पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१७३

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- गलहस्तित १२५० गलफूला गलपला-संचा पुं० एक रोग जिसमें गले में सूजन होती है। गजडी -संथा स्त्री० [सं० गलशुण्डी] १. जीभ के आकार का मांस. ..'गलफेड़--संज्ञा पुं॰ [ मं० गल+पिरडु ] गले की गिलटी। का एक छोटा टुकड़ा जो प्राणियों के गले के अंदर जीभ की जड़ . गलवंदनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० गला+बंधना या हिंगला-+बंद+नी के पास होता है। छोटी जवान या जीभ । जीभी। कौमा। (प्रत्य॰)] गुलबंद नानक आभूपण जो गले में पहना जाता है। विशेप-- शब्द का उच्चारण करने में यह प्रधान सहायक है। इससे - गलवदी-संज्ञा ली [हिं० गलना+बदली ] ऐसा बादल जिसके श्वास की नलियों की रक्षा होती है और उनमें खाने पीने की - साथ हाथ पांव गलानेवाला जाड़ा पड़े। यह अवस्था प्रायः चीजें नहीं जाने पातीं। पुरुपों में यह अंश अाध इंच से कुछ, - जाड़े के दिनों में होती है। , बड़ा और स्त्रियों में कुछ छोटा होता है । बाल्यावस्था में यह गलवला-संशा पुं० [अनु॰] [वि० गलवलिया] कोलाहल । खलवली। बहुत छोटा रहता है। पर युवावस्था में दो तीन वर्षों के : . गड़बड़ी। उ०--(क) गलवल तब नगर परयो प्रगटे यदुवंशी। अंदर ही इसका आकार दूना या तिगुना हो जाता है। द्वारपाल इहै सूर ब्रह्म अंशी।—सूर (शब्द॰) । (ख) गोपद युवावस्था में जो आवाज कड़ी हो जाती है और जिसे 'कंठ - ... पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक निपट निसंक पर पुर फूटना' कहते हैं, उसका प्रधान कारण इसी के रूप और -. . गलबल मो। तुलसी (शब्द०)। आकार का परिवर्तन है । कुछ पशुओं में यह बहुत नीचे की गललिया-वि० [हिं० गलबल+इया (प्रत्य०)] १. गड़बड़ी और फेफड़े की नलियों के पास होता है। साधारणतः पक्षियों करनेवाला । २. बड़बड़ानेवाला । वातुनी।। में दो और कभी कभी तीन तक गलशुडियाँ होती है। गलवलो-तंशात्रीयनु० दे० 'गलवल'। २. एक रोग। - गलबहियाँ-संथा स्त्री० [हिं० गला+बाँह ] दे० 'गलबाही। विशेप- इसमें कफ और रक्त के विकार के कारण तालू की गलवाही-सथा सी० [हिं० गला-वाह] गले में बाँह डालना । जड़ में सूजन हो जाती है और खाँसी तथा साँस की अधिकता कंठालिंगन । उ०---सुमन कुंज विहरत सदा दै गलवाही हो जाती है। माल । वंदी चरन सरोज तिन जगल लाडिली लाल ।- गलशोथ-संक्षा पुं० [सं०] जुकाम प्रादि के कारण गले के भीतर (शब्द०)। होनेवाली पीड़ा या सूजन (को०] 1 . गलवा-संज्ञा पुं० [अ०गलवह ] १. प्रबलता । प्राचुर्य । प्राधिक्य। गलासरा-सच्चा खा० [सं० गल+ श्री] कंठधी नाम का गहना जो गले में पहना जाता है। २.प्रभुत्व । सत्ता। ३. जय। जीत । विजयप्राप्ति। ४. गलसुमा-संचा पुं० [हिं० गाल+सूजना] एक रोग जिसमें गाल के सामूहिक झगड़ा । मारकाट । बलवा [को०)। नीचे का भाग सूज जाता है। - गलमदरो—संचालो. [सं० गाल+सं० मुद्रा] १. शिवजी के पुजन, गलसुमारे संज्ञा पुं० [हिं० गला+सूजना] पशुओं का एक रोग ... - शयन ग्रादि के समय उन्हें प्रसन्न करने के लिये गाल बजाने जिसमें उनके गले में सूजन हो जाती है और उन्हें खाँसी होने की मुद्रा । गलमुद्रा । २.गाल बजाना। व्यर्थ बकवाद या लगती है। . गप्प करना । उ०---इत नप मूढ़न की गलमदरी। मिटन न गलसुई-संञ्चा नी० [सं० गाल+सुईं] गालों के नीचे रखने का एक पाई जब तक सनरी ।-विधाम (शब्द०)। छोटा, गोल और कोमल तकिया। गलत किया। उ०-कुसुम गलमुच्छा-संक्षा पुं० [सं० गल+हिं० मूछ] दोनों गालों पर के गुलाबन की गलभुई। बरणी जाय न नयनन छुई।--केशव - बढ़ाए हुए बाल । गलगुच्छा। (शब्द०)। विशेप-इसे कुछ लोग शौक से रख लेते हैं। ऐसे लोग ठोड़ी के गलस्तन-संझा पं० [संशा गलस्तनी] स्तन के ग्राकार की वे वाल तो नुड़वा डालते हैं, पर नालों के बाल बढ़ने देते हैं 1 पतली थैलियाँ जो एक प्रकार की वरियों के गले के दोनों गलमुद्रा संडा मौ० [सं० गल+मुद्रा] शिवजी के पूजन, शयन ओर लटकती रहती हैं। गलथन । - यादि के समय उनको प्रसन्न करने के लिये गान बजाने की गलस्तना-संघा खी० [सं०] बकरियों की एक जाति जिनके गले के मुद्रा । गलमंदरी। पास स्तन के आकार की दो छोटी पतली थैलियाँ लटकती रहती हैं। , गलमेखला-संज्ञा स्त्री० [सं०] कंठ का हार [को॰] । । गलस्वर-संज्ञा पुं० [सं० गल+स्वर] प्राचीन काल का एक बाजा जो . गलवाना--क्रि० स० [हिं० गिलाना' का प्रेम गलाने का काम मुह से फूककर बजाया जाता था। कराना । गलाने में लगाना । गलहेड़ा-संक्षा पुं० [सं० गलस्तन, प्रा० गलत्थरण, गलथण हि गलवार्त-वि० [सं०] १. गले के द्वारा जीविका अजित करनेवाला । गलहँड; अथवा हिं० गला+हंडा= एक बरतन] गले का एक २. गले की क्रिया में निपुण । चाटुकार । ३. खाने और रोग जिसमें गले में थैली सी लटक पाती है। धेचा।। . . पचानेवाला । तंदुस्त । स्वस्थ [को०] । गलहस्त-संथा पुं० [मं०] १. अर्धचंद्र.। गर्दनियाँ। २. अर्धचंद्र के गलविद्रवि-संज्ञा पुं० [सं०] गले का रोग । सूजन आदि। आकार का एक वाण (को०) 1 गलबत--संधा पुं० [सं०] भोर । मयूर [को॰] । गलहस्तित-वि० [सं०] १. गले से पकड़ा हुया । २.गर्दनियां दिया गलश डिका---संचा श्री० [सं० गलशुण्डिका] दे० 'गलशुडी' [को०]। हुमा । अर्धचंद्र दिया हुमा (फो।