पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१६२

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गरियाना १२३६ __. गरुप तीस सेर तक भारी होती है। इससे गाड़ी, तस्वीरों के चौखटे, गरीब गलानि है। तेज प्रताप बढ़त कुपरिन को जदपि सकोची खेती के सामान तथा मेज, कुरसी आदि बहुत सी चीजें बनाई बानि है। तुलसी (शब्द०)। . जाती हैं। यह पानी में बहुत दिनों तक बनी रहती है और यौ०-गरीवनिवाज । गरीबपरवर । इसपर नक्काशी भी अच्छी होती है। हिंदुस्तान से यह लकड़ी २. दरिद्र । निर्धन । अकिंचन । कंगाल । जैसे-दे दो, गरीब विलायत को बहुत जाती है और वहाँ आलमारी, कुरसी, मेज, प्रादमी का भला हो जायगा। ब्रुश का दस्ता आदि बनाने के काम में लाती है। इसे बहुरूपी यौ०-गरीबगुरवा निर्धन और कंगाल लोग। .. भी कहते हैं। ३.विदेशी । परदेशी (को०) । ४.मुसाफिर । सफर करनेवाला। गरियाना-क्रि० स० [हिं० 'गारी' से नामिक धातु ]. दुर्वचन यो-गरीबजादा वेश्यापुन । रंडी या खानगी का लड़का। कहना । गाली देना । अपशब्द कहना । गरीवर- संज्ञा पुं० संगीत में एक आधुनिक राग जो मुकाम राग का : : गरियार-वि० [हिं० गड़ना-एक जगह रुक जाना] [अन्य रूप, गरि पुत्र माना जाता है। यर, गरियल, गरियारा, गरियारू ] जगह से जल्दी न उठने गरीबखाना - संवा पुं० [अ० गरीब+फा० खानह] दीन या निधन . वाला। सुस्त । बोदा। मट्ठर । उ०—पंडे पग चालइ नहीं, .का घर। . होइ रहा गरियार । राम अरथ निवहै नहीं, खइवे को विशेष विनय या नम्र भाव से अपने घर को 'गरीबखाना' कहढे ... हुसियार ।-दादू (शब्द०)। (ख) कोई भल जस धाव हैं। इसके साथ 'अपना' शब्द व्यवहृत होता है। तुखारू । कोइ जस चल बैल गरियारू ।-जायसी (शब्द०)। गरीबनिवाज-वि० [फा० गरीब निवाज] दीनों पर दया करने..... विशेष--चौपायों के लिये इस शब्द का प्रयोग अधिक होता है। वाला। दुखियों का दुःख दूर करनेवाला । दयालु । उ०-गई . गरियालू-संज्ञा पुं० [हिं० करिया से करियाल] एक प्रकार का रंग बहोर गरीबनिवाजू । सरल सवल साहेब रघुराजू । तुलसी। ___ जो काला नीला होता है। गरीबनेवाज वि० [फा० गरीब+निवाज ] दे० 'गरीवनिवाज'। .. विशेष- इसमें ऊन रंगा जाता है। इसके बनाने की विधि यह है कि दो सेर नील की बुकनी गंधक के तेजाव में मिलाकर उ० (क) नाथ गरीबनेवाज हैं मैं गही न गरीबी । तुलसी , एक मजबूत मटके में रख देते हैं। यह उसमें एक दिन और प्रभु निज और तें वनि पर सो कीवी।-तुलसी (शब्द०)। ' रात रखी रहती है। ऊन को रंगने के पहले उसे चूने के पानी (ख) प्राजु गरौवनेवाज मही पर तो सो तुही सिवराज ... बिराजै ।