पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१४६

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गतस्पृह १२२३ गतिरोध गतस्पृह-वि० [०] इच्छारहित । आकांक्षारहित [को०] । जैसे - (क) मनुष्य की क्या वात, वहां तक वायु की भी गति : गता@-संथा पुं० [सं० गात दे० 'गात' । उ०-पीन पयोधर दूबरि नहीं है। (ख) राजा के यहां तक उनकी गति कहाँ । (ग) ___ गता । मेरु उपजल कनकलता 1-विद्यापति, पृ० १७७ । इस शास्त्र में उनकी गति नहीं है। ६. प्रयत्न की सीमा। गतांक-वि० [सं० गताङ्क] जिसमें सत्पुरुप के चिह्न अब न रह गए अंतिम उपाय । दौड़ । तदबीर । जैसे उसकी गति बस यहीं हो। गया बीता। निकम्मा। उ०-जाति का रग्घू ब्राह्मण तक थी, मागे वह क्या कर सकेगा । ७. सहारा । अवसंव। . था, पर कदयंता में अत्यंत पामर महापाद्र से भी गतांक केवल शरण। उ०-तुमहिं छोडि दूसरि गति नाहीं। बसहु राम .. नामधारी ब्राह्मण था।-सौ अजान और एक सुजान (शब्द०) तिनके उर माहीं।-तुलसी (शब्द०)। ८..चाल । चेष्टा। २. पिछला अंक (पत्रपत्रिकानों के लिये)। करनी। क्रियाकलाप । प्रयत्ल । जैसे-उसकी गति सदा हमारे . गतांत वि० [सं० गतान्त] १ जिसका अंत या गया हो। २.अंत या प्रतिकूल रहती है। ६. लीला। विधान। माया । उ०- , पार तक पहुँचा हुन्ना [को॰] । दयानिधि, तेरी गति लबिन परे।-सूर (शब्द०) १०.ढंग। . गताक्ष-वि० [सं०] नेत्रविहीन । अंधा [को०) । रीति । चाल । दस्तूर । जैसे-वहाँ की तो गति ही निराली गतागत -वि० [सं०] आया गया। है। ११. जीवात्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में गमन। गतागत' संज्ञा पुं०१. आवागमन । जन्ममरण । २. पैतरा । कावा विशेष-हिंदू शास्त्रों के अनुसार जीव की तीन गतियाँ है- (को। उध्वंगति (देवयोनि), मध्यगति (मनुष्य योनि) और अधोगति गतागति--संज्ञा स्त्री० सं०] दे० 'गतागत' [को०] । (तिर्यक्योनि)। जैन शास्त्रों में गति पांच प्रकार की कही गतागम-संज्ञा पुं० [ गत+भागम] भूत और भविष्य । गई है-नरकगति, तिर्यक् गति, मनुष्यगति, देवगति मोर गताधि-वि० [सं०] आधि से मुक्त । चितारहित (को०)। सिद्धगति । गतानुगत संज्ञा पुं० [सं०] अतीत का अनुगमन । पूर्व की प्रथाओं को १२. मृत्यु के उपरांत जीवात्मा को दया। उ० -(क) गीध . __ मानना [को०] । अधम खग आमिष भोगी। गति दीन्हीं जो जांचत जोगी। - . गतानुगतिक - वि० [सं०] अतीत का अंधानुसरण करनेवाला। अंधा तुलसी (शब्द०)। (ख) साधुन की गति पावत पापी 1-- केशव (शब्द०)। १३. मृत्यु के उपरांत जीवात्मा की उत्तम नुसरण करनेवाला [को०)। दशा । मोक्ष । मुक्ति । जैसे पापियों की गति नहीं होती। . गतायु-वि० [सं० गतायुष्] १. जिसकी आयु समाप्तप्राय हो । अत्यंत उ०-है हरि कौन दोष तोहिं दीज। जेहि उपाय सपने दुर्लभ . वृद्ध । २. निर्वल । कमजोर । अशक्त [को०] । गति सोइ निसि बासर कीजै।