पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

क्षेत्रपति क्षत्रपति-संबा पुं० [सं०] १. राजा। २.. शिवाजी की. उपाधि। क्षपणी-संशा स्त्री० [सं०] १. जाल । २. पतवार । नाव खेने का क्षत्रवधु-संज्ञा पुं० [सं० क्षत्रबन्धु] १. क्षत्रिय जाति का व्यक्ति (को०)। .. डांडा को]। .. २. पतित, नाम मात्र का या काव्यरहित क्षत्रिय । . क्षपण्यु संवा पुं० [सं०] अपराध किो० । . . क्षत्रयोग-संवा पुं० [सं०] ज्योतिष में एक प्रकार का योग । क्षपांत--संज्ञा पुं० [सं० क्षपान्त] प्रमात । भोर ।.. विशेष-दे० 'राजयोग' । क्षपाध्य-संज्ञा पुं० [सं० क्षपाग्थ्य] रात में न दिखाई पड़ना । रतौंधी क्षत्रविद्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] क्षत्रियों को विद्या । धनुर्विद्या । .::. का रोग [को०] । क्षत्रवृक्ष-संधा पुं० [सं०] मुचुकुद का पेड़ । क्षपा-संक्षा बी. [सं०].१. रात । क्षत्रवृद्ध-संज्ञा पुं० [सं०] तेरहवें मनु के पुत्र का नाम । यौ•-क्षपाकर । क्षपाचर। . क्षत्रवृद्धि संथा पुं० [सं०] दे॰ 'क्षत्रवृद्ध'। ::. . ... विशेष-क्षपा' शब्द के अंत में पति या नाथ बांची शब्द क्षत्रवेद-संज्ञा पुं० [सं०] धनुर्वेद । - जोड़ने से चंद्रमावाची शब्द बनता है । जैसे, क्षपाधिप, क्षपेश, क्षत्रसव--संक्षा पुं० [सं०] वह यज्ञ आदि जो केवल क्षत्रिय ही कर क्षपाकर, आदि । - सकते हों। जैसे, अश्वमेध 1.. . २. हल्दी । हरिद्रा। क्षत्रांतक-संज्ञा पुं॰ [सं० क्षत्रान्तक] परशुराम । क्षपाकर--संज्ञा पुं० [सं०] १. चंद्रमा । २. कपूर । 'क्षत्राणी-संवा स्त्री० [सं० क्षत्रियाणी] १. क्षत्रिय जाति की स्त्री । क्षपाधन-संज्ञा पुं० [सं०] कृष्ण मेघ । काला बादल (को०] । . २. क्षत्रिय की स्त्री । ३. वीर स्त्री [को०] 1 क्षपाचर संज्ञा पुं॰ [सं०] [बी० क्षपाचरी] निशाचर । राक्षस । क्षत्रिनी-संन्चा सौ० [सं०] मजीठ । । क्षपाट-संज्ञा पुं० [सं०] राक्षस । क्षत्रिय-संज्ञा पुं० [सं०] [सी० क्षत्रिया, क्षत्राणी] १. हिंदुओं के चार क्षपानाथ–संबा पुं० [सं०] १. चद्रमा । उ०-महामीचु दासी सदा वर्गों में से दूसरा वणं....... पाइ घोवं । प्रतीहार ह्र के कृपा शूर सोच । क्षपानाथ लीन्हे विशेष-इस वर्ष के लोगों का काम देश का शासन और शौ . रहै छत्र जाको । करंगो कहा शत्रु सुपीव ताको। केशव .' से उसकी रक्षा करना है। मन के अनुसार इस वरणं के लोगों (शब्द०)। २. कपूर । .. का कर्तव्य वेदाध्ययन, प्रजापालन, दान और यज्ञादि करना क्षपापति-संभा पुं० [सं०] चंद्रमा । २. कपूर । तथा विषयवासना से दूर रहना है। वशिष्ठ जी ने इस वरण के क्षपित-वि० [सं०] नष्ट । विध्वस्त । दमित । दवाया हपा