-भूपण ग्रं॰, पृ०७। .... में डुबाकर कई बार साफ पानी से धोकर धूप में सुखाते हैं। फिर उबलते हुए पानी में थोड़ा सा रंग मटके में से लेकर गरीबपरवर-वि० [फा०. गरीबपरवर ] गरीबों को पालनेवाला। मिला लेते हैं और ऊन को उसमें डाल देते हैं। यह ऊन उसमें __दीनप्रतिपालक । दीनों का रक्षक । . तबतक पड़ा रहता है जबतक उसपर रंग नहीं चढ़ जाता।। गरीवान-संज्ञा पुं० [फा०] दे० 'गरेबान । फिर उसे निकालकर फिटकरी मिले पानी में पछार डालते हैं। गरीवाना--वि० [फा० गरीवानह] गरीबों की तरह । गरीवामऊ। . गरियालू - वि० काले नीले रंग का । गरियाले रंग का गरीबामऊ - वि० [हिं० गरीव+मय (प्रत्य॰)] गरीबों के योग्य ।। गरिष्ठ'-वि० [सं०] अति गुरु । अत्यंत भारी। २. अत्यंत यावश्यक कंगाल के वित्त के अनुकूल । छोटा मोटा । भला बुरा। अत्यंत महत्वपूर्ण (को०)। ३. जो पचने में हलका र गरीबी-संचा श्री० [अ० गरीब+फाई (प्रत्य०).] १. दीनता। जल्दी न पचे। जिससे कोष्ठबद्ध हो। कव्ज करनेवाला अधीनता। नम्रता । उ०-(क)पुर, पांव धारिई उधारिहूँ . ४. गौरवयुक्त । गरिमामंडित। . .. तुलसी से जन जिन जानि के गरीबी गाड़ी नहीं हैं।--तुलसी गरिष्ठ --संज्ञा पुं० [सं०] १.एक राजा का नाम । २. एक दानव का (शब्द॰) । (ख) कविरा केवल राम कहु शुद्ध गरीबी लाज।.. नाम । ३. एक तीर्थ का नाम : . .. .. . कूर बड़ाई बूड़सी भारी परसी काज ।--कबीर (शब्द०)।.. गरी-संश्च त्री० [सं०] देवताड़ वृक्ष। २ दरिद्रता । निर्धनता । कंगाली। मुहताजी। जैसे,--कपड़ा .. गरी संशा स्त्री० [हिं० गिरी] १. नारियल के फल के अंदर का फटा, गरीवी आई। वह गोला जो छिलके के तोड़ने से निकलता है और मुलायम - मुहा०-गरीवो पाना- दरिद्रता होना । मुहताजी होना। ... तथा खाने लायक होता है। २. वीज के अंदर की गूदी। गरीयस्-वि० [सं० गरीयस् [वि० सी० गरीयसी] १ बड़ा भारी। गिरी । मोगी। गुरु । २. महान् । प्रबल । जैसे,—हरीच्छा गरीयसी। . गरीठ-वि० [सं० गरिष्ठ, प्रा० गरि४ ] गरिष्ठ । गौरवयुक्त। ... ३. गौरवान्वित । महत्वपूर्ण । उ-प्रावध वंघे ऊठिया आकारीठ गरीठ।-रा0 रू0, 'ग-वि० [सं० गुरु] १.भारी । वज़नी। २. जिसका स्वभाव गभार हो। शांत । गरीब'- वि० [अ० गरीब] [वि० स्त्री० गरीबिन, गरीबिनी (क्व०)। गरुमा-वि० [सं० गुरुक] १. भारी । वजनी । २. गंभीर। उत्ता संशा गरीबी] १. नम्र। दीन । हीन । उ०—(क) कोटि इंद्र:

उ०—सुदरि गरुन तोर विवेक, विनु परिचये पेमक आकुर, रचि कोटि बिनासा। मोहि गरीव की केतिक भासा ।-सूर पल्लव भेल अनेक । -विद्यापति, पृ० २२६। - (शब्द०)। (ख) देखियत भूप भोर कैसे उड़गन गरत . .. गरुपर-वि० [हिं०] भारी। वजनी।