पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१७७

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गलेफ १२५४ .. . गवनहरी गलेफ-संज्ञा पुं० [फा० गिलाफ १. दे० 'गिलाफ' । २. 'गिलेक'। गल्ला-संवा पुं० [अ० गल्लह ] [वि. गल्लई] १. जोसने बोने गलेबाज-वि० [हिं० गला+वाज] जिसका गला अच्छा चलता से उत्पन्न होनेवाले पौधों के फल, कुल मादि की दपत्र ।

हो। अच्छा गानेवाला ।

फसल । पैदावार । उपज । २. अन्त । अनाज। . ... गलेस्तना-संज्ञा श्री० [सं०] अजा । बकरी [को०)। . यो-गल्लाफरोश। गलैचा--संमा पुं० [हिं० गलीचा ] दे॰ 'गलीचा' ।। ३. वह धन जो दुकान पर नित्य की विक्री मिलता है। गलोना-संच पुं० [देश॰] एक प्रकार का सुरमा जो कंवार और धनराशि। गोलक । ४. मद। फंड । खाता। . : काबुल से आता है। गल्लाफरोश-संज्ञा पुं० [फा० गल्लह फरोश] वह दूकानदार जो गलौ-संधा पुं० [सं० ग्लौ] चंद्रमा । उ० -गंग गाइ गोमती गल्ला या अन्न वेचता हो। अनाज का व्यापारी । अन्न 2. गलौ ग्रहपति ग्रह सुरगिर। -सूदन (शब्द०)। का विक्रता। गल्ली संज्ञा स्त्री० [फा. हि गली ] दे० 'गली' । गलीपा-संज्ञा पुं० [हिं० गाल | बंदरों के गालों के अंदर की। गल्वर्क-संज्ञा पुं० [सं०] १. मद्य पीने का प्याला। प्राचीन काल में .. . ली जिसमें वे अपने खाने को वस्तु भर लेते हैं। यह पात्र गलू नामक पत्थर से बनाया जाता था। "गलौष-संज्ञा पुं० [सं०]. एक रोग । २. स्फटिक । ३. वैदूर्य मणि। ...विशेप-इसमें रोगी के गालों के अंदर एक प्रकार की सूजन गल्ह -संझ श्री० [पं० गल्ल] वात । उक्ति । उ०-तिन सुगल्ल हो जाती है और उसे साँस लेने में कठिनता होती है। वैद्यक में यह रोग कफ और रक्त के प्रकोप से माना। अच्छी कहहि 1-पृ० रा०, १1१४ । गर्व-संज्ञा ली० [सं० गम, या गम्य प्रा० ग] १. प्रयोजन सिद्ध होने . गया है। इसमें ज्वर भी आता है। का अवसर 1 घात १२. मतलब । प्रयोजन वि० दे० 'गो'। . गल्प-संज्ञा बी० [सं० जल्प या फल्प ] १. मिथ्या प्रलाप । गप्प । मुहा०-गर्व से=(१) पात देकर । मौका तजवीज कर। (२) २. डींग। शेखी। ३. मृदंग के बाहर प्रबंधों में से एक। धीरे से । चुपचाप । उ०--रावन बान महाभट भारे। देखि ..... ४. छोटी छोटी कहानियाँ । सरासन गर्वहिं सिधारे।-तुलसी (शब्द०)। गल्भ-संज्ञा पुं० [20] धूप्ट 1 ढीठ। अभिमानी । अहंकारी (को०)। गनg संक्षा पुं० [सं० गमन] गति । चाल । उ०—पदुमिनि गल्यारा-संज्ञा पु० [हि गली+पारा (प्रत्य०)] दे० 'गलयारा'। गन सगो टरी। नती लाजि मेल मिर घरी 1- गल्लसंशा पुं० [सं०] गाल । कपोल । जायसी ग्रं० (गुप्त), पृ० ३२६ । • गल्ल-संज्ञा स्त्री० [हिं गाल या सं० गल्प, प्रा० गह-बातचीत; गर्वसना -पंचा मो० [सं० गवेषणा ] अन्वेषण करना । खोजना। " तुल० फा. गिला ] बात । (पंजाबी) उ०-इसी गल्ल उ०-तिहि चढ़ि इंदऊँ करत गर्व सिया अंतरि जमवा जागू '.. धरि कन्न में वकसी. मुसकाना। हमनूवूझत तुसी क्यों किया ययाना।-सूदन (शब्द०)। गव-संज्ञा पुं० [सं० गवय ] एक बंदर का नाम जो रामचंद्र जी की गल्लई-वि० [हिं० गल्ला] गल्ले के रूप में। सेना में था। ". गल्लई- संवा पुं० १. वह खेत जिसका लगान जिंस में दिया जाता गवरगर-मंशा पुं० [सं० गमन, प्रा० गमण ] दे० 'गवत' । उ०- " हो। वटाई। २. खेत का वह लगान जो उसकी उपज के गिण शत्र मिन मारग गवण शत्रु दास उदास रह ।--- ..: रूप में काश्तकारों से लिया जाता हो। र० रू०, पृ०६। गल्लक-संघा पुं० [सं०] १. मद्य पीने का पात्र । २. चपक। गवता-संज्ञा पुं॰ [ देश ] पास । तृण । .., पुखराज । नीलमणि [को॰] । गवन -संज्ञा पुं० [सं गमन] १ प्रस्थान । प्रयाग। चलना। . गल्लचातुरी-संशात्री० [मं०] गलतकिया। गलसुई [को॰] । जाना । ३०-सुनि बन गवन कीन्ह रघुनाथा | तुलसी गल्ला'---संज्ञा पुं० [अ० गुल, हि० गुल्ला; जैसे हल्ला गुल्ला] शोर । (शब्द०) । २. वधू का पहले पहल पति के घर जाना। हीरा उ०-हल्ला परचो अवध महल्ला ते महल्ला मध्य गवना । गोना। गल्ला मच्यो बाहर हू जनम कुमार को-रघुराज (शब्द०)। गवनचारा-संगापुं० [सं० गमन--प्राचार] वधू का वर के घर गल्ला--संज्ञा पुं० [फा० गल्लह ] अँड । दल । जाना। गौना। उ०—गवनचार पद्मावति सुना। उठा विशेप---इस शब्द का प्रयोग प्रायः चरनेवाले पशुओं के लिये होता धमकि जिय गौ सिर धुना।—जायसी (शब्द०)।

. है । जैसे,— गाय भैस का गल्ला । भेड़ बकरियों का गल्ला। गवनना -क्रि० अ० [सं० गमन ] जाना। उ०--(क) पनि

.. गल्ला-संज्ञा पुं० [हि० गोल ] एक प्रकार का वैत जिसे गोला .. रानी हँसि कुसल पूछा। कित गवनेह पीजर करि F. . भी कहते हैं। . धूछा । —जायसी (शब्द॰) । (व) गवने तुरत वहां गल्ला --मंया पुं० [हिं० गाल] उतना अन्न जितना, रपिराई । जहाँ स्वयंवर भूमि बनाई।- तुलसी (ब्द०)।

में' पीसने के लिये डाला जाय । कौरी।

1, गवनहारी-संशा.सौ-सं० मायन, हिं -हारी. को