पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१५६

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गयारे १२३३ . . गरज किनारे उरुवेला गाँव में तप करने चले गए थे। इस स्थान गर - अव्य० [फा० अगर का संक्षिप्त रूप] यदि । जो। अगर। . को आजकल बोधगया कहते हैं यहाँ बहुत सी छोटी छोटी गरई -संशा सी० [देश॰] एक प्रकार की मछली। ... पहाड़ियां हैं। यह तीर्थ श्राद्ध और पिंडदान आदि करने के गरक@-वि० [अ० ग] १. डूबा हुआ । निमग्न । २. विलुप्त । लिये बहुत प्रसिद्ध है, और हिंदुओं का विश्वास है कि विना · नष्ट । बरवाद । तवाह । ३. (किसी कार्य आदि में) लीन । वहाँ जाकर पिंडदान आदि किए पितरों का मोक्ष नहीं होता। मग्न । उ पभदेव बोले नहीं रहे ब्रह्मम होइ, गरक भए कुछ पुराणों में इसे गम नामक असुर द्वारा निर्मित या उसके निज ज्ञान में द्वस्त भाव नहि कोई।-सुदर ग्रं०, भा०२, शरीर पर बसी हुई कहा गया है। पृ०७८६। गया--संशा स्त्री॰ [सं० गया (तीर्थ)] गया में होनेवाली पिंडोदक गरफल-वि० [देश॰] सधन । गंभीर । गहरा । उ०-गरक घटा . आदि क्रियाएं। उमड़ी गरज, हरप सिखंडी होय ।-रघु०६०, पृ०६३।। मुहा० गया करना गया में जाकर पिंडदान आदि करना । गरकाब'--संज्ञा पुं० [अ० गरकाब] डूबने का भाव । डुवाव। . . जैसे-वह वाप की गया करने गए हैं । गया बैठाना गया में गरकाबर-वि०१. निमग्न । ड्या हुआ । २. बहुत अधिक लोन । पितरों का श्राद्ध करके स्थापित करने की परंपरा। गरकी--संशा सी० [अ० गरक+फाई (प्रत्य॰)] १. इक्ने की । गया-क्रि०अ० [सं० गम्] 'जाना' क्रिया का भूतकालिक रूप । क्रिया या भाव । इवना। प्रस्थानित हुआ। मुहा०-गरफी देना=कप्ट देना । दुःख देना। . ..... मुहा०-गया गुजरा या गया वीता-बुरी दशा को पहुंचा हुआ। । २. पानी का इतना अधिक वरसना या बाढ़ आना कि जिससे - नष्ट । निकृष्ट । फसल आदि वकर नष्ट हो जाय । बूड़ा। अतिवृष्टि। गयापुर---संज्ञा पुं० [सं०] 2'गया'। क्रि०प्र०—लगना। गयारी--संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] किसी काश्तकार की वह जोत जिसे वह ३. वह भूमि जो पानी के नीचे हो। ४. नोची भूमि जहाँ पानी लावारिस छोड़कर मर गया हो। गयाल - संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] वह जायदाद जिसका कोई उत्तरा- रुकता हो । बलार । ५. लंगोटी। कौपीन । धिकारी या दावेदार न हो । गलेश। गरकी-संशा श्री० [हिं०] चरखी । घिरनी। गराड़ो। गयाल-संघा पुं० [२०] एक जानवर का नाम । गरक्क.--वि० [हिं०] दे० 'गरक' । उ०-छत्र खस धरनी घसै " विशेष—यह आसाम में मिलता है। वहाँ इसका मांस खाया तीनिउ लोक गरक्क ।-संतवारपी०, पृ० १३६ । जाता है और मादा का दूध पीते हैं। ... गरगज'-संधा पुं० [हिं० गढ़+गज] १. किले की दीवारों पर वना हुया वुर्ण, जिसपर तो रहती हैं। उ०-गरगज बांधि कमान गयावाल'-संज्ञा पुं० [हिं० गया-+वाल] गया तीर्थ का पंडा। गयावाल-वि० १. गयो से संबंध रखनेवाला । २. गया में होने या धरी। बच्च अगिन मुख दारू भरी।-जायसी (शब्द०)। २. वह ऊँचा कृत्रिम हया टीला जिसपर युद्ध की सामग्री रहनेवाला। गरंड- संज्ञा पुं० [सं० गएडमंडलाकार रेखा] चक्की के चारों ओर रखी जाती है और जहाँ से शत्रु की सेना का पता चलाया ।। वना हुआ मिट्टी का घेरा जिसमे आटा गिरता है। जाता है। गरंथबु-संज्ञा पुं॰ [सं० ग्रन्थ] दे० 'ग्रंथ' 1 उ०-कहा होई जोगी क्रि० प्र०-बाँधना। भए और पुनि पढ़ेगरंथ ।--चित्रा०पृ०४६ । ३. नाव के ऊपर की तख्तों से बनी हुई छत। ४. यह तस्ता गरऊ---संज्ञा पुं॰ [देश॰] आटा गिरने के लिये बना हुआ चक्की के जिसपर फाँसी देने के समय अपराधी को खड़ा करके उसके ।' चारों ओर का घेरा । गरंड। .: गले में फंदा लगाते हैं । टिकठी। ... गर'-संक्षा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का बहुत कड़ वा और मादक गरगज--वि० बहुत बड़ा । विशाल । जैसे-गरगण घोड़ागरगज ।। रस जिसका व्यवहार प्राचीन काल में होता था। २ एक । जवान। रोग जिसमें घिग्धी बंध जाता है और भूर्जा पाती है। ३. गगरा--संज्ञा पुं० [अनु॰] गराड़ी। घिरनीं । चरखी ।---(लश०)। . रोग । बीमारी। ४. विप । जहर । ५. वत्सनाभ । बछनाग। गरगवाई-संचा पुं० [देश॰] १. नर गौरैया । चिड़ा । २.एक प्रकार ६. ज्योतिष में ग्यारह करणों में से पांचवां करण । ७. को घास। निगलना। घोंटना (को०)। ... . विशेष—यह धान की फसल को बढ़ने नहीं देती। इसे केवल गर -संशा पुं० [हिं० गल ] गला 1, गरदन । उ०-होती जो भैसें खाती हैं। . अजान तीन जानती इतीक बिथा मेरे जिस जान तेरो जानिबो गरगाव-वि०म० गरकाब] दे० 'गरपाब। ' गरे परयो।-देव (शब्द०)। . . गरन-वि० [सं०] १. विप को नष्ट करनेवाला। विषनाशक । गर-प्रत्य० [फा०, ने] (किसी काम को) बनाने या करनेवाला। स्वास्थ्यकर [को०] . . . । .. - इसका प्रयोग केवल समस्त पदों के अंत में होता है। जैसे- गरज -संज्ञा स्त्री० [सं० गर्जन] बहुंत गंभीर और तुमुल शब्द । जसः । ... सौदागर, कारी गर; बाजीगर, कलईगर, कुदीगर मादि । ... बादल की गरज, सिंह की गरज, वीरों की गरज आदि।..