पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१५२

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गनोरिया १२२६ .: गफ गनोरिया-संज्ञा पुं० [ले०] सूजाक रोग । . गपड़चौथ-संश पुं० [हिं० गपोड़ ( =वातचीत )+-चौयहि गनौरी-संज्ञा स्त्री० [सं० गुन्द्रा] नागरमोथा । चोयना ] व्यथं की गोष्ठी । वह व्यर्थ की बातचीत जो चार गन्ना---संक्षा पुं० [सं० काण्ड] ईख । कख । आदमी मिलकर करें। गन्नाटा-संज्ञा पुं० [अनु॰] गननाने की ध्वनि । उ०-~ज्यों ज्यों मथा कि०म०-करना । होना। गया जीवनरस, त्यों त्यों और जोर से उफना, मंथन के दाएँ गपड़चौथ-वि० लीपपोत । अंबंडा कटपटांग । बाएं इन गन्नाटों में उलझा लघु मन । -अपलक, पृ० ३४। गपना-क्रि० स० [हिं० गप गप मारना । व्ययं बात करना । गन्नी--संज्ञा पुं० [हिं० गोन (= रस्सी), या अं. गनी] १. पाट या बकवाद करना । बकना । उ०-राम राम राम राम राम टाट जिसके बोरे आदि बनते हैं। २. भंगारे की तरह का एक राम जपत । मंगल मुद उदित होत कालिमल छल छपत । कहु कपड़ा जो सिकिम में बनता है । यह रीहा घास या उसी तरह के लह फल रसाल बवुर वीज वपत । हरहि जनि जनम जाय । - के और पौधों की छाल से बनता है। गालगुल गपत । तुलसी (शब्द०)। गन्नेस --संज्ञा पुं० [म गणेश दे० 'गणेश' । उ०—जिते सैल सुर गपाटा-संग्रा पुं० [हिं० गप] गपड़नीय । गप्पचाजी । उ०. सर्व - हेति सुरपत्ति कीने। तिने सेस गन्नेस जाग्नेन चीने ।-५० मनुष्य गपाटा में लग रहे हैं किसी को सत्य की सुधि नहीं, ... रा०, २११११। अचेत हो रहे हैं। ..कवीर म०, पृ०६१४ । गन्य-वि [सं० गण्य] दे० 'गण्य' । उ०-हरि भयत अनन्य में गपिया वि० [हिं० गप-+इया (प्रत्य॰)] गप मारनेवाला । झुठ मूर.. गन्य सदा, तुम्हारे सम धन्य न अन्य अहै।-पोद्दार अभि० की बात कहनेवाला। वकवादी। गप्पी। ग्रं०, पृ०४६३ । गपिहाल-वि० [हिं० गप+हा ] (प्रत्य०.) ] गप हांफनेवाला । . गप-संज्ञा स्त्री० [सं० फल्प, प्रा० कप्प अथवा सं० जल्पगल्प, हि० गप्पी। बकवादी। उ०-कूकै कलापीन चूक नाहू'झुकि कुक गप्प [वि० गप्पी] १. इधर उधर की वात, जिसकी सत्यता का समीर की आन झकोरन । त्यो पपिहा पपिहा गणिहा भयो निश्चय न हो। २. वह वात जो केवल जी बहलाने के लिये की पीय को नांव ले हीय हलोरत । -सुदरीसर्वस्व (शब्द०)। . ... जाय । वह बात जो किसी प्रयोजन से न की जाय । बकवाद। गपोड़'--संक्षा पु० [हिं० गप+ोड (प्रत्य॰)] 'गपौड़ा'। कि० प्र०-मारना। गपोड़ वि० गप्पी, गप्प हांकनेवाला। यौ०-गप शप- इधर उधर की बातें । वार्तालाप । गपोड़ा-संक्षा पुं० [हिं० गय] मिथ्या वात। कपोल कल्पना । गप । ३. झूठी बात । मिथ्या प्रसंग । कपोलकल्पना । जैसे,—यह सब जैसे,- आजकल वे खूब गपोड़े उड़ाते हैं। गप है। एक बात भी ठीक नहीं है। ४. झूठी खवर । मिथ्या कि० प्र०-उड़ना। -उड़ाना |-मारना । संवाद । अफवाह । यौ० गपड़चौय। गपोड़ेबाजी। मुहा०. गप उड़ना कुठी खबर फैलाना। गपोड़ेबाजी-संथा श्री० [हिं० गपोड़ा-फा० वाजी ] झूठमूठ की। ५. वह झूठी वात जो बड़ाई प्रकट करने के लिये की जाय । डोंग । क्रि० प्र०-- मारना ।-हाकना। गप्प-संश घो०]हिं०] दे० 'गप'। गप-संशा पुं० [अनु०] १. वह शब्द जो झट से निगलने, किसी नाम गप्पा-संज्ञा पुं० [अनु० गए] १. धोखा। अथवा गीली वस्तु में घुसने या पड़ने आदि से होता है । जैसे--, महा० गप्पा खाना-घोंसे में माना। चूकना। वह गप से मिठाई खा गया । (ख) घाव में इतनी २. पुरुप की इंद्रिय । लिंग । (बाजारू)। सलाई गप से घुस गई। गप्पाष्टक-संज्ञा स्त्री० [हिं० गप+सं० अष्टक ] दे० गपड़चौथ'। विशेष—इस प्रकार के और अनुकरण शब्दों के समान इस शब्द उ.- सैकड़ों मनुष्यों में बैठे भौति भांति की गपाष्टक होती। का प्रयोग भी प्रकार सुचित करने के लिये प्रायः 'से' के साथ प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ४१०। . होता है। गप्पो-वि० [हिं० गप्प+ई (प्रत्य॰)] १. गप मारनेवाला। . यो०-- गपागप = जल्दी जल्दी । झटपट छोटी बात को बढ़ाकर कहनेवाला। जल्पक । २. मिथ्याभापी। २. निगलने या खाने की क्रिया । भक्षण । जैसे - (क) सब मत गप कर जायो, हमारे खाने के लिये भी रहने दो। (ख) गप्फा-संया पु० [सं० ग्रास, हि गस्सा अवथा अनु० गप्] १. बहुत मीठा मीठा गप, कड़वा कडुवा यू। बड़ा ग्रास जो खाने के लिये उठाया जाय । बड़ा कोर। क्रि०प्र०—करना ।होना। जैसे,—दो गप्फे खा लें, तब चलें। गपकना-क्रि० स० [अनु० गप+हिं० करना] चटपट निगलना । मुहा०- गप्फा मारना=बड़ा कौर खाना। झट से खा लेना। जैसे--वह थाली में का सब भात गपक २. लाभ । फायदा । उ-जिधर गप्फा अच्छा मिले, वहीं चले जायगा। जायें। -सत्यार्थ प्रकाश (शब्द॰) । "छया--संज्ञा स्त्री देश०] बालू में छिपनेवाली एक प्रकार की गफ-वि० [सं० ग्रप्स-गुच्छा ] घना। ठस । गाढ़ा । किन। मछली जिसे रेगमाही कहते हैं। 'झीना' का उलटा।