पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१३६

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| गट .१२१२ गठ्ठल | उत्तरोत्तर वृद्धि होना । उ०-गोधूलि गझिनाय । प्रेमघन०, सुमात्रा द्वीप का नाम] एक प्रकार का गोंद जो कई ऐसे वृक्षों पृ०८१७।। में निकलता है जिनमें नफेद दूध रहता है। गट-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'गट्ट'। विशेष-- यह प्रायः रबर की तरह काम में आता है, पर उतना - गटइया संझा सी० [हिं० गटई ] कंठ । गला। गर्दन । उ० - मुलायम और लचीला नहीं होता। विलकुल खुले स्थानों में दूध और पानी धादि सहता हया भी यह दस-दस बरस तक जर्व जमराज, रजायसु ते तोहि ले चलिहैं भट बाँधि गइया । ज्यों का त्यों रहता है। और यदि नालियों आदि से सुरक्षित - तुलसी (शब्द०)। - स्थानों में रखा जाय, तो बीस-बीस वर्ष तक काम देता है। गटई संचा स्त्री० [सं० कएल, हि० घंट प्रयत्रा म० गल, गरगड, यह प्रायः बिजली के तारों के ऊपर रक्षार्य लगाया जाता है। हिं० गट+ई] कंठ गला । इसके खिलौने, वटन आदि भी बनते हैं। . - गटई संशा सी० [सं० गुटिफा] १.१० गोटी'। २. दे० 'गिट्टी'। गटी स्त्री संशश [मं• अन्यि, पा० गंठि] १. गाँठ। उ०-(क) - गट कना-क्रि० मं० [सं० काण्ठ, या सं० गर (=निगलना)>गट+क . चेटक लाइ हरहिं मन, जब लगि हौं गटि फॅट । साठ नाक या हि० गटई, अववा गट से अनु०] १. खाना । निगलना। - उठि भागहि, न पहिचान न भेंट ।-जायसी (शब्द॰) । (ख) | ... उ० (क) मीठा सब कोई खात है विष होइ लागै धाय । रंग भरि पाये ही मेरे ललना बातें कहत ही अटपटी । प्रति नीव न कोई गटकई, सर्व रोग मिटि जाय ।-कबीर (शब्द०)। (ख) लडकि निरखन लग्यो मटक सब भूलि गयो हटक ह्र बैं अलसात जम्हात ही प्यारे पिय प्रगट त्रिया प्रताप छूटत गयी गटकि शिल सो रह्यो मीचु जागी। मुष्टि को गर्द मरदि नाहिर अंतर की गटी ।-पूर (शब्द०)। ३. गठरी। उ०- | के चाणू र चुरकुट करयो कंस कोऽनुकंप भयो भई रंग भूमि अथ योष की बेरी कटी विकटी, निकटी प्रकटी गुरु नान गटी।-रामचं०, पृ०६८। . अनुराग रागी । -सूर (शब्द०) २. हड़पना। दवा लेना। गटयाई-संध्या स्त्री० [हिं० गटई] गला । कंठ। जैसे, दूसरों का माल गटकना सहज नहीं है। गट्ट - संज्ञा पुं० [अनु॰] किसी वस्तु के निगलने में गले से उत्पन्न गटक्कना -क्रि० सं० [हिं०] ३० गटकना' । उ०--गटक्कंति होनेवाला शब्द। गिद्धिनि दोऊ मुनारे।-प० रासो, पृ० ८२।। मुहा०-गट्ट करना=(१) निगल जाना। (२) हड़प जाना। गटगट'--संज्ञा पुं० [अनु०] किसी पदार्थ को कई बार करके निगलने दवा बैठना । अनुचित अधिकार कर लेना। या घुट घुट पीने में गले से उत्पन्न होनेवाला शब्द। गट्टा–संदा पुं० [सं० ग्रन्थ, प्रा० नंठ, हिं गांठ] १. हथेली और गटगट-मि०वि० गट गट शब्द के सहित । धड़ाधड़ । लगातार। पहुंचे के बीच का जोड़ । कलाई।। '. (कोई चीज खाना या पीना)। जैसे,—साह्य बहादुर देखते मुहा०-गट्टा पकड़ना = तगादा या झगड़ा करने अथवा वल- देखते सारी बोतल गटगट करके खाली कर गए। पूर्वक कुछ मांगने या पूछने आदि के लिये फिसी की कलाई गटना-क्रि०अ० [सं० अन्यन, प्रा० गंठन] गैठना । बंधना । उ०- पकड़ना । गट्टा उखाड़ना = परास्तकरना । दबाना । हृदय की कबहूँ न पीर घटी। विनु गोपाल विधा या तनु को २. पैर की नली और तलुए के बीच की गांठ । ३. गांठ । ४. कैसे जात कटी। अपनी रुचि जितही तित बँति इंद्रिय ग्राम नैचे के नीचे की वह गाँठ जहाँ दोनों ने मिलती हैं और जो गटी। होति तहीं उठि चलति कपट लगि बाँधे नयन पटी।- फरशी या हुक्के के मुह पर रहती है। ५. वीज । जैसे,-- सूर (शब्द०)। कमल गट्टा, सिंघाड़े का गट्टा । ६. एक प्रकार की मिठाई जो गटपट-संशा की [ अनु०] १. दो या दो से अधिक मनुष्यों या चीनी या शक्कर का तार खींचकर उसे गोल या चौकोर पदार्थों का परस्पर बहुत अधिक मेल 1 मिलावट । २. सहवास । टुकड़ों में काटकर बनाई जाती है। ७. गांठ । कंद । उ०- संयोग । प्रसंग । उ०-जासों गटगट भए आस राखो वाही : सौं गट्ट प्याज सी जूतियों के साथ खायंगे।-प्रेमघन०, भा० की।-व्यास (शब्द०)। २, पृ० १६१ । गटर-संज्ञा पुं० [पं०] गंदा नाला। जैसे: गटर का कीडा। गट्टा संघा सा [देश॰] १. जहाज या नाव में उस खंभे के नीचे गटरगू-संज्ञा पुं० [अनु॰] दे० 'गुटरगू' । उ०-पेड़ों पर बुलबुल, तोते की चूल जिसमें पाल बंधी रहती है।-(लश०)। मुहा०-गट्टी करना : किसी खंभे में बंधी हुई पाल को चूल के रुकमिने, गलारें, कबूतर आदि चहकते और गटरगू करते हैं।-काले०, पृ०५१।। सहारे घुमाना। २. नदी का किनारा । " गटरमाला-संज्ञा स्त्री० [हिं० गटर+माला बड़े बड़े दानों की माला! गट्ट-संचा पुं० [हिं॰ गट्टा] मुठिया । दस्ता। . गट्ठर-संशा पुं० [हिं० गाँठ] बड़ो गठरी गट्टा । बोझा। .. गटा। हर हर हार कीन्ह का घटा । —जायसी (शब्द०)। मुहा०-गट्ठरसाधना=घुटनों को छाती से लगाकर और ऊपर ___.. २. गट्टा। बीज । ७० पहुंची रुद्र कथल के गटा ।- जायसी से हाथ बांधकर गट्ठर की तरह पानी में कूदना। ०, पृ०१०। गल-संशम्मी० [हिं गांठ + ल (प्रत्य०) गुट्ठल । गांठ । उ०—यद्धी ... गटागट-क्रि० वि० संथा पुं० [हिं०] दे० 'गटगट' । हाथ अधेढ़ पिता, माता जी, सिर गट्टल पक्का ।-पाराधना गटापारचा-संवा पुं० [ मला. गट गोंद+परचा वृक्ष अयवा पृ०७४।