पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/१८५

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गांधार पंचम

.. १२६२ ...... हुयनच्चांग के समय में इस देश के अंतर्गत सिंधु नद से लेकर गांवारि-संहा पुं० [सं० गान्धारिः] गांधार राजकुमार । दुधोंबन का " जलालाबाद तक यौर स्वात से कालाबाग तक का प्रदेश या मामा। शकुनि (को०)। . ऋग्वेद में यहां अच्छी भेड़ों का होना लिया है। गांधारी इस गांवारो-संञ्चा ली. [सं० गान्धारी] १. गांधार देश की स्त्री या राज . देश की कन्या थी। ... कन्या । २. धृतराष्ट्र की पत्नी या दुर्योधन की माता का नाम । .२.[को० गान्धारी] गांधार देश का रहनेवाला व्यक्ति । ३. विशेप-यह गांबार देश के राजा सुवल की कन्या थी। शिव ने गांधार देश का राजा या राजकुमार । ४.संगीत में सात स्वरों इन्हें सौ पुत्र होने का वर दिया था। धृतराष्ट्र की पत्नी होने . . में तीसरा स्वर। पर इन्होंने पति को अंधा देख अपनी आँखों पर भी पट्टी - विशेप-इसकी दो श्रुतियां हैं -रोटी और कौवा । इसकी जाति वाँध ली थी। २. मेघ राग की पांचवीं रागिनी। वैश्य, वर्ण सुनहला, देवता सरस्वती, ऋषि चंद्रमा, छंद त्रिष्टुन, " वार मगल; ऋतु वसंत और स्थानं दोनों हाथ हैं ।इसकी विशेष- यह संपूर्ण जाति की रागिनी है और दिन के पहले ... आकृति यग्नि की और संज्ञान हिंडोल रान है। इसका अधि- पहर में गाई जाती है। रि, ध,नि, प, म, ग, रि, स इसका कार शाल्मली द्वीप में है। इसका प्रयोग करुण रस में होता सरगम है । कोई कोई इसे हिंडोल राग की रागिनी मानते . . है। नाभि से उठकर कंठ और शीर्ष में लगकर अनेक गंधों हैं। कुछ लोगों का मत है कि यह घनाथी और स्वराष्टक . को ले जानेवाली वायु से इसकी उत्पत्ति होती है। यह स्वर को मिलाकर बनाई गई हैं। कोई इसे सारस्वत और धनाश्री . बकरे की बोली ले लिया गया है । इसके दो भेद होते हैं- से मिलकर बनी हुई बतलाते हैं।

शुद्ध और कोमल। इस स्वर का ग्रहस्वर बनाने से निम्न- ४. तंत्र के अनुसार एक नाड़ी। ५. जैनों के एक शासन देवता ।

लिखित प्रकार से स्वरग्राम होता है। गांधारः -स्वर । तीन ६.पार्वती की एक सखी का नाम । ७. जवासा । ८. गाँजा। ' मध्यमपम । कोमल वैवत-गांधार। वैवत-मध्यम। गाधारय-संशा पुं० [सं०] दुर्योधन को ".:". निपाद-पंचम । कोमल ऋाम-रस । कोमल गांधार- गाविक-संधा पुं० [सं० गान्धिक] १. गंधी। २.गाँधी नामक कीडा। . निपाद । कोमल गांधार को ग्रहस्बर बनाने से स्वरग्राम इस ३. गंधद्रव्य । ४. लिपि कार । लेखक (को०)। • प्रकार होता है-गांधार कोमल-स्वर । मध्यम-पम । गाघा-खा [२० गान्त्रिक] १. हर रग का एक छोटा कोड़ा। . . पंचन ।—गांधार। कोमल धैवतमध्यम । कोमल निपाद विशेप--यह वर्पा काल में धान के खेतों में अधिक होता है। . पंचम । स्वर-धवत । ऋषभ-निपाद । . इससे धान के पौधों को बड़ी हानि पहुचाती है। इसमें एक ५.संपूर्ण जाति का एक राग । तीव्र दुगंध होती है। रात को यह चिराग के सामने भी - विशेप-यह प्रातःकाल १ दंड से ५ दंड तक नाया जाता है। उड़कर पहुचता है और इसके आते ही खटमल की तरह की

हनुमत के मत से यह भैरव - राग का पुत्र है और किसी के मत

एक असह्य दुर्गध उठती है। ' . . से दीपक राग का पुत्र है। २.एक घास ।। ३. हींग । ४. किराने की व्यापारी । ५. वैश्यों की ६. एक संकर राग जो कई रागों और रागिनियों को मिलाकर एक जातीय उपाधि या पल्ल । ६. महात्मा गांधी । अंग्रेजों के - १० - बनाया जाता है। ७.संगीत के तीन स्वरग्रामों में से एक । शासन से भारत को स्वतंत्रता दिलानेवाला एक प्रमुख नेता । विशेप-इसमें नंदा, विविशाखा, सुमुपी, विचित्रा, रोहिणी, इनका पूरा नाम मोहनदास कर्मचंद गांची था। ये गुजराती थे। ..'सुपा घोर आलापिनी ये सात मुर्छनाएँ हैं और जिसका इनका जन्म २ अक्टूबर, १८६६ चौर निधन ३० जनवरी, व्यवहार स्वर्गलोक में नारद द्वारा होता है। इसके अधिष्ठाता १६४८ को एक व्यक्ति द्वारा गोली मारे जाने के कारण हमा। देवता शिव कहे गए हैं। यौ०-गांधी टोपी= श्वेत खद्दर की. किश्तीनुमा टोपी । गाँधी 5. गंधरस नामक सुगंध द्रव्य । ६.सिंदूर (को०)। . . वादगांधी जी के विचारों के आधार पर स्थापित या . गांधार पंचम--संा पुं० [सं०] एक पाड़व. राग। ' पोपित मत ! विशेष--यह 'मंगलीक राग है और अद्भुत हास्य तथा करुण गांभीर्य-संञ्चा पुं० [सं० गाम्नीय] १. गहराई। गंभीरता। २. - रस में इसका प्रयोग होता है। इसमें ऋषभ नहीं लगता। स्थिरता । अचंवलता । ३.हर्ष, क्रोध, भय आदि मनोवेगों से - म, प, घ, नि, स, ग, म इसका सरगम है । इसमें प्रसन्न चंचल न होने का गुण । शांति का भाव । धीरता। ४. मध्यम अलंकार और काकली का संचार होना आवश्यक है। किसी विषय की गूढ़ता । गहनता । जटिलता। इसे केवल गांधार भी कहते हैं। गाँई -संञ्चा सी० [हिं० गाय] दे० 'गाय' । उ०—तब माता ने ____ गांधार भैरव-संज्ञा पुं० [सं० गान्धार भैरव] एक राग का नाम । गाई को दूध दियो तो इत कछूक पियो । दो० सी० बावन०, ' विशेप-यह राग देवगांधार के मेल से बनता है। इसमें सातों भा०२, पृ०४२।। .' स्वर लगते हैं और यह प्रातःकाल गाया जाता है। इसका गा ई-संज्ञा पुं० [सं० ग्राम, हिं० गाँव] दे० 'गाँव'। उ०—सहर सरगम यह है-ध, नि, स, रि, ग, म, प, ध। . - मुलक संब गवई गाँई।-घट, पृ० ३५१। । ..