पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२०८

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गिरवीपत्र १२८५ गिराव गिरवीपत्र-संज्ञा पुं० [हिं० गिरवी+पत्र] दे० 'गिरवीनामा'। गिराव'-संज्ञा पुं० [सं० ग्रेयेय, हि० गरांव ] दे० 'गरांव'। गिरस्ता --संज्ञा पुं० [सं० गृहस्थ] दे॰ 'गृहस्थ'। गिराव-संज्ञा पुं० [.मं० ग्राम ] गाँव । गिरस्ता-संवा स्त्री॰ [वि० गृहस्थ, हि गिरस्त + ई (प्रत्य०.)] . यो०-गाँव गिराय। दे० 'गृहस्थी' । 30--फिर गिरस्ती में लोग लगे--कुछ काल गिरा-संञ्चा स्त्री० [सं०] १. वह शक्ति जिसकी सहायता से मनुष्य के अनंतर उन्हें एक कन्या और हुई।---श्यामा०, पृ० ४७। बातें करता है। बोलने की ताकत । २. जिह्वा । जीभ। गिरह--संज्ञा स्त्री॰ [फा०] १. गाँठ । ग्रंथि । जबान । उ०---पीर थके अरु मीर थके पुनि धीर थके बहु क्रि० प्र०-देना।-बाँधना ।-मारना ।—लगाना । बोलि गिरा तें। सुदर ग्रं॰, भा॰ २, पृ०६६० १ ३. बोल ! २. जेब । कोसा। खरीता। वचन । वाणी। कलाम । ४. सरस्वती देवी। यौ-गिरहकट। यौ०-गिरापति । गिरापितु । ३. दो पोरों के जुड़ने का स्थान । ४. एक गज का सोलहवाँ भाग ५, सरस्वती नदी। ६. भापा । बोली। ७. कविता । शायरी। जो सवा दो इंच के बराबर होता है । ५. कुश्ती का एक पेंच। गिराधव--संज्ञा पुं॰ [सं०] ब्रह्मा [को०] । ६. कलैया । उलटी । उ०-ऊंचो चितं सराहियत गिरह गिराना-क्रि० स० [हिं० गिरना का सक० रूप ] १. कित्तो चीज | कबूतर लेत । दृग झलकित मुलकित बदन तन पुलकित केहि का श्राधार या अवरोध आदि हटायार उसे अपने स्थान पर से हेत ।-विहारी (शब्द०) नीचे डाल देना । पतन करना । जैसे, छत पर से पत्थर क्रि०प्र०-खाना |--भारना।--लगाना ।-लेना। . गिराना, हाथ से छड़ी गिराना, आँख से आंसू गिराना । २. यौ०-गिरहबाज । किसी चीज को खड़ा न रहने देकर जमीन पर डाल देना । मुहा०—गिरह खोलना=गांठ खोलना । मन से मैल दूर करना। जैसे,-खंभा गिराना, मकान गिराना । ३. अवनत करना । मन से बुराई दूर करना। गिरह पड़ना=गाँठ पड़ना । भेद घटाना । ह्रास करना । जैसे,-विलास प्रियता ने ही उस जाति, पैदा होना। उ०--पड़ न पावे गिरह किसी दिल में ।- को गिरा दिया। ४. किसी जलधारा या प्रवाह को किसी ढाल चोखे०, पृ० ३६ । गिरह बांधना या बाँध लेना=गाँठ में की ओर से जाना । जैसे,—नाली गिराना, मौरी गिराना । बाँध लेना । मन में बैठा लेना। उ०—ले गिरह बाँध दिल ५. शगित, प्रतिष्ठा, मूल्य या स्थिति प्रादि में कमी कर देना। गिरह खोलें।-चोखे० पृ० ३६ । जैसे,-(क) बीमारी ने उसे ऐसा गिगया कि वह छह महीने गिरहकट-वि० [फा० गिरह-जेव या गांठ+हिं० काटना ] जेब तक किसी काम का न रहा । (व) व्यापारियों ने माल या गाँठ में बंधा हुआ माल काट लेनेवाला । खरीदना बंद करके बाजार गिरा दिया। ६. जीर्ण या दुर्बल गिरहदार--वि० [फा०] जिसमें गाँठ हो । गाँठवाला । गठीला । करके अथवा इसी प्रकार के किसी उपाय से किसी चीज को गिरहवाज-संवा पुं० [फा० गिरहबाज ] एक जाति का कबूतर उसके स्थान से हटा या निकाल देना । जैसे,--(क) दो । जी उड़ते उड़ते उलटकर कलैया खा जाता है और फिर उड़ते महीने बाद उसने गर्भ गिरा दिया। यह दवा तुम्हारे सब लगता है । इसे लोटन कबूतर भी कहते हैं। दाँत (या वाल ) गिरा देगी। ७. कोई ऐसा रोग उत्पन्न गिरहबाज उड़ी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० गिरहबाज+उड़ी कलैया ] करना जिसके विपय में लोगों का था विश्वास हो कि उसका वह उलटी कलैया जो कसरत करनेवाले कबूतर की तरह, वेग ऊपर से नीचे आता या होता है। जैसे," तुम्हारी यह उलटकर लगाते हैं। • लापरवाही जरूर नजला गिरावेगी। ८. सहसा उपस्थित गिरह --वि० [हिं० गिरना+हर (प्रत्य॰)] जो गिरनेवाला . करना। अचानक सामने ला रखना। जैसे,---यह झमेला हो । जो गिरने के लिये तैयार हो। पतनोन्मुख। . तुमने हमारे सिर ला गिराया। ... गिरहस्त -संज्ञा पुं० [सं० गृहस्थ ] दे० 'गृहस्थ उ०-दृस्ति घोर विशेष-इस अर्थ में इसमें पहले 'लाना' किया लगती है। यो कापर सबहि दीन्ह नौ साजु । * गिरहस्त लखपती ६. युद्ध में प्राण लेना । लड़ाई में मार डालना । जैसे,—उसने । घर घर मानहिं राजु । जायसी गं० (गुप्त), पृ० ३४६ । • पाँच पादमियों को गिराया। गिरानो---संज्ञा स्त्री० [फा०' गरानी] १. मूल्य का अधिक होना। गिरही।एन-संज्ञा पुं० [सं० गृहिन् । जो घरवारवाला हो । गृहस्थ महंगापन । महँगी। २. काल । कहत । ३. कमा । यभाप 3०-बाटे बाटे सब कोइ दुखिया क्या गिरही बैरागीं। . 'टोटा । ४. किसी चीज का विशेषतः पेट का भारीपन। उ०-- शुक्राचार्य दुख ही के कारण गरमै माया त्यागी। कबीर रसनिधि.प्रेम तवीव यह दियो इलाज बताय । छवि अजवाइन । (शब्द०)। ".. चख दुगन विरह गिरानी जाय ।-रसनिधि (शब्द०)। . गिरी----वि० [फा०.गरा] १. जिसका दाम, अधिक हो। महँगा. गिरापति-संसा पं० [सं०] ब्रह्मा । -ईस न गनेश न दिनशन २. भारी । वजनी । हलका का उलटा ३. जो भला न मालूम धनेश न सुरेश सुर गोरि गिरापति नहिं जपने ।--तुलसी हो । अप्रिय। क्रि० प्र०-गुजरना। गिराव--संज्ञा पुं० [अं० ग्रेप] तोप का वह गोला जिसमें छोटी छोटी । --". गिरीया-संक्षा पुं० [सं० वेष, हिं० गराँव ] दे० 'गराव' गोलियाँ या छरें भी रहते हैं।