पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१६१

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गरांबार १२३८ , गरिया गरांवार-वि० [फा०] १. वोझ से लदा हुना। २. ऋण या उपकार. - कुंडल कीट कवच तनु धारे । चले सैन महे सुभट गरारे । - के भार से दबा हुग्रा । . . गोपाल (शब्द॰) । (ख) सुडन उठाए फिर धाये धने सन गरीव-संशा पुं॰ [हिं० गर= गला+आंद (प्रत्य॰)] एक दोहरी रस्सी . बैठे असवार मिल मुदित पतंग संग । गरज गरारे कजरारे जिसके एक सिरे पर मुद्धी और दूसरे सिरे पर गाँठ होती है। अति दीह देह जिनहिनिहारे फिर बीर करि धीर भंग . यह पगहे के छोर पर बीचोबीच से लंगाई जाती है और बैल, गोपाल (शब्द०)। . घोड़े ग्रादि के गले में डाली जाती है। गरारा--संज्ञा पुं० [अ० गा रह, गररह, फा० गरारह ] १. कंठ में गरा संज्ञा, सी० [सं०] देवदाली लता । वंदाल । गरागरी। पानी डालकर गर गर शब्द करके कुल्ली करना। • गरा-संवा पुं० [हिं० गला दे० 'गर' या 'गला'। क्रि० प्र०=करना। राऊ-संज्ञा पुं० सं०.गरुम[ पुराना भेड़ा। (गड़ेरियों की बोली) 1 २. गरगरा करने की दवा। गरागरी संज्ञा स्त्री० [सं०: देवदाली । बंदाल । घघर वेल । बंदाली। गरारा'---संज्ञा पुं० हिं० घेरा] १. पायजामे की डीली मोहरी। .: सोनया बैल। कर्कोटी । देवताड़ी। - जैसे,—गरारेदार पाजामा। २. ढीली मोहरी का पायजामा। गराज'@---मंत्रा हो. [सं० गर्जना गर्जना। गंभीर शब्द । गरज। । ३. वह थैला जिसमें खेमा भरकर रखा जाता है। 30--जसवंत जसावंत साजवाज ।। चड्ढे फिक्यान करि करि गरारा"-संज्ञा पुं० [अनुचौपायों का एक रोग जिसमें उनके कंठ से गराज -सूदन (शब्द०)। घुरघुर शब्द निकलता है। घुरकवा । .. गराज ---संज्ञा पुं० [अं० गैरेज] १. मोटर कार रखने का स्थान । २. गरारी --संवा स्त्री॰ [हिं॰] दे॰ 'गराड़ी' । - रिक्शा रखने की जगह। . गरावना -मंज्ञा पुं० [हिं०] ३० 'गड़ावन' । - गराड़ी-संज्ञा स्रो० अनु० गड़ गड़ या सं० कुण्डली काठ या लोहे गरावा-संज्ञा पुं॰ [देश॰ कम उपजाऊ भूमि । हलकी जमीन। ' का वह गोल चक्कर जिसके घेरे में रस्सी बैठने के लिये गड्ढा गरास -संज्ञा पुं० [सं० ग्रास] दे० 'पास'। ' बना रहता है और जिसमे रस्सी डालकर कुएं से पड़ा निकालते गरासना-क्रि० स० [सं० ग्रास, हि० गरास+ना (प्रत्य॰)].. हैं, पंखा खींचते हैं तया . इसी प्रकार के और बहुत से काम . ग्रासना' । उ०--रैनु नि होइ रविहि गरासा। -जायसी करते हैं । घिरनी । चरखी। . (शब्द०)। गराड़ी--- श्री. से. गण्ड चिह्न] - रगड़ ग्रादि से पड़ी हई गरास मोप्रर-संचा पुं० [अं० ग्रास+मोनर] मैदान की घास बराबर • गहरी लकीर । गड्ढे के रूप में दूर तक पड़ा हुआ लंबा . करने की कल ।। .. चिह्न । साँट । ..... गरिका-संवा सी० [सं०] नारियल को गरी । गरी [को०] । - मुहागराड़ी पड़ना=गहरा चिह्न होना। गरित'-वि० [सं०] विषयुक्त । विपला (को०। - गराविका संज्ञा स्त्री० [सं०] १. लाख का कीड़ा । २. लाखका-रंग गरित हु-संज्ञा पुं॰ [सं० गत] दे० 'गत' । उ०-सुनि सुबचन गिरि ...को०] . - राज को कहि रिपि कारन बात । पुत्र एक जच्चं तुमहि गरित - गरान-मंज्ञा पुं० [फ० मैनग्रोव चौरी नाम का वृक्ष जिसकी छाल से सपूरन गात |-पृ. रा०, १११७७ 1 - रंग निकाला और चमड़ा सिझाया जाता है। गरिमता-संवा बी० [सं० गरिमा भारीपन । भराव । उ-- गराना -क्रि० स० [हिं० गलाना] दे० 'गलामा'। उरजनि नहिन गरिमता तैसी । बचन चातुरी फुरी न वैसी। गराना-क्रि० स० [हिं०. गारना| निचोड़कर दूर करना । निचोड़ना। नंद००, पृ० १५७ । वहाना । उ०--तब मघवा मनमारि हारि के बढ़े सोंच सों गरिमा-संवा श्री० [सं० गरिमन्] १. गुरुत्व । भारीपन। योझ। २. .....छायो । भयो कृष्ण अवतार भूमि पै. मेरो गर्व गरायो (शब्द०)। महिमा । महत्व । गोरव । ३. गर्व अहंकार । घमंड। ४. ...गरानिगरानो-संवा स्त्री०स० ग्लानि, से० हि० गलानि] दे० आत्मश्लाघा । शेखी। ५. पाठ सिद्धियों में से एक सिद्धि जिसते साधक अपना बोझ चाहे जितना भारी कर सकता है। -गरानी--संश सी० [फा०गिरानी] दे० 'गिरानी'।' गरियर-वि० [हिं०] दे॰ 'गरियार'। गराव----संगी पुं० [देश॰] १.तीन मस्तूलोंवाला एक प्रकार का बड़ा गरियल वि० [हिं०] दे० परिवारा। जहाज जिसका व्यवहार १४ वीं शताब्दी में बंगाल और उसके गरियल२--संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का किल किला पक्षी जिनका .. - आसपास की खाड़ियों में होता था। उ० --रज्जव प्राण.. सिर भूरे रंग का होता है.। . ...पपान जड़ गुरु गराब लिए देव । पट पेखो पिंड पलट प्रथमाहि, 'गरिया-संचा पुं० [देश॰] एकार का पेड़। तृप्टि'जु लग्गी सेव। -रज्जव०, ०७ २.साधारण नाव। विशेष यह मध्यप्रदेश, मध्यभारत, बरार और मद्रास में होता - गरामी-वि० [फा०] दे० 'गिरामी' 1 न है। यह पेड़ साधारण ऊंचाई का होता है और शिशिर ऋतु रारा'::वि० [सं० गर्व, प्रा०, पुं० हि गारो+पार (प्रत्य॰)] में इसकी पत्तियाँ झड़ जाती हैं। इसकी लफडी दड़, कठिन - गर्वयुक्त । प्रवल । प्रचंड । बलवान । उद्धत। उ०-(क) . सुंदर, चमकीली और साफ होती है और प्रति घनफुट पचीस ...