पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१५१

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गयानक, गद्यालक १२२८ .' गनेल गद्यानक, गद्यालक-शा पुं० [सं०] दे॰ 'गद्याएक' को०] 1 . गनपति संज्ञा पुं॰ [सं० गणपति] दे॰ 'गणपति' । उ०-याचार गधा'- संका पुं० [हिं गदहा] [खी गयी] दे० 'गदहा। करि गुर गौर गनपति मुदित विप्र पुजावहीं । मानस, गधा.. वि० [हिं०] नासमझ । मूर्ख ! कमअक्ल (ला०)। १॥३२३ । . मुहा०-गवा पौडे घोड़ा नहीं होता =सिखाने से मूर्ख यादमी गनरा भांग-संवा खी० [हिं० गाँडरगनरा+मांग] जंगली भांग विद्वान् और नीच आदमी भला नहीं होता। गधे को बाप जिसमें नशा बिलकुल नहीं होता। कहीं इसकी टहनियों . . बनानाकाम साधने के लिये तुच्छ या जड़ आदमी की बड़ाई से रेशे निकाले जाते हैं। .' करना ! गये पर चड़ना = दे० 'गदहे पर चढ़ाना'। गधे से गनराय -संज्ञा पुं० [सं० गणराज] गणेश । हल चलवाना=बिलकुल उजाड़ देना । वरवाद कर देना ।। गनवरी-संत्रा बी० [हिं० गाँठ+वर(प्रत्य॰)] नरकट नाम की घास। गनाना'—क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'गिनाना' । उ०-बहुत बिनै करि गधापना पुं० [हिं]. दे० 'गदहपन' । पाती पठई नृप लीजै सब पुहुप गनाइ :--सूर०, ११५८२ । गधीला' .. संज्ञा पुं॰ [देश॰] [ली गयीली] एक जंगली जाति । गनावा'-क्रि० अ०गिना जाना । गिनती में माना । उ०-बारह गघीला संज्ञा पुं० दे० 'गदहिला'। प्रोनइस चारि सताइस। जोनिनि पच्छिउँ दिसा गनाइस ।-

  • गधुल-संक्षा पुं० [देश॰] एक फूल का नाम ।

गधेड़ी-संशा नी [हि० गयी+एडी] अयोग्य या फूहड़ औरत । जायसी (शब्द०)। गन . संज्ञा पुं० [सं० गण] १. दूत । सेवक । पारिपद । उ०- गनिका -संशा श्री० [सं० गरिएका दे० 'गरिएका' 1 उ०-गनिका .जम गन मुह मति जग जमुना सी !-तुलसी (शब्द०)। २. सुत शोभा नहिं पावत जाके कुल कोऊ न पिता री !-सूर० चोवा नाम का गंधद्रव्य । उ०-स्वेद भरे तनसिज खरे करज १९३४ । लगे मन लाम । सुथरे कच विथरे अरी लरी ललन ते वाम । गनियारी संज्ञा सी० [सं० गरिएकारी या शमी की तरह का एक पौधा J० सत (गन्द०)। वि० दे० 'गण' । . या झाड़ जिसे अर्गेय या छोटी अरनी (अरणी) भी क ते हैं। विशेष-इसकी पत्तियाँ बबूल की पत्तियों से थोड़ी और गोलाई गनक -मंशा पुं० [म० गणक ] दे० 'गणक' । उ०--सुनि सिख लिए होती हैं । इसमें सफेद फूल और करौंदे के समान छोटे . पाइ असीस वड़ि गनक बोलि दिनु साधि 1-मानस, २१३२२ । छोटे फल लगते हैं। इसकी लकड़ी रगड़ने से आग जल्दी गनके ग्रा-मंचा पुं० [से गरणकरिणका] एक प्रकार की घास जो निकलती है, इसी से इसे 'क्षुद्राग्नि मंथ' कहते हैं । वैद्यक में यह . गाय भैस के चारे के काम में ग्राती है। कटु, उष्ण, अग्निदीपक और वातनाशक मानी जाती है। गनगनाना- क्रि० अ० [अनु॰] ( रोना) खड़ा होना। रोमांत्र गनी'- वि० [अ० गनी] १. घनी । धनवान । उ०—(क) गनी, गरीव होना। ग्राम नर नागर ।-तुलसी (शब्द०)1 (ख) सुमन वरसि ग गौर-संहा सौ[सं० गण+गौरी] १. चैत्र शुक्ल तृतीया। रघुबर गुन वरतन हरपि देव दुंदुभी हनी । रंकनिवाज़ रंक इस दिन गणेश और गौरी की पूजा होती है । उ०—द्योस राजा किए गए गरव गरि गरि गनी।-तुलसी ग्रं०, पृ. - गनगौर के सु गिरिजा गुसाइन की छाई उदयपुर में बधाई ठौर ३८६ । २. निस्पृह । अनिच्छुक [को०] । ठौर है। पद्माकर ग्र०, पृ० ३२५ । २. पार्वती । गिरिजा। गनी-संवा पुं० [अं॰] पाट या सन की रस्सियों का बुना हुया मोटा उ०—(क) दै वरदान यह हमको सुनिये गनगौर गुसाइन खुरदरा कपड़ा जो बोरा या थैला बनाने के काम में प्राता है। मेरी ।-पद्माकर ग्रं०, पृ० ३२२ । (ख) पारावार हेला जैसे-मनी मार्केट । गनी ब्रोकर । - महामेला में महेस पूछे गौरन में कौन सी हमारी गनगीर गनीम-संज्ञा पुं० [अ० गनीम] १. लुटेरा । डाकू। २. वैरी। शत्रु । है।- पद्माकर ग्रं०, पृ० ३२५ । उ.-अकवक बोल यों गनीम पी गुनाही है ।-पद्माकर

गनती-- संज्ञा ली [हिं०] दे० "गिनती'।

(शब्द०)। गनना --क्रि० स० [हिं०] दे० 'गिनना' । गनीमत संञ्चाक्षी० [अ० गनीमत] १. लूट का माल । २. वह माल गनना --संश्री० [हिं०] दे० 'गगना' । जो बिना परिश्रम मिले । मुफ्त का माल । जैसे,---उससे जो - गननाना-क्रि०अ० [अनु० गन, गन] १. शब्द से भर जाना । कुछ मिल जाय, वही गनीमत है। गूजना । उ-छुटे वान कुह कुह कुह वोला। नभ गननाइ क्रि० प्र०--जानना ।—समझना। उठ गुरु गोला!--ताल (शब्द०)। २. चक्कर में आना। ३. संतोष की वात । धन्य मानने की बात। बड़ी बात । जैसे.... घूमना । फिरना। किसी तरह पेट पाल लें, यही गनीमत है। गननायकए--संज्ञा पुं० [सं० गणनायक] दे० 'गणनायक' । उ०- महा-किसी का दम गनीमत होना-किसी का बना रहना। - गननायक बरदायक देवा ।--मानस, ११२५७ ॥ किसी के लिये अच्छा होना । किसी के जीवन से किसी प्रकार ... गनप संचा पुं० [सं० गणप] दे० 'गणप'। 30--करि मज्जन की भलाई होना। पूजहि नर नारी । गनप गौरि त्रिपुरारि तमारी। -मानस, गनेल- संथा सी० [देश॰] एक प्रकार की घास जो पर , . रा२७२। काम में पाती है। . ..