पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१३७

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गट्ठा- गट्ठा १२१३ -- गठरेवा : -संज्ञा पुं० [हिं गाँठ] ['नी० अल्पा० गट्ठी, गठिया] १. घास . जाय। ५. अच्छी तरह निमिरा होना । भली भांति रचा लकड़ी आदि का बोझ। भार । गट्ठर । २ बड़ी गठरी। जाना। ठीक ठीक बताना । उ०-अंग अंग बनी मानो लिखी। बुकचा। ३. प्याज या लहसुन की गांठ । जरीय का बीसौं चित्र धनी गठी, निज मन मनी प्राजु बऐं भूप काम को।--' भाग जो तीन गन का होता है । कट्ठा । हनुमान (शब्द०)। ६. स्त्री पुरुष या नर माया के संयोग . गट्टी-संघा मी० [सं० प्रन्यि, हि गांठ[ दे० 'गांठ' । होना । विपय होना । ७. अधिक मेल मिलाप होना । जैसे, - गठ - संज्ञा पुं० [सं० गढ] दे० 'गढ़' । उ० - लंक बिधुसी वानरा आजकाल उन लोगों में खूब गठती है। के काई सराहो राजा गठ अजमेर। बीसल० रास पृ० ३३ । संयो० कि० --जाना 1-पड़ना। गठ२ संज्ञा पुं० [हिं०] गाँठ का रामालगत रूप । गाँठ । जैसे-गठकटा, गठबंध-संघा पुं० [हिं०] दे० 'गठबंधन'। गठजोरा आदि । गठबंधन-संक्षा पु० [सं० प्रन्थियन्यन, प्रा० गठबंधन] विवाह में एक . गठकटा-वि० पुं० [हिं० गाँठ+काटना] १. गाँठ काटकर रुपए ले रीति जिसमें वर और वधू के वस्त्रों के छोर को परस्पर । लेनेवाला। गिरह फट । उ०-यहुत अच्छा! अरे गठयाटे मिलाकर गांठ बांधते हैं। चल ।-शकुतला, पृ०१२ । २. धोखा देकर या वेईमानी गठरो-संपा लो० [हिं० गट्ठर का श्री और अल्ला०] १. कपड़े में से रुपया लेनेवाला। गांठ देकर वाँधा हुमा सामान । बड़ी पोटली। यकची। . गठजोड़ा-संघा पुं० [हिं० गाँठ+जोड़ना] दे० 'गठजोड़ा' । उ० - मुहा०- गठरी बांधना=(१).(असबाब बाँधकर ) यात्रा को मैं सोच रहा था कि बिना किसी आडंबर को जयंती का और तैयारी करना । (२)परों और घुटनों को छाती से लगाकर मेरा गठजोड़ा करके कोई ब्राह्मण मंत्र पढ़ देता, यस - और उन्हें दोनों हाथों से जकड़कर गठरी की प्राकृति बना संयासी, पृ० १२ लेना । गठरी साधना-दे० 'गट्ठर साधना' । गठरी फर देना = गठजोरा-मधा पुं० [हिं०] दे० 'गठजोड़ा' । उ०-दूलह दुलहिन (१) हाथ पैर तोड़ या वांधकर अथवा और किसी प्रकार तुरंग हिंडोर झूलत प्रथम समागम सो गठजोर। नंद ग्रं, बेकाम कर देना । ढेर करना । मारकर गिरा देना । (२) पृ०३७८1 मुश्ती में विपक्षी को इस प्रकार दोहरा कर देना जिसमें गठडंड-संक्षा पुं० [हिं गड ढा+डंड-एक प्रकार की कसरत] एका उसकी आकृति गठरी के समान हो जाय । गठरी मारना प्रकार का लंड जो दो नों हाथों के बीच के स्थान में गड्ढा दे० 'गठरी बांधना (२) . वनाकर किया जाता है। इस प्रकार इंड करने में अधिक २. संचित धन । जमा की हुई दौलत । परिश्रम करना पड़ता है। मुहा०-गठरी मारना=अनुचित रूप से किसी का धन ले। गठड़ी संज्ञा सी० [हिं०] दे० 'गठरी'। उ०- लोग लगे धमाधम । लेना । ठगना। ____ गठड़ियां पटकने ।-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १११ ३. एक प्रकार की तैराकी। . गठन -संशा मी० [सं० घटन अथवा सं० ग्रन्यन, प्रा० गंठना बनावट। विशेष—इसमें तैरनेवाला अपने पैरों और घुटनों को छाती से गठना-क्रि० अ० [मं० ग्रन्यन, प्रा० गंठन, हिं गांठना का अकर्मक लगाकर और उन्हें दोनों हाथों से पकड़कर गठरी को सी. । रूप] १. दो वस्तुओं का परस्पर मिलकर एक होना। प्राकृति बना लेता है और इस प्रकार तैरता रहता है। जुड़ना । सटना। जैसे ,ये दोनों पेड़ आपस में खब गठ गए गठरीमुटरो-संज्ञा जी० [हिं० गठरी+मुटरी] गठरी में बधा हुमा हैं। २. मोटी सिलाई होना । बड़े-बड़े टाँके लगना । जैसे, सामान । ३०-यह गठरी मुटरी लेकर हायी पर क्यों ।' जूता गठना । ३. बुनावट का दृढ़ होता। बैठेंगे। प्रभावती, पृ०.१६५। . यौo-ठा बदन-ऐसा हाट पुष्ट शरीर जो वहुत अधिक मोटा गठरेवा-संज्ञा पुं० [हिं० गांठ] चौपायों का एक रोग । गलफुला। न हो। गठी बखिया एक प्रकार की बखिया जिसे पोस्तदाना हाहा। भी कहते हैं। विशेष-इस रोग में चौपाए को पहले ज्वर आता है फिर उसकी । विशेष-इसमें पहले जिस स्थान पर सुई गड़ाकर पाने की भोर : जांघ, पसली और जीभ के नीचे और चिशंपकार गल का निकालते हैं फिर उसी स्थान के पास ही उलटकर सुई गड़ाते सूजन हो जाती है । उसे सांस लेने में कष्ट होता है और और निकलने के पहलेवाले स्थान से कुछ और आगे बढ़ाकर वह चल फिर नहीं सकता। वह पैरों को जोड़कर खड़ा रहता निकालते हैं और इसी प्रकार बराबर तीते हए चले जाते हैं। है। यह छत फा रोग है और अचानफ होता है। पशु इस इसमें कपर की सिलाई एकहरी और नीचे की दोहरी होती रोग में विशेषकर मर जाते हैं। पहले लोगों का अनुमान है । दौड़ की बखिया में और इसमें केवल यही भेद है कि दौड़ था कि यह रोग सर्दी लगने या बदहजमी से होता है। पर अब . की बखिया में केवल आधी दूर तक लीटकर सूई डाली डाक्टरों ने यह निश्चय किया है कि यह रोग रक्त के विकार, जाती है। से कीटाणुओं द्वारा फैलता है। इस रोग में रोगी को बंद और ४. किसी पट्चक्र या गुप्य विचार में सहमत या संमिलित होना। गर्म, साफ सुथरे और सूखे स्थान में रखना चाहिए। खाने । जैसे, अगर वह किसी तरह गठ जाय तो सब काम बन के लिये सूखे स्थान की घास, सूखा भूसा और जी के आटे की .