पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२०९

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गिराव. १२८६ गिरिदुर्ग - गिराव--संशा पुं० [हिं० गिरना याब (प्रत्य?)] गिरने की क्रिया गिरिका-संक्षा सी० [सं०] चुहिया । मुसटी । २. पुरुयंशी वनु राजा. या भाव । पतन । गिरावट ।। की स्त्री जिसकी कथा महाभारत में है।

गिरावट-संवा श्री० [हिं०/ गिर+नावट (प्रत्य॰)] १. ह्रास । गिरिकाण-वि० [सं०] गिरी नामक रोग के कारण जिसकी एक

1. पतन । २. न्यूनता ! कमो.। ३. अवनति अपकर्ष । ४. मान ग्राख नष्ट हो गई हो [को०]. या पद की मर्यादा में दो या बाधा होना । .. . गिरिकानन - तज्ञा पुं० [सं०] पहाड़ के ऊपर लगा हुया बाग को।

गिरावना@--क्रि० स० [हिं०. गिराना] दे॰ गिराना'। गिरिकुहर-संत्रा पुं० [सं०] पहाड़ की खोह या गुफा कोर। "

गिरास-- मंा पुं० [सं० ग्रास ] दे० 'मास'1:' गिरिकट-संञ्चा पुं० [सं०] पहाड़ की चोटी या शिखर [को०] 1 . 'गिरासना --क्रि० स० [हिं० गिरास-+-ना (प्रत्य॰)] ३. 'असना'। गिरिक्षिप संज्ञा पुं० [सं०] अक्रूर के एक भाई का नाम । .. ...... उ०--परी रेणु होइ रविहि गितमा ! मानुप पंख लेहि फिरि गिरिगुड संज्ञा पुं॰ [सं०] गेंद। कंदुक (को०) । बासा !--जायसी (शब्द०)। गिरिगुहा-संज्ञा स्त्री० [सं०] पहाड़ की गुफा। उ०-प्रथमहि देवन्ह - पिरासी-ज्ञा की दिश०] एक प्राचीन जाति। गिरिगुहा राखे रुचिर वनाइ ।---मानस, ४।१२। विशेष -यह जाति गुजरात देश में रहती थी। इस जाति के गिरिचर-वि.सं०] पर्वत पर चलने या रहनेवाला [को०] | लोग बड़े फसादी और डाकू होते थे । गिरिचर--संवा पुं० तस्फर । चोर को। - गिराहो-संवा पुं० [० ग्राह] ग्राह या मगर नामक जलजंतु ! गिरिज' हा पुं० मि.] १. शिलाजीत । २. लोहा। ३. अबरक । -:गिरिक [सं०] १. पर्वत । पहाड़। २. दशनामी संप्रदाय के अनक । ४.गेल । ५.एक प्रकार का पहाड़ी महुवा। एक प्रकार के संन्यासी। गिरिज-त्रि. पहाड़ से उत्पन्न । विशेष- ये अपने नानों के पीछे उपाधि की भाँति 'निरि' शब्द गिरिजा --संज्ञा स्त्री० [सं० नगाधिराज हिमालय की कन्या, लगाते हैं। (जसे-नारायण गिरि, महेश गिरि ग्रादि)। पार्वती । गौरी। इनमें कुछ लोग नव्धारी महंत होते हैं और कुछ जमींदारी तथा अनेक प्रकार के व्यापार करते हैं। इनमें से कुछ लोग यौ० गिरिजायब गिरिजापति महादेव । शंकर । गिरिजा- कुमार, गिरिजातनय, गिरिजानन्दन, गिरिजासुत-(१) वैष्णव हो गए हैं, जो गिरि वैष्णव कहलाते हैं। ये विवाह कार्तिकेय । (२) गणेश। नहीं करते । . गंगा । ३. चकोतरा । ४. पहाड़ी केला । ५. चमेली। ....... ३.. परिव्राजकों की एक उपाधि। ४. तांत्रिक संन्यासियों का एक गिरिजा-संज्ञा पुं० [हिं० गिरजा] दे० 'गिरजा'। . . . भेद । ५. पारे का एक दोप जिसका शोधन यदि न किया गिरजागृह-संज्ञा पुं० [सं०] पार्वतीमंदिर । उ०---सर समीप '.. जाय, तो खानेवाले का शरीर जड़ हो जाता है। इ. अाँख का एक रोग जिसमें डेंढर या टेटर निकल पाता है और आँख गिरजागृह सोहा ।-मानस, १॥ २८ ॥ .. .फानी हो जाती है । ७. गेंद कि०।। ८. मेघ । बादल [को० ।। गिरिजाघर--संज्ञा पुं० [हिं० गिरजाघर] दे० 'गिरजाघर'। . ६.पाठ की संख्या को०)। १०. शिला । चट्टान को। गिरिजामल-संशा पं० [सं०] अभ्रक । गिरि-संज्ञा स्त्री सिं० गिरि]१. निगलने की क्रिया । २. चुहिया । गिरिजारमन--पंक्षा पुं० [सं०गिरिजारमण] शंकर । महादेव । .. मूषिका [को०].. शिव । 30-चरित सिंधु गिरिजारमन वेद न पाहि पार । ...गिरिकंटक-संज्ञा पुं० [सं० गिरिकण्टक] वच्च । ---मानस, १।१०३। गिरिकंदर-संचा पुं० [सं० गिरिक दर पहाड़ की गुफा [को०)। गिरिजाल-संशा पुं० [सं०] पर्वत का विस्तार या पर्वतबगी (फो०। गिरिक--संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव । महादेव । २. वह जो पर्वत से गिरिजाबीज-मंश पुं० [सं०] गंधक । उत्पन्न हो । ३. गेंद (को० । गिरिज्वर-संचा पुं० [सं०] वन । गिरिकच्छप--संध्या पुं० [सं०.] पहाड़ की गुफा में रहनेवाला । गिरित--वि० [सं०] १..बाया हुआ । भक्षित । २. निगला '- कछुपा (को०] 1 . हुमा [को०] । गिरिकदंब, गिरिकदंबक--संज्ञा पुं०सं० गिरीकदम्ब, गिरिकदम्बक] गिरित्र-मंडा पुं० [सं०] १. महादेव । शिव । २. समद्र। । एक प्रकार का कदंद [को० । । विशेष--जब इंद्र ने पर्वतों के पर काटे थे, तब मैनाक पर्वत . गिरिकदली-संशा सी० [म पहाड़ी केला [को०] । समुद्र में जा छिपा था। इसी से समुद्र का यह नाम पड़ा। . गिरिकरिणकासंवा स्त्री० [सं०1१. अपराजिता लता । २.चिचिडा। गिरिदॉन -संशा पुं० [फा गर्दन दे० 'गरदान . अपामार्ग । ३.पृथ्वी फिो। कंधान छोट गिरिदान लंब भुग। पृ० रा०,८५५। - गिरिकणी--संशा थी ०1१. अपराजिता वा कोयल नाम की गिरिदुर्ग-संशा पुं० [सं०] पहाड़ पर बना हा किता। • 'लता। २. जवासा। विशेष-मनु ने इस प्रकार का दुर्ग बड़ा उपयोगी बतलाया है।