पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१८३

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गहरे: १२६० -- गहरे-क्रि० वि० [हिं० गहरा अच्छी तरह । खूब । यथेच्छ। गहिला--वि० [हिं० -गहेला] बाबला । पागल । उन्मत्त । 'उ० -- मुहा०-गहरे करना= माल मारमा | खूब लाभ उठाना । तन मन मेरा पीव सौं, एक सेज मुख सोइ । गहिला लोग गहरे चलना=(१) घात में लगना । (२) जाते हुए पथिक न जानहीं, पचि पत्रि आपा खोइ। दाटू (शब्द०)। ... के प्राण लेना।-(ग भापा) । (३) एक्के के घोड़े का खूब वि० दे० 'नहेला'। ... जोर से कदम चलना । गहिलाना-क्रि० अ० [हिं० गहराना] गहरा होना । फैलना । गहरेवाजी-संज्ञा ली [ हि गहरे+वाजी ] एक्के के घोड़े की बहना । उ०-~-पाँखे पाणी थाहइ जलि काजल गहिलाइ।- .::, खूब जोर की कदम चाल । ढोला०, दू०६।. गहलोत-संज्ञा पुं० [सं०.गोमिल?] राजपूताने के क्षत्रियों का एक गहार -वि० [सं० गभीर] दे० 'गहरा'। गहीला वि० [हिं० गहेला ] [खो० गहीली, गहेली] १. विशेप-सिसोदिया और अहेरी इसो वंश की शाखाएँ हैं। गर्वयुक्त । घमंडी । उ--(क) राधा हरि के गर्व गहीली।- ... गहलौत नाम के विषय में भिन्न भिन्न प्रकार के प्रवाद प्रच सूर (शब्द॰) । (ख) कहति नागरी श्याम सों तजी मानु ...[[Category:हिंंदी शब्दसागर तृतीय भाग]. लित हैं। कोई इसे गोहिल या गोभिल से निकला बतलाते हठीली । हम तें चूक कहा परी तिय गर्व गहीली 1--सूर : है: कोई-कोई कहते हैं कि गुजरात से भगाए जाने पर जब (शब्द०)। २. पागल । मदोन्मत्त । ..". मेवाड़ के महाराणा के पूर्वपुरुष भागे, तब राजमहिपी को एक गहु-मंचा बी० [सं० गह्वर या ग] छोटा रास्ता । गली। ....... ब्राह्मण ने शरण दी और उन्हें वहीं एक गुहा में एक पुत्र गहुप्रा- संज्ञा पुं० [हिं० गहना पकड़ना] एक प्रकार की सैंडसी उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गुहलौत रखा गया। ___ जिसका मुह बहुत छोटा होता है । गहवा । गहवा -संक्षा पुं० [पु० हिं० गहब, हि० गहना=पकड़ना संडसी । विशष- इससे लोहार प्राग में से गरम लोहा पकड़कर निकालते गहवाना-क्रि० स० हिं० गहना का प्रे० रूप ] पकडने का है और निहाई पर रखकर से पीटते हैं। इसी प्रकार की .: काम करना । पकड़ाना । छोटी सँड़सी सोनारों के पास भी होती है जिससे पकड़ कर वे गवारा-संवा पुं० [हिं० गहना] रस्सी में लटकाया हुया खटोला तार ग्रादि खींचते हैं। इसे भी गहुमा कहते हैं।

. 'जिसपर बच्चों को सुलाकर झलाते हैं। पालना । झला। गहूरी- संञ्चा स्त्री० [हिं० गहना धारण करना किसी दूसरे के

