पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१८

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हिंदी शब्दसागर . . त ... होनी क्षतव्य-वि० [सं० क्षन्तव्य] क्षमा करने के योग्य । क्षम्य 1 30- क्षणभंग-संवा पुं० [सं० क्षणभङ्ग] एक बौद्ध सिद्धांत जिसमें हो नहीं शंतव्य जो मेरे विहित पाप, दो बचन अक्षय रहे वस्तुओं की स्थिति एक क्षण की मानी गई है। इसे क्षणिकवाद यह ग्लानि, यह परिताप 1-साम०, पृ० ५०1 भी कहते हैं। . . - संता--वि० [सं० क्षन्तृ क्षमाशील । क्षमा करनेवाला 1. विशेष-2. 'क्षणिकवाद' . क्ष-संज्ञा पुं० सं०] १. विध्वंस । विनाश ! २.हानि अिंतर्धान। यौ०-अणभंगवाद =क्षणिकवाद (बौद्ध)। ...", लोप ।३.खेत । ४: कृषक । फिसान । ५. विष्णु का चौया क्षणभंग -वि० [सं० क्षमङ्ग र क्षण भर में नष्ट होनेवाला। अवतार । ६ विद्युत । बिजली । ७.एक राक्षस (को०] 1 . अंनित्य। नाशवान् । ३०-समर मरन पुनि सुरसरि तीरा। क्षण · संशा पुं० [सं०] [वि० क्षणिक] १. काल या समय का एक .. राम काज क्षणभंगु शरीरा---सुलसी (शब्द०)। . बहुत छोटा भाग।' . . . . क्षणभंगुर-वि० [सं० क्षणाभङ्ग र] शीन नष्ट होनेवाला । क्षण भर .: विशेष-क्षण की मात्रा के विषय में बहुत मतभेद है। महा• में नष्ट होनेवाला । अनित्य : उ०-सुख संपति दारा सुत हय .: भाष्यकार पतंजलि के मत से काल का वह छोटा भाग जिसके गय हठं सर्व समुदाय क्षणभंगुर ए सर्व पयाम बिनु अंत नाहिं टुकड़े या विभाग न हो सकें. क्षण है। उनके मतानुसार क्षरण का - संग जॉय।-सूर (शब्द॰) । काल के साथ व्ही संबंध है, जो परमाण, का द्रव्य के साय क्षणमूल्य-संज्ञा पुं० [सं०] नगद दाम । तुरंत ही दी जानेवाली कीमत । है.. किसी के मत.से पल या निमिष का चतुर्थी श, और किसी विशेष-शाम शास्त्री ने इसका अर्थ कमीशन किया है। के मत से दो दंड या मुहूर्त एक क्षण के बराबर है। अमर क्षरणरामी'-संशा पुं० [सं० क्षरणरामिन] कपोत । कबूतर ।' के अनुसार तीस कला या मुहूर्त के बारहवें भाग का एक क्षण क्षणविवंशी-वि० [सं० क्षणविध्वंसिन्] क्षण भर में नष्ट होनेवाला। होता है। पर न्याय के मत से महाकाल नित्य द्रव्यं है और क्षणविध्वंसी-संज्ञा पुं० अनीश्वरवादी दार्शनिकों का एक समुदाय, उसके भाग या अंश नहीं हो सकते, इसलिए क्षण कोई अलग जो यह मानता है कि संसार प्रति क्षण नष्ट होता और नया ..' पदार्थ नहीं। . . . जन्म प्राप्त करता है। यो०-क्षणमात्र = थोड़ी देर। क्षणस्थायी-वि० [सं० क्षण स्थायिन्) क्षणिक । क्षणभंगुर । २.काफ ! ३. अवसर । मौका । ४. समय । वक्त । ५.उत्सव। क्षणिक-वि० [सं०] एक क्षण रहनेवाला । क्षणभंगुर । अनित्य । हर्ष । आनंद। क्षणिकर-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'क्षणिकवाद। क्षरणतु- संघा पुं० [सं०] धाव । जखम [को०] . क्षणिकता--संक्षा पी. सिं०] क्षणिक का भाव । क्षणभंगुरता। क्षणद-संवा पुं० [सं०] १.जल । २.ज्योतिपी । ३. वह जिसे रात क्षणिकवाद-संशा पुं० [सं०] बौढों का एक सिद्धांत जिसमें प्रत्येक को दिखाईम पढ़ता हो1४.रात को दिखाई न पड़ने का वस्तु को उसकी उत्पत्ति से दूसरे क्षण में नष्ट हो जानेवाला ... एक रोग । रतौंधी को . .. . . मानते हैं। . . . क्षणदा-संघा सी०सं०] १.रात्रि। रात । २. हल्दी। ' विशेप-इस मत के अनुसार प्रत्येक वस्तु में प्रतिक्षण फछन क्षणदाकर-संज्ञा पुं० [सं०] चंद्रमा । .... कुछ परिवर्तन होता रहता है और उसकी अवस्था या स्थिति क्षरण्युति-- संज्ञा सी० [सं०] विद्युत । बिजली। ... बदलती जाती है। इस सिद्धांत में सब पदार्थों को अनित्य क्षरगन-संक्षा पुं० [सं०] १. चोट पहुंचाना । प्रहार करना। २.हनन । : मानते हैं । इसे क्षणिक या क्षणभंग भी कहते हैं। . वध करना [को०] ! क्षणिकवादी-संशा पुं० [सं०. क्षणिकवादिन] १.क्षणिकवाद पर क्षणनि:श्वास-संज्ञा पुं० [सं०] सूस नामक जलचर । शिशुमार (को०] विश्वास रखने वाला व्यक्ति । उ०-बौद्ध धर्म से संबंधित । क्षणप्रकाशा-संथा की० [सं०] ३' क्षणति। क्षणिकवादी पौर शून्यवाादी मतों का उल्लेख पाया है- क्षणप्रभा-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] बिजली । विद्युत् । . हिंदु० सभ्यता, पृ० २२