पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२१०

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गिरिदुहिता १२८७ गिरी' गिरिदुहिता-संज्ञा स्त्री॰ [म० गिरिदुहित] पार्वती [को०] । गिरिमान-संज्ञा पुं० [सं०] हाथी । विशालकाय एवं शक्तिशाली गिरिह-अव्य० [फा० गिर्द] दे० 'गिर्द'। उ०—गिरिद्द डोरि हाथी [को०] । रेशमं सुपंच रंगयं भ्रमं ।--पृ० रा०, १७१५२ । गिरिमृत संज्ञा बी० [सं०] गेरू । गिरिद्वार--संज्ञा पुं० [सं०] दर्रा [को०] । गिरिमद्भव-संज्ञा पुं० [सं०] गेरू (को०)। ..... ..' गिरिधर-संशा सं० [सं०] श्रीकृष्ण । गिरियक, गिरियाक--संज्ञा पुं० [सं०] गेंद [को॰] । ' . . . गिरिधरन -संज्ञा पुं० [सं० गिरिधरण] श्रीकृष्ण । गिरिराज-संशा पुं० [सं०] १. बड़ा पर्वत । २. हिमालयः। ३. गिरिधातु संज्ञा पुं० [सं०] गेरू। गोवर्द्धन पर्वत । ४. मेरु। . . गिरिधारन -संज्ञा पुं० [सं० गिरिधारण] श्रीकृष्ण । गिरिवर--संज्ञा पुं० [सं०] गिरिराज। उ०--मूक होइ वाचाल पंगु गिरिधारी--संज्ञा सं० [सं० गिरिघारिन्] श्रीकृष्ण । चढ़ गिरिवर गहन । —मानस, १।१ . गिरिध्वज-संशा पुं० [सं०] इंद्र । गिरिवरधर--संज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण । गिरिनंदिनी संज्ञा स्त्री० [सं० गिरिनन्दिनी] १. पार्वती। २.गंगा। ' गिरिवतिका--संवा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की पहाड़ी हंसिनी । . ३. नदी। बतख (को०] . गिरिनगर--संशा पुं० [सं०] १. गिरनार पर्वत पर बसा हुआ नगर गिरिवर्य मंगा पुं० [सं०] गिरिवर । हिमालय । उ०—दिए तुमने जो जैनियों का एक पवित्र तीर्थ है। २. पुराण के अनुसार रैवतक पर्वत (को०] । भारत को दिव्य न जाने कितने नए विचार । तुम्हारे गों से गिरिवर्य । विविध धर्मों का हुआ प्रचार ।--सागरिका, गिरिनदी-संज्ञा स्त्री० [सं०] पहाड़ी नदी (को। पृ०७॥ गिरिनाइक-संक्षा पुं० [सं० गिरि+नायक ] गिरिराज । गोवर्धन , गिरिव्रज-संज्ञा पुं० [सं०] १.केकय देश की राजधानी। २.जरासंध. पर्वत। उ-तिन करि सेवित सव सुखदाइक । धन्य धन्य गोधन गिरिनाइक ।-नंद ग्रं०, पृ० २९७ ।। को राजधानी, जिसे पीछे राजगृह कहते थे । . गिरिनाथ- संशा पुं० [सं०] महादेव । शिव । उ०- कछु दिन तहाँ गिरिश-संशा पुं० [सं०] महादेव । शिव [को०।- गिरिशाल-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का बाज पक्षी।. .. रहे गिरिनाथा ।--तुलसी (शब्द॰) । गिरिशालिनी--संज्ञा श्री० [सं० अपराजिता लता। .. .. गिरिनिंब-संज्ञा पुं० [सं० गिरिनिम्ब] वकायन । गिरिशिखर-संज्ञा पुं० [सं०] पहाड़ की चोटी । गिरिकूट को!.. गिरिपथ-संधा पुं० [सं०] दो पहाड़ों के बीच का संकीर्ण मार्ग । गिरिशंग-संवा पुं० [सं० गिरिशृङ्ग] १. पहाड़ की चोटा । २.: दर्रा [को०] । गणेश (को०]। . गिरिपीलु-संज्ञा पुं० [सं०] फालसा । गिरिसंभव'--संक्षा पुं० [सं० गिरिसम्भव ] एक प्रकार का पहाड़ी . गिरिपुष्पक-संज्ञा पुं० [सं०] १. पथरफोड़ नाम का पौधा । २. चाकोर चूहा (को०)। . . .. . . शिलाजीत (को०)। गिरिसंभव-वि० पहाड़ या पर्वत से उत्पन्न । उ०-सुनत बचन गिरिप्रस्थ-संज्ञा पुं० [सं०] पहाड़ के ऊपर का चौरस मैदान । बिहसे रिषय गिरिसंभव तव देह । नारद का उपदेसु, मुनि पठार को। कहहु बसेउ किसु गेह । -मानस, ११७८ । । गिरिप्रिया-संवा ली० [सं०] सुरा गाय । गिरिसानु-संज्ञा पुं० [सं०] पठार । अधित्यका [को०] ।... गिरिफदार-वि० फा० गिरफ्तार] दे० 'गिरफ्तार' । उ०-अजी गिरिसार-संज्ञा पुं० [सं०] १. लोहा । २. शिलाजीत । ३, रांगा। करना है उसको गिरिफदार ।--मैला०, पृ० २६६ । ४. मलय पर्वती।। .. गिरिबरधर-संक्षा पुं० [हिं० गिरिवरघर] दे० 'गिरिवरधर' । गिरिसत-संशा [सं०] मैनाक पर्वत । " .. उ.- गोपीनाथ गोविंद गोपसुत गुनी गीतप्रिय गिरिवरधर गिरिसूता-संज्ञा पुं० [सं०] पार्वती। रसाल के !---घनानंद, पृ० ३६५ । गिरिस्ती--संज्ञा स्त्री॰ [सं० गृहस्य, हि० गिरिस्न+ई (प्रत्य॰)] . गिरिबांधव-संज्ञा पुं० [सं० गिरिवान्धव महादेव । शिव कोणा दे० 'गृहस्थी '। . ... गिरिवूटी--संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की वनस्पति जो औषध के गिरिस्रवा---संधा श्री० [सं०] पहाड़ी नदी (को०)। काम में आती है । संगबूटी। अगूरशेफा । वि०दे अंगूरशेफा'। गिरिही--संधा पुं० [सं० गृही] दे० 'गृही' । उ०-- होइ गिरिता गिरिभव-वि० [सं०] पर्वत से उत्पन्न । गिरिजात । उ०-सत्य पुनि होइ उदासी। अंतकाल दुनह बिसवासी।नजायसी - कहेहु गिरिभव तनु एहा। हठ न छूट छूट बरु देहा । - ग्रं० (गुप्त), पृ० ३३१। . .. ... . मानस १६० । गिरींद्र-संज्ञा पुं० [सं० गिरीन्द्र] १. बड़ा पर्वत । २. हिमालय । । गिरिभिद्-संज्ञा पुं॰ [सं०] पखानभेद। ३. शिव । ४. पाठ की संख्या [को०)। " गिरिमल्लिका-संधली [सं०] कुटज । कुरैया। गिरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० गरी ] १. वह गुदा जो बीज को तोड़ने पर