कोई २० गिरह का भी होता है। राजगीरों का गज में तैयार होता है। इसका चावल बहुत दिनों तक रहता है। .. लकड़ी का होता है और उसमें १४ तसू होते हैं। एक एक गजझाड़ि-----पंचा पं० [म गजक्रीडित] नृत्य में एक प्रकार का भाव । इंच के बराबर तसू होता है । यही गज बढ़ई भी काम में गजखाल संज्ञा पुं० [सं० गज+हिंसाल] हाथी का चमड़ा। गज लाते हैं । अब इसकी जगह विशेषकर विलायती दो फुटे से की खाल । उ०= गजखाल कपाल की माल विसाल सो गाल काम लिया जाता है। दजियों का गज कपड़े के फीते का होता वजावत यावत है।--रसखान०, पृ० ३२ । है, जिसमें गिरह के चिह्न बने होते हैं । गजगति-संशा स्त्री० [सं०] १ हायी की चाल । २. हाथी की सी मुहा०-गजभर बनियों की वोलचाल में एक रुपए में सोलह मंद चाल । (स्त्रियों का धीरे धीरे चलना भारतवर्ष में सुलक्षण, सेर का भाव । गज भर की छाती होना=बहुत प्रसन्नता या समझा जाता है।) गौरव से भरी गति । ३. रोहिणी, है.' संमान का बोध करना । गज भर की जबान होना बड़बोला मृगशिरा और पार्द्रा में शुक्र की स्थिति या गति । ४.. एक . होना। उ०—क्यों जान के दुश्मन हुए हो, इतनी सी जान वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में नगण, भगए तथा एक लघु . गज भर की जबान --फिसाना०, भा० ३, पृ० २१६ । और एक गुरु होता है। जैसे,—न भल गोपिकन सौं। हंसन " '२. वह पतली लकड़ी जो वैलगाड़ी के पहिए में मूडी से पुछी तक लाख छल सों। लगाई जाती है। गजगमनसंवा पुं० [सं०] हाथी को सी मंद चाल। विशेष- यह पारे से पतली होती है और मूड़ी के अंदर मारे गजगवनी वि० [सं० गज-+-हि० गवनी] गज के समान चाल-. को छेदकर लगाई जाती है । यह पुट्ठी और पारों को मूड़ी में वाली। मंद गतिवाली। उ०-गजगवनी प्रति चंद छंद । जकड़े रहती है। गज चार होते हैं। कोमल उच्चारिय ।-पृ० रा०, २१५। . . . लकड़ी की वह छड़ जिससे पुराने ढंग की वंदूक में उसी गजगामी-वि० [सं० गजगामिन्] [वि० चौ० गजगामिनी] हाथी के ..

जाती है।

समान मंद गति से चलनेवाला । मंदगामी। क्रि०प्र०—करना । गजगामिनी-वि० सी० [सं०] हाथी के समान मंद गतिवाली। .. १४. कमानी, जिससे सारंगी आदि बजाते हैं। ५. एक प्रकार का गजगवनी। उ०-गजगामिनि वह पथ तेरा संकीर्ण केटका- ..' तीर जिसमें पर और पकान नहीं होता। ६: लकड़ी की पटरी कीर्ण । - अनामिका, पृ० ३४ । जो घोड़ियों के ऊपर रखी जाती है। विशेष-इस विशेषण का प्रयोग स्त्रियों के लिये अधिकतर होता । गजप्रसन( संया पुं० [सं० गज-प्रशन दे० 'गजाशन'। .. है; क्योंकि भारतवर्ष में उनकी. मंद चाल अच्छी समझी। ग़जइलाही=संबी पुं० [फा० गज+इलाही] अकबरी गज जो ४१ जाती है। अंगुल का होता है। .:. गजगाह-संज्ञा पुं० [सं० गज+ग्राह[ १. हाथी की झूल । उ०—(क) . गजमोवरि-संज्ञा स्त्री० [हिं०] है 'म'वरी' । उ०=सासु मोरि साजि क सनाह गजगाह सउछाह दल महावली..धाए वीर ... मुतै गज ग्रोवरि, ननद मोरि अंगना हो । हम धन सुत धवराहर जातुधान धीर के -तुलसी (शब्द०)। (ख) गजगाह :, पिय संग जगना हो।-लटू०, पृ०७३। गंगप्रवाह सम निसिनाह दुति मोतिन लसे । सिर चंद चद गजकंद-संज्ञा पुं० [स० गजकन्द] हस्तिकंद। . दुचंद दुति आनंदकर मनिमय नसे 1-गोपाल (शब्द०)।