को। .. लोगों का मूल्य धर्म अध्ययन, शस्त्राभ्यास और प्रजापालन क्षम-वि० [सं०] शक्त । योग्य । समर्थ। उपयुक्त । बतलाया है। वेद में इस वर्ग के लोगों की सुष्टि प्रजापति की विशेष-हिंदी में यह शब्द केवल समस्त पद या यौगिक शब्द के ... बाह से कही गई है । वेद में जिन क्षत्रिय वंश के नाम हैं, वे अंत में प्राता है । जैसे, अक्षम, सक्षम, कार्यक्षम प्रादि । पराणों में दिए हए अथवा वर्तमान नामों से बिलकुल भिन्न क्षम-संशा पुं०१. शक्ति। बल। २. योग्यता। उपयुक्तता। ३. युद्ध हैं। पुराणों में क्षत्रियों के चंद्र और सूर्य केवल दो ही वंशों (को०४.शिव (को०)। के दाम आए हैं। पीछे से इस वर्ग में अग्नि तथा और कई क्षमणीय-वि० [सं०] क्षमा करने योग्य । माफ करने लायक । .... . वंशों की सृष्टि हुई और शक आदि विदेशी लोग आकर मिल क्षमता-संवा स्त्री॰ [सं०] योग्यता : सामर्थ्य । शक्ति । । गए। अाजकल इस वर्ण के बहुत से अवांतर भेद हो गए हैं। क्षमताशीन-वि० [सं० क्षमता+शील] क्षमता वाला योग इस वर्ष के लोग प्रायः ठाकुर कहलाते हैं। . ... समर्थ । उ०--प्रक्षम क्षमताशील बने जावे दुविधा, भ्रम । . २. इस वरणं का पुरुप । ३. राजा: । ४. बल । शक्ति । --युगांत, पृ० १७ । क्षत्रियका, क्षत्रिया, क्षत्रिपिका-संञ्चा बी० [सं०] क्षत्रिय जाति को क्षमना@---क्रि० स० [हि० क्षमा ] क्षमा करना। माफ करना । स्त्री [को०] .... .. ....। उ०-क्षम अपराध देवकी मेरो लिख्यो न मेट्यो जाई । मैं क्षत्री-संशा पुं० [सं० क्षत्रिन् ] ३. 'क्षत्रिय' ।" अंपराध कियो शिशु मारे कर जोरे बिललाई ।--सूर क्षदन-संश्था पुं० [सं०]: दाँत । (शब्द०)। क्षप-संशा पुं० [सं०] जल । पानी ।... क्षमनीय'-वि० [स० क्षमणीय क्षमणीय । क्षमा करने योग्य-। -क्षपण-संशा पुं० [सं०] १. बौद्ध भिक्षुः । २. अशौच । ३. नष्ट करना। क्षमनीय-वि० [सं० क्षम] बलवान् । शक्तिशाली । -यंत ..... दमन करना । ४. उपवास [को०] 1.: . रिच्छ गच्छनीनि यच्छन सुलग्छनीनि अच्छी अच्छी अच्छनीचि क्षपणक-वि० [सं०] निर्लज्ज । .. . . . . . छवि छमनीय है। केचव (शब्द०)।: . ! क्षपण -संशा पुं०१. नंगा. रहनेवाला जन यतो । दिगंबर बनी। क्षमवानाल-मि० स० [हिं० क्षमना) क्षमता का प्रेरणा '. २. बौद्ध संन्यासी या भिक्षु । ३. एक कवि जो विक्रमादित्य . रूप । क्षमा करना । माफ कराना । उ०, बहरि विधि जाय सनी रनों में से एक माना जाता है। इसने, 'अनेकार्थ- . क्षमवाय के रुद्रको विष्ए. विधि सद्र तह तुरंत ग्राये 1-10 ध्वनिमंजरी' नामक एक कोश बनाया था और उणादि- -(शब्द०)। . . , ..., . शुत्र पर एक वृत्ति लिखी ची। .. क्षमा-संघा सी० [सं.] १. नित्त की एक प्रकार की वृधि जिससे