पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१५५

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गमनपत्र १२३२. गया उ०-साहसुता गमनी तहाँ विशद कनात लिवाइ। रघुराज जैसे-राम नाम मनि दीप घर, जीह देहरी द्वार । तुलसी (शब्द०)। भीतर वाहिरहु जो चाहसि उजियार।-तुलसी। - गमनपत्र-संशा पं० [सं०] वह पत्र जिसके द्वारा एक स्थान से दूसरे गयंद -संज्ञा पुं० हिं०] गजेंद्र श्रेष्ठ हाथी । उ-झूमति चलि मद स्थान को जाने का अधिकार मिले । चालान । रवन्ना । : मत्तगयंद ज्यों मलकत बांह दुराइ !-नंद० ग्रं॰, पृ.३८६ । गमना'@-क्रि० अ० [सं० गमन] जाना । चलना । उ० -अगम गयं संशा पुं० [सं०] १. घर । मकान । २. अंतरिक्ष । प्राकाश । 'सबहि वरनत वर वरनी । जिमि जलहीन मीन गमु धरनी।- . ३. धन । ४. प्राण। ५. रामायण के अनुसार एक वानर का तुलसी (शब्द०)। नाम जो रामचंद्र की सेना का एक सेनापति था। '६. महा- जमना-क्रि० प्र० स० गम=रंज+हिं० ना (प्रत्य॰) । १. गम भारत के अनुसार एक राजपि का नाम जिनकी कथा दोण ...करना । शोक करना । २. परवाह करना। ध्यान देना। पर्व में है । ७. पुत्र । अपत्य । ८. एक असुर का नाम । ६. गया उ०—मेरे तो न उरु रघुवीर सुनौ साँची कहीं खल अनबहैं नामक तीर्थ । __तुम्हें सज्जन न गमिह । -तुलसी (शब्द०)। गय--संज्ञा पुं० [सं० गज, प्रा० गय] हाथी । उ०-सुरगण सहित - गमनाक-वि० [फा० गमनाक] शोकपूर्ण । दुःखभरा। इंद्र प्रजावंत धवल बरन ऐरावत देख्यो उतरि गगन ते — गमनीय–वि० [सं०] दे॰ 'गम्य' । धरनि धंसावत । अमरा शिव रवि शशि चतुरानन हय गय बसह गमला-संज्ञा पुं॰ [?] १. नांद के आकार का मिट्टी या धातु आदि हंस मृग जावत ।—सूर (शब्द०)। .. का बना हुया एक प्रकार का पात्र जिसमें फूलों के पेड़ और गय -संज्ञा . [सं० गति, प्रा० गय द० 'गति । उ०-लावी काँव पौधे लगाए जाते हैं। २. लोहे, चीनी मिट्टी का बना हुया चटक्कडा गय संवा वह जाल ।-ढोला०.८०४१०। .. एक प्रकार का वरतन जिसमें पाखाना फिरते हैं । कमोड। गयगैनि@-वि०बी० [स. गजगामिनी दे० 'गजनामिनी' । उ०- मागम-संज्ञा पुं० [सं०] आना जाना। मलयज पसि घनसार मैं खौरि किए गयगनि ।स सप्तक, . गमाना -क्रि० स० [हिं० गुम गुम करना । खोना । गँवाना। पृ० २५०। उ०—(क) हा हा करति कंचुकी मांगति अंवर दिए मन गयण -सधा पुं० [सं० गगन, प्रा० गयण] गगन । आकाश 13०- .. भाए। कीन्हीं प्रीति प्रगट मिलिबे की अँखियन शर्म गमाए। भावत आनौ जुध कोडे, उठियी गयण पुजा डॅड प्रोडे । - —सूर (शब्द०)। (ख) हा ! लाल ! उसे भी आज गमाया रा०रू०, पृ०२५२ ।। - : मैने । - साकेत, पृ० २३१ 1 गयनाल-संच ली [हिं गय(=गज)+नाल-नली] एक