पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१३४

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· गजमुक्ताहल . १२१० गजसह्विय |: गजमुक्ताल-संज्ञा स्त्री० [सं० गजमुक्ताफल] दे० 'गजमुक्ता'। गजरा-संज्ञा पुं० [हिं० गाजर] गाजर के पत्ते जो चौपायों को उ०-याजमुक्ताहल थाल भराई। चंदन चून को चौक पुराई 1- खिलाए जाते हैं। कबीर सा०, पृ० ४७३ । गजरा-संशा पुं० [हिं गंज समूह] १.फूल आदि की धनी गुथी जमुख–संञ्चा पुं० [सं०] गणेश का नाम । हुई माला । माला । तारा उ०-कर मंडित मोतिन को गजरा गजमुख्य---संज्ञा पुं० [सं०] हाथियों में श्रेष्ठ हाथी । गजपुगव [को॰] । दृग मीड़त आनन प्रोपत से!--वेनी (शब्द०)। २.एक गजमोचन-संज्ञा पुं॰ [सं०] विष्णु का एक रूप जिसे धारण कर गहना जो कलाई में पहना जाता है। उ०-छाप छला सुदरी उन्होंने ग्राहसे एक हाथी की रक्षा की थी। उ०-- गजमोचन झमक दम के पहुंची गजरा मिलि मानो।--गुमान (शब्द०)। | " ज्यों भयो अवतार । कहीं सुनौं सो अब चित धार-सूर ३. एक प्रकार का रेशमी कपड़ा । मशरू। .. - (शब्द०)। गजराज--संद्या पुं० [सं०] बड़ा हाथी। उ०-महामत्त गजराज कहें यौ० • गजमोचन क्रीड़ा हाथी को प्राह से बचाने की क्रिया। वस कर अंकुश खब---तुलसी (शब्द०)। . 30-एहि घर बनी क्रीड़ा गजमोचन और अनंत कथा नति गजरात्र--संज्ञा पुं० [सं०] रात्रियों का क्रम या शृंखला [को०] । गाई । सूर०, ११६ गजरी'-संज्ञा स्त्री० [हिं० गजरा] एक आभूपण जिसे स्त्रियाँ कलाई गजमोटन -संज्ञा पुं० [सं०] सिंह [को०] । में पहनती हैं। . . . गजमोती - संचा पुं० [सं० गजमौक्तिक, प्रा० गजमोत्तित्र] गजमुक्ता गजरी-संशा स्त्री० [हिं० गाजर] छोटी गाजर । इसके कंद छोटे, गजयूय-संज्ञा पुं० [सं०] हाथी का झुंड [को०] । पर अधिक मीठे होते हैं। गजर-संज्ञा पुं० [सं० गर्ज, हिं० गरज] १. पदर पहर पर घंटा वजने गजरौट-संज्ञा स्त्री० [हिं० गाजर + पीटा (प्रत्य॰)] गाजर की का शब्द । पारा । उ०—पहरहि पहर नजर नित होई। हिया पत्ती । गजरा। निसोगा जान न कोई।--जायसी (शब्द०)। गजल-संझा स्त्री॰ [फा० गजल] - फारसी और उर्दू में विशेपतया क्रि०प्र०-वजना। शृगार रस की एक कविता जिसमें कोई शृखलाबद्ध कथा २. घंटे का वह प्राब्द जो प्रातःकाल चार बजे होता है। सबेरे नहीं होती। के समय का घंटा। उ०-फजर को गजर बजाऊँ तेरे पास विशेष—इसमें प्रेमियों के स्फुट कथन या प्रेमी अथवा प्रेमिका मैं।--सूदन (शब्द०)। हृदय के उद्गार आदि होते हैं। इसका कोई नियत छंद नहीं मुहा०-गजरदम या गजरवजे-तड़के। पौ फटते। पास होता । गजल में शेरों की संख्या 'ताक' होती है। साधारण भोरे । जैसे,-वह गजरदम उठ खड़ा हुया । गजर का बक्त= नियम यह है कि एक गजल में पांच से कम और ग्यारह से सबेरा। उप :काल । जैसे-उठो गजर का वक्त हुमा; ईश्वर अधिक शेर न होने चाहिए । पर कुछ माने शायरों ने कम से ' का नाम लो! कम तीन शेर और अधिक से अधिक पच्चीस शेर तक की ३.जगाने की घंटी। जनौनी। अलारम | ४. चार, पाठ और गजलें मानी हैं । अाजकल सबह, उन्नीस और इक्कीस तक की बारह बजने पर उतनी ही बार जल्दी जल्दी फिर घंटा बजने गजलें लिखी जाती हैं। का शब्द। यौ०-गजलगो-गजल लिखनेवाला । गजर-संश पुं० [हिं० गजर बजर=मिला जुला] लाल और गजलील संज्ञा पुं० [सं०] ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक जिसमें न ., सफेद मिला हुआ गेहूँ। चार लघु मात्राएँ और अंत में विराम होता है। गजरथ- संज्ञा पुं० [सं०] वह बड़ा रथ जिसे हाथी खींचते थे। पहले • ऐसे रथ राजाओं के यहाँ होते थे और लोग उनपर चढ़कर गजवदन--संज्ञा पुं० [सं०] गणेश । गजास्य। लड़ाइयों में जाते थे। गजवल्लभा-संघा सी० [सं०] गिरिकदली [को०] । - गजरप्रवव - संज्ञा पुं० [सं० गजरप्रवन्ध] गायन और नृत्य आदि के गजवान--संज्ञा पुं० [हिं० गज+वान (प्रत्य॰)] महावत। हाथीवान । प्रारंभ में श्रोताओं के सामने नाने और बजानेवालों का अपना । गजविलसिता-संचा स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत्त (को०] । -, स्वर और बाजा आदि मिलाना। गजवीथी-संचा त्री० [सं०] रोहणी, मृगशिरा और आर्द्रा नक्षत्रों गजर वजर-संज्ञा पुं० [अनु०] १.घाल मेल । बेमेल की मिला- का समूह (को०] । ...वट । अंडथंड। - गजवैद्य--संक्षा पुं० [सं०] हाथी का चिकित्सक । हस्तिवैद्य। । - कि०प्र०-करना । होना। गजबज-संच पुं० [सं०] हाथियों का समूह या सेना (को०] । . २.खाद्याखाद्य । भक्ष्याभक्ष्य। पथ्यापथ्य । जैसे,--लड़के ने कुछ गजशाला---संबा सी० [सं०] वह घर जिसमें हाथी बाँधे जाते। गजर बजर खा लिया होगा। फीलखाना । हथिसाल । . . . .: गजरभत्ता-संज्ञा पुं० [हिं० गाजर--भात] गाजर के टुकड़ों को गजशिक्षा-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] हस्तिशास्त्र जिसमें हाथियों के विपय में . मिलाकर उवाला हया चावल। सारी ज्ञातव्य बातों का समावेश है [को०)। गजरभात--शा पुं॰ [हिं०] 'गजरभत्ता'। गजसाह्वय-संज्ञा पुं० [सं०] हस्तिनापुर नगर का नाम [को०] 1.