-तुलसी (शब्द०)। १४. . गतारा-संज्ञा स्त्री० [सं० मन्त्री+बैलगाड़ी] १.वैल के जूए में वे दोनों लकड़ियाँ जो उपरोंछी और तरौंछी के बीच समनांतर लगी . कुश्ती आदि के समय लड़नेवालों के पैर की चाल । तरा। उ०-जे मल्लयुद्धहि पेच. वत्तिस गतिहु प्रत्यगतादि । ते. रहती हैं। इन लकड़ियों के इधर उधर वैल नाधे जाते हैं। करत लंकानाथ बानरनाथ होन प्रमादि । रघुराज (शब्द॰) । २. वह रस्सी जो जूए में बैल नाधने पर बलों के गले के नीचे १५. ग्रहों की चाल, जो तीन प्रकार की होती है-शीघ्र : से ले जाकर लगा दी जाती है, जिससे बैल जूए को सहसा मंद और उच्च । १६. ताल और स्वर के अनुसार अंगचालन । छोड़ नहीं सकते। ३. दह रस्सी जिससे बोझ बाँधा जाता है। जून । उ०-(क) सव अंग करि राखी सुपर नायक नेह सिखाय। गतारि-संथा लो० [हिं गतार] दे० 'गतार'। रस जुत लेति अनंत गति पुतरी पातुर राय !-बिहारी । गतार्तवा-वि० स्त्री० [सं०] १. जिसे ऋतु या रजोदर्शन न होता हो। (शब्द०)। (ख) कविहि अरव पाखर बल साँचा। अनुहरि । २. वंध्या। ३. वृद्धा। ताल गतिहि नट नाचा ।-तुलसी (शब्द०) १५. सितार । गतार्थ-वि० [सं०] १. धनहीन । निर्धन २. अर्थरहित । अर्थ हीन। आदि बजाने में कुछ बोलों का क्रमवद्ध मिलान । दे० 'गत'। ३. जाना या समझा हुया [को०] । १८. रिसनेवाला बरा । नासूर (को०)। ज्ञान [को० ॥ गतिक-संज्ञा पुं० [सं०] गति । गमन । २. आसरा । आश्रय । सहारा।। गतालोक-वि० सं०] प्रकाशरहित । ज्योतिहीन (कोमा ३. मार्ग । राह । रास्ता। ४. अवस्था। स्थिति [को०] । गतासु-वि० [सं०] मरा हुआ । जीवनरहित । निष्णण [को०)। गतिभंग-संज्ञा पुं० [सं० गतिमङ्ग] १. ठहरना । रुकना। २.छंद, गाने । गति-संहा श्री० [सं०] १. एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्रमश आदि में गायन या पाठ के क्रम में रुकावट या रोध माना की । जाने की क्रिया। निरंतर स्थानत्याग की परंपरा। चाल। गतिभेद-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'गतिभंग' । गमन । जैसे—वह बड़ी मंद गति से जा रहा है। २. हिलने गतिमंडल-संज्ञा पुं० [सं० गतिमण्डल] नृत्य में एक प्रकार का अगहा डोलने की क्रिया। हरकत । जैसे-उसकी नाड़ी की गति मंद गतिमय-वि० [सं०] गतिमान् । गति से युक्त [को०] । है। ३. अवस्था। दशा । हालत। उ०-भइ गति' सांप गतिमान-वि० सं० गतिमत] गतियुक्त । गतिशील। हरकत कर छछू'दर केरी। तुलसी (शब्द०)। ४. रूप रंग। वेष। वाला। उ०-तन खीन, कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति गतिया- संज्ञा स्त्री० [हिं० गत+इया (प्रत्य)] तवलची। घरे। तुलसी (शब्द०)। ५, पहुंच । प्रवेश । पैठ । दखल। गतिरोध-संज्ञा पुं० [सं गति+रोष चाल में रुकावट । गति रोकने । ।