पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१७२

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गलताड़ १२४६ गलफूला विशेष-इसका ताना रेशम का और बाना सूत का होता है। के अंगों, और बहुत अधिक पकने या अधिक समय तक पड़ें यह सादा, धारीदार और अन्य कई प्रकार का होता है। रहने के कारण फल पत्तों आदि का सड़कर गलना। २. मकान की कारनिस । २. बहुत जीर्ण होना। जैसे, कपड़ा या कागंज गलना। ३. . गलताड-संज्ञा पुं० [सं०] जूए या जुआठ की वह सैल या खूटी जो शरीर का दुर्वल होना । बदन सूखना । जैसे--पाठ दिन की '. अंदर की ओर होती है । बीमारी में बिलकुल गल गए। ४. बहुत अधिक सरदी के गलतान'–वि० [फा० गलतान्] चक्कर मारता हुआ । लुढ़कता कारण हाथ पैर का ठिठुरना । जैसे,-याज तो सरदी के मारे " हुआ। घूमता हुआ । उ०---गमन दुपारे मन गया कर अमृत हाथ गल रहे हैं। ५. वृथा या निष्फल होना । वेकाम होना। ... रस पान । रूप सदा झलकत रहै, गगन मॅडल गलतान ।- नष्ट होना । जैसे,---दीव गलना, मोहरा गलना।. कबीर (शब्द०) मुहा ---कोठी गलना--कुएँ या पुल के खंभे में जमक्ट या गोले .. गलतान-संज्ञा पुं० एक प्रकार का रेशमी वस्त्र । के ऊपर की जोड़ाई का नीचे धंसना । चीनी गलना-मिठाई.." गलतानी -वि० [फा० गलतान] दे० 'गलतान' । उ०-दरिया आदि बनाने के लिये चीनी का कड़ाही में ढाला जाना। तीनों लोक में, देखा दोय विना न गुजरानी गुजरान में, नाम पर गलना =प्रिय को प्राप्त करने के लिये अनेक .. गलतानी गलतान ।-दरिया० बानी, पृ० ३७ । कष्ट सहना । उ०-गलों तुम्हारे नाम पर ज्यों घाटे में नोन, . . गलती संज्ञा हो अ० गलत+हिं० ई] १. भूल । चूक | धोखा । ऐसा बिरहा मेलकर नित दुख पार्व फौन |--कबीर सा० . मुहा०—ालती में पड़ना=धोखा खाना । भूल करना। सं०, पृ०४५ । रुपया गलना-व्यर्थ व्यय होना। फजुल खर्च २. अशुद्धि । मूल। होना । जैसे-कल उनके पचास रुपए तमाशे में गल गए।.. क्रि० प्र०—करना ।—रखना ।---निकलना।--पड़ना ।-होना। संया० कि०---जाना। गलथन--संज्ञा पुं० [सं० गलस्तन] दे० 'गलथना। गलपासी -संशा खी० [सं० गल+पाश] दे० 'गलफांसी' । उ0- गलथना-संज्ञा पुं० [सं० गलस्तन, प्रा० गलत्थन, गलथन] वे थैलियाँ सुख की चाहै पड़े गलपासी, देखन हीरा हाथ थे' जासी । जो एक विशेष प्रकार की बकरियों की गरदन में दोनों ओर --संतवाणी०, पृ० १०० ।। लटकती रहती हैं। ज. HM a या भली माकन गलफड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० गाल-फटना 1१. जलजंतूमों का यह ", अवयव जिससे वे पानी में साँस लेते हैं। भला न पूत । छेरी के गल गलथना जामें दूध न मूत ।- कवीर (शब्द०)। विशेष ऐसे जंतुओं में फेफड़ा नहीं होता। यह सिर के नीचे . गलथैली-संज्ञा स्त्री० [हिं० गाल+थली] बंदरों के गाल के नीचे दोनों पोर होता है और भिन्न भिन्न जलजंतुनों में भिन्न भिन्नः । की थैली जिसमें वे खाने की वस्तु भर लेते हैं। आकार का होता है। मछलियों के गले में सिर के दोनों गलदश्रु क्रि०वि० [१०] आँसू बहाता हुआ । रोता हुया [को॰] । ओर दो अर्धचंद्राकार छेद या कटाव होते हैं। इन्हीं छेदों गलद्वार--संज्ञा पुं॰ [सं०] मुख । मुह (को०] । के अंदर चार चार अर्धचंद्राकार कमानियां होती हैं जिनके गलन-संज्ञा पु० [सं०] १. वूद वू द गिरना। चूना । टपकना। ऊपर लाल-लाल नुकीली सुइयों की झालर होती है जिसे रिसना । क्षरण । २. झड़ना । ३. ठढ़ आदि से गल जाने की गलछट कहते हैं। इन्हीं गलछटों से होकर मछलियाँ पानी में .. स्थिति । गलना । ४. पिघलना । ५. सरकना (को०] । साँस लेती हैं जिससे पानी में मिली हई वायु मात्र अंदर जाती है और पानी छंटकर बाहर रह जाता है। गलनहाँ'- संचा पुं० [हिं० गलना+नह = नाखून ] हाथियों का हथिया का २. गालों के दोनों प्रोर का वह मांस जो दोनों जवड़ों के बीच - एक रोग जिसमें उनके नाखून गल गलकर निकला में होता है । गाल का चमड़ा। . करते हैं। गलफर, गलफरा--संवा पुं० [हिं०] दे० 'गलफड़ा। गलनहीं-- वि० (हाथी) जिसे गलनहाँ रोग हो।। गलफाँस-संज्ञा स्त्री० [सं० गलपाश मालखंभ की एक कसरत ।। गलना कि० अ० [१० गरण-तर होता] १. किसी पदार्थ के विशेष—इसमें वेत को गले में लपेटकर उसके एक छोर से घनत्व का कम या नष्ट होना । किसी द्रव्य के संयोजक अंशों . छाती पर से ले जाकर पैर के अंगूठे के नीचे दवाकर केवल . या अगों का एक दूसरे से इस प्रकार पृथक् हो जाना गले के जोर से अपने माथे को पेट तक झुकाते हैं । इस कसरत ।। जिससे वह द्रव्य विकृत, कोमल या द्रव हो जाय । में इस बात पर विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है कि.... विशेष-यह विश्लेषण किसी द्रव्य के बहुत दिनों तक यों हो अथवा गला अधिक न कसने पाए, अन्यथा गले में फाँसी लग जान की आशंका होती है। . जल, तेजाव आदि में पड़े रहने, गरमी या आँच लगने अथवा गलफाँसी-संधा सी० [हिं० गला-फांसी] १. गले का फासा ! किसी और प्रकार के संयोग के कारण हो जाता है । जैसे- हार करदायकस्त या कार्य। जंजाल । ३. मालखंभ .. पाँच के द्वारा सोने, चाँदी ग्रादि का गलना; जल में बताणे, की एक कसरत । मिट्टी आदि का गलना; गरम जल की यांच में दाल चावल गलस्ट-संक्षा श्री० [हिं० गाल-+-फूटना[बड़बड़ाने की लत। बंधक .:' आदि का गलना, तेजाब में दवा या खनिज पदार्थों का गलना; अंडवंड वकने की लत । कल्लेदराजी। कीटाणुओं के संयोग से (कोढ़ ग्रादि व्याधियों में) शरीर गलफूला'-वि० [हिं० गाल+फुलना] जिसका गाल फूला हो। '