पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१६०

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गरमाना .१२३७ गरीः सी बात में गरमाजाते हो। ४. कुछ देर लगातार दौड़ने या .. साजि सैन ले पाए। 'घहरात गररात हहरात पररात परिश्रम करने पर घोड़े आदि पशुओं का तेजी पर आना। झहरात माथ नाए।—सूर (शब्द०)। २. गुर्राना । उ०- विशेष कभी कभी जय घोड़े अधिक गरमा जाते हैं, तब वश में पटकि पूछि गरराइ गुजरिहि धरिई सरोस सेर सिर दाउ'।- नहीं रहते। अकवरी०, पृ० ३१६ । संयो॰ कि०-उठना । - जाना। गररी --संथा स्त्री॰ [देश॰] एक चिड़िया । फिलहटी। गलगलिया। गरमाना-क्रि० स० गरम करना । तपाना। औटाना । जैसे,-दूध सिरोही। उ०-फटकत श्रवन श्वान द्वारे पर गररी करत गरमाना, चूल्हा गरमाना, पानी गरमाना आदि । लराई। भाथे पर दै काक उड़ानों कुशगुन बहुतक पाई।--. संयो० कि०-डालना ।--देना । सूर (शब्द०)। मुहा० टॅट गरमाना=(१) हाथ में रुपया देना । (२) कुछ गरल-संज्ञा पी० [सं०] १. विप । गर । जहर । २. सर्पविष । साँप ___ इनाम या रिशवत देना ।। का जहर । ३. घास का मुद्दा । घास की अंटिया । पूला। गरमाहट संञ्चा बी० [हिं० गरम+आहट(प्रत्य॰)]गरमी । उष्णता । गरलघर-संज्ञा पुं० [सं०] १.विष धारण करनेवाले,महादेव ।२.प। . गरमी=संचा [फा०] १. उठाता। ताप । जलन । जैसे,- गरलारि--संज्ञा पुं० [सं०] मरकत मणि । पन्ना । आग की गरमी। गरली-वि० [सं० गरलिन्] विषला ! विषय क्त [को०]] क्रि० प्र०- करना। - पड़ना ।--होना । गरवा -वि० [सं०गुरुक[वि०सी० गरवी गरुमा । भार । महान् । मुहा० गरमी करना-प्रकृति में उष्णता लाना । पेट था कलेजे । गरवी@-वि० स्त्री० [सं० गुर्वी] १. विशाल । भारी वजनी । उ०-- : में ताप उत्पन्न करना । जैसे, कुनैन बहुत गरमी करता गद मारयो गरवी गदा मस्तक अरि के जाइ । फूटो सिर । है। गरमी निकालना %3D (१) उष्णता दूर करना । (२) निसरत भई रुधिर धार अधिकाइ।-गोपाल । (शब्द०), ... प्रसंग करना। २. गंभीर । गुरुतायुक्त । उ०-गोरी गंगा नीर ज्यू मन' ... २. तेजी। उग्रता । प्रचंडता । गरवी, तन अच्छ|--ढोला०, दू० ४५२ । . . मुहा०-गरमी निकालना:-गवं दूर करना । जैसे,—अभी हम । गरवत--संज्ञा पुं० [म.] मय र । मोर। तुम्हारी सारी गरमी निकाल देते हैं। गरसना-क्रि० स० [सं० ग्रसन] दे० 'यसना'। ३. आवेश। क्रोध । गुस्सा । जैसे,- पहले तो बड़ी गरमी दिखाते मरह-संक्षा पु०सं० ग्रह] १. ग्रह । २. अरिष्ट । बाधा। ... थे; अव सामने क्यों नहीं पाते। ४ उमंग । जोश । ५. ग्रीष्म मुहा०-~-गरह कटना-अरिष्ट दूर होना। दुःख नष्ट होना। ऋतु । कड़ी धूप के दिन । ( साधारणतः फागुन से जेठ तक आपत्ति दलना। गरमी के महीने समझे जाते हैं।) गरह-वि० दे० 'ग्रह' । उ०---ममता दादु कंड इरपाई। हरप क्रि० प्र०. पाना !--जाना। विपाद गरह बहुताई । —तुलसी (शब्द०)।... मुहा०-गरमियों में गरमी के दिनों में। ग्रीष्मकाल में । ६. हाथी घोड़ों का एक रोग जिसमें उन्हें पेशाव के साथ खून गरहन-संवा पुं० [सं०गर + हन्]१.काली तुलसी। २.बवई। ममरी। गहन-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की मछली। गिरता है । ७.एक रोग जो प्रायः दुष्ट मैथुन से उत्पन्न होता है और छूत का रोग माना जाता है । यात शक । उपदंश । गरहन -संवा पुं० [सं० ग्रहण] १. चंद्र या सूर्य ग्रहण । २. " विशेष- इस रोग में गुप्त इंद्रिय से एक प्रकार का चेप निकलता _ पकड़ने की क्रिया । धारण । वि० दे० 'ग्रहण'। है, जिसके लग जाने से यह रोग एक दूसरे को हो जाता है। गरहर-संज्ञा पुं० [हिं गर=गला+सं० धर, प्रा०.हर] वह काठनो.. पहले छोटी छोटी फुसियां होती हैं। फिर धीरे धीरे चमड़े , नटखट चौपायों के गले में लटकाया जाता है। कुंदा।.. पर चट्ट पड़ने लगते हैं; यहाँ तक कि सारे शरीर में घाव हो जाते हैं, फफोले पड़ जाते हैं, रग, पट्ट और हड्डियां तक खराव गरहेंडुवा-संज्ञा पुं० [सं०.गवेडुका] गवेधुक । कसेई । कोडिल्ला!" हो जाती हैं । कभी कभी ताल चटक जाता है। गरोडील-वि० [अंक ग्रांड या. फा० गरी ] लंवा तईगा या मोटा .. क्रि० प्र०--निकलना ।-फूटना।।—होना । ताजा । उ०—इस रीछ जैसे गरांडील आदमी से रानी को गरमीदाना---संज्ञा पुं० [हिं० गरमी + दाना ] छोटे छोटे लाल दाने इतनी सूक्ष्मता की पाशा नहीं थी। जनानी०, पृ० १७२ : .. जो गरमी में पसीने के कारण शरीर पर निकलते हैं। २. बहुत बड़ा या भारी। अँधौरी। अंभौरी । अम्हौरी। गरा-वि० [फा०] दे० 'गिरौं' । गररा -संज्ञा पुं० [ देश गर्रा ] एक प्रकार का घोड़ा। गर्रा। मुहा०—गरी गुजरना=(१) भारी या असह्य होना । (२) उ०-~हरे कुरंग महु बहु भाँती । गरर कोकाह बलाह सु . अप्रिय या नापसंद होना। . . . . . . . भांति ।-जायसी (शब्द)। - यौ०-गारांकद्र प्रतिष्ठित । समानित । गरॉकीमत=वेशकीमत । गरराना--क्रि० अ० [अनु०] १. भीपण ध्वनि करना। गंभीर बहुमूल्य । गरीखातिर = (१) असह्य 1. अप्रिय । (२) .. . ध्वनि करना। गड़गड़ाना। गरजना। उ०-सुनत मेघवर्तक . . ! अप्रसन्न । . . . . . . . "