प्रकार . गमार-वि० [हिं० गवार गाँव का रहनेवाला । गँवार । देहाती। की तोप जिसे हाथी खींचते हैं। गजनाल । - उ-त्यों रन ठाठ वुदेला टाटे । खेत गमार चार से काटे। गयलg+-संघा सी० [हिं] दे० 'गल'। . . -लाल (शब्द०)। गयवली--संज्ञा पुं॰ [देश॰] मझोले कद के एक पेड़ का नाम। ... गमारिलगमारि -संगा श्रीहिं०] दे० 'गॅवारी' । उ०—(क) विशेष—यह अवध, अजमेर, गोरखपुर और मध्यप्रदेश में होता ... एक हमें नारि गमारि सबह तह दोसरे सहज मतिहीनी।-- है। इसका फल लोग खाते हैं और छाल चमड़ा सिझाने के ... विद्यापति, पृ० १२५ । (ख) हरिक संगे किछु डर नहि हे काम में लाते हैं । इसकी लकड़ी मजबूत होती हैं और खेती - तुहे परम गमारी |--विद्यापति, पृ० २४५ । के 'संगहे' और गाड़ी बनाने के काम में आती है। ... गमिला--संज्ञा स्त्री० [हिं०] पहुच । पैठ । प्रवेश । गयवा - संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की मछली जिसे मोहली भी -- गमी--वि० [सं० गमिन] जानेवाला । गमन करनेवाला [को०] । कहते हैं। - गमो (धु-संवा पुं० पथिक । यात्री को०] 1 गशिर-संघा पुं० [सं०] १.अंतरिक्ष । अाकाश । २. गया के पास _गमार-संच बी० [अ०सम] १. शोक की अवस्था या काल । २. वह का एक पर्वत जिसके विषय में पुराणों का कयन है कि यह गय शोक जो किसी मनुष्य के मरने पर उसके संबंधी करते हैं। नामक असुर के सिर पर है। ३. गया तीर्थ । E. सोग। २. मृत्यु । मरनी। जैसे,—उनके यहाँ गमी हो गई। गया' संज्ञा पुं० [सं०] बिहार या मगध देश का एक विशेष पुण्य- 2. उ० रुपया इस मुल्क के आदमियों का शादी गमी में बहुत स्थान जिसका उल्लेख महाभारत और वाल्मीकीय रामायण से वचं होता है।--शिवप्रसाद (शब्द०)। लेकर पुराणों तक में मिलता है। - गम्मता--संञ्चा सौ मराठी] १.हँसी दिल्लगी। विनोद । २. मौज। विशेष—यह एक प्राचीन तीर्थ स्थान और यज्ञस्थल था। पुरानों में इसे राजपि गय की राजधानी लिखा है, जहाँ गम्य-वि० [सं०] १. जाने योग्य । गमन योग्य । २. प्राप्य । लभ्य। गयशिर पर्वत पर उन्होंने एक वृहत् यज्ञ किया था और ... ३. गमन करने योग्य । संभोग करने योग्य । भोग्य । ४. ब्रह्मचर नामक तालाब बनवाया था। महात्मा बुद्धदेव के - साध्य । ५. समझ में आ जानेवाला । सुबोध [को०] 1 समय में भी गयपिर प्रधान यज्ञस्थल था। राजगह से पाकर गयंद-संज्ञा पुं० [सं० गजेन्द्र, प्रा. गयिंद, गई'द] १. बड़ा हामी। वे पहले यहीं पर ठहरे थे और किसी यज्ञ के यजमान के . . २. दोहे का दसवाँ भेद जिसमें १३ गुरु और २१ लघु होते हैं। अतिथि हुए थे। फिर वे यहां से थोड़ी दूर निरंजना नदी के गमोरा-सा पुं० पान जानेवाला । गमन वहार ।