. . . .हिंडोला । माल को अपने यहाँ हिफाजत के साथ रखने की मजदूरी। गहन्वह –संथा पुं० [हिं०] चहल पहल । शोर। उ०—सुने गहब्बह गहेजुपाई - संशा पुं० [देश॰] छछू दर । उ०-मछरी मुख जस ... केहरी उठ्यो हक्कोर 1 - पृ० रा०, २४ । ३४५ । केचुया, मुसवन मुंह गिरदान । सर्पन माह गहेजुया, जाति महासंज्ञा पुं० सं० ग्राह] ग्राह। मगर । उ० फिर वाके एक सबन की जान । कबीर (शब्द०)। ... गहा मिली।-पोद्दार अभि ग्रं॰, पृ. १००५ । गहेलरा-वि० [हिं० गहेला] [वि० श्री. गहेलरी] १. उन्मत्त । गहाई - संवा बी० [हिं० गहना गहने का भाव । पकड़। पागल । २ मूर्ख। अज्ञानी । गॅवार । उ०—विरहिन थी तो गहागड्डु-वि० [देश॰] दे॰ 'गहगड्ड' । क्यों रही, जरी न पावक साथ । रह रह मूढ़ गहेलरी, अब क्यों ... गहागह क्रि० वि०अन० दे० 'गहगह' । उ०-सनत राम अभिपंक . माज हाथ |--कबीर (शब्द०)। .: सुहावा । वाज गहागह अवध बधावा ।-मानस, २७ नहला-० [ह° गहना- पकड़ना+एला (प्रत्य॰)] [वि०बी० गहाना-क्रि० स० [हिं० गहना (=पकड़ना) का प्रे• रूप धराना। गहेली] १. हठी । जिद्दी । २. अहंकारी। मानी । घमडो। .." . पकड़ाना । गहवाना । उ०-ग्राजु जो हरिहिं न सस्त्र जैसे,- नारद को मुख माड़ि के लीन्हें बदन छिनाइ । गर्व .. गहाऊँ। तो लाजौं गंगा जननी कौं, सांतनु सुत न कहा।- गहेली गर्व ते, उलटि चली मुसुकाई ।-कवीर (पशब्द०)। सूर०, १।२७० । ३. पागल । खन्ती। उ० मूवा पीछे मुकुति बतावे, मूवा गहिरो-वि०० गम्नौर] दे० 'गहरा' । उ-बांधल हीर अजर पीछे मेला । मूवा पीछे अमर अभय पद, दादू भूल गहेला।-. लए हेम । सागर तह हे गहिर छल पेम !-विद्यापति, पृ० दादू (शब्द॰) । ४. गवार । अनजान । मूर्ख। ., १४ । गहैया वि० [हिं० गहना+ऐया (प्रप्य०)] १. पकड़नेवाला। 'गहिरदेव--संधर पुं० [हिं० गहिर+देव काशी के एक राजा का पुत्र ग्रहण करनेवाला। २. अंगीकार करनेवाला। स्वीकार - जिसे गहरवार लोग अपना प्रादिपुरुप मानते हैं । करनेवाला। 'गहिरा-विका हि. गहरा वि० बी० गहिरी] उ०-तिन ते यो०--हाय गहेवा-सहायक । मददगार । . ..बहति जु सरिता गहिरी । दूरि दुरि लौं पसरति लहरी। गह्वर-वि० [सं०] १. दुर्गम । विपय । २.छिपा हमा। गप्त । -नंद००, पृ० २८४ ।। घना । गहरा । निविड । गहिराई-संज्ञा स्त्री० [हिं० गहराई] दे० 'गहराई। गहर-संज्ञा पुं० [सं०] १.अंधकारमय और चूह स्थान । २. जमीन गहिराव--संज्ञा पुं० [हिं० दे० 'गहराव' । में छोटा सूराख । बिल । ३. विपम स्थान । दुर्भद्य स्थान ।' गहिरो, गहिरोल-वि० [हिं० दे० 'गहरा' । उ०--ग्रागै जाउ' ४. गुफा। कंदरा । गुहा । ५. निकुंज । लतागृह । ६. झाड़ी। .:.. 'जमुन जल गहिरो पा सिंह जु लाग!-सूर०, १०४॥ ७. जंगल । वन । ३०-कटि तट तुन, हाथ सावक धन, सीतां कबीर (शब्दः, सर्पन माह गहे गहेलरा