पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२११

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गिरीयक १२८९ गिलण

  • उसके अंदर से निकलता है। जैसे-वादाम, अखरोट या गिल'-संश्चा श्री० [फा०] १. मिट्टी । ३. गारा।

- खरबूजे आदि की गिरी । २.० 'गिरि' । ३.२. 'गरी'। यो०-कहगिल । गिलकारी। -: गिरीयक--संज्ञा पुं॰ [सं०] गेंद । कंदुक [को०। गिल-संज्ञा पुं० [सं०] १. मगर । घड़ियाल । २. जंबीरी नीबू । गिरीश-संज्ञा पुं० [सं०] १. महादेव । शिव । २. हिमालय पर्वत। गिल-वि० भक्षण करनेवाला । निगलनेवाला । ३. सुमेरु पर्वत । ४. कैलाश पर्वत । ५. गोवर्धन पर्वत । ६. गिलकना -क्रि० स० [सं० गिल] भक्षण करना । निगलना । ... ..कोई बड़ा. पहाड़। ७. बृहस्पति (को०)। उ-गिलकी सत कंतरि, कृष्ण उरंधरि, साज सर्व करि -,' गिरेबान--संका पुं० [फा० गरेवान] गले में पहनने के कपड़े का वह जुझारं। पृ० रा०, ९।११। . . : भाग जो गरदन के चारों ओर रहता है। गिलकार-संज्ञा स्त्री० [फा०] गारा या पलस्तर करने वाला व्यक्ति। . गिरेवा-संशा पुं० [सं० गिरि प्रयवा सं० ग्रावन, ग्रावा] १. छोटी राज। -:"..... पहाड़ी। टोला । २. चढ़ाई का रास्ता। . गिलकारी--संचा खी० [फा०] गारा लगाने या पलस्तर करने का काम। ... गिरेश--संका- पुं० [सं० गिरा+ईश] १. ब्रह्मा । २. विष्णु । गिलकिया--संज्ञा स्त्री० [देश॰] नेनुवां या घियातोरी नामकी तरकारी। गिरयां -संज्ञा श्री० [हिं० गेरांव का अल्पा० ] छोटा या पतला - गेरांच । उ०--तिय जानि गिरयाँ गहो बनमाल सो ऐंच गिलगिल'–संञ्चा पुं० [सं०] नाक नामक जलजंतु । नक। गिलगिल -संज्ञा स्त्री० [हिं० गिलगिलिया] दे० 'गिलगिलिया। लेला इँच्यो आवत है।--पद्माकर (शब्द०)।। उ०—पल भपनहार पच्छी अपार । गिलगिल विहार करि - गिरैया-वि० [हिं॰ गिरना] गिरनेवाला । पतनोन्मुख। जो गिरने डार डार!-सुजान०, पृ०२२। गिलगिलिया-संमा सी० [अनु॰] सिरोही नाम की चिड़िया । गरया-वि० [हिं० गिरना+ऐया (प्रत्य०] गिरनेवाला । विशेष-यह आपस में बहुत लड़ती है। इसे कहीं कहीं किलहटी .: गिरों-वि० [हिं० गिरो] दे० 'गिरों। और मना भी कहते हैं। - गिरो- विफा०गिरौ] रेहन । बंधक । गिरवी। गिलगिली-संथा पुं० [देश॰] १. घोड़े की एक जाति । २. गुदगुदी। - क्रि० प्र०—करना ।-घरना।—रखना। ३. मंद सुरसुराहट या खुजली जो किसी अंग के हल्के हल्के - यो०-गिरो गाठा=रेहन । स्पर्श से होती है। गिरोह-संम पुं० [फा० गिरोह या गुरोह] समूह। समुदाय । जमात। गिलग्राह--संज्ञा पुं० [सं०] नक । गिलगिल [को०] । जनसमूह । दल । गोल [को०] । गिलजई-संवा मी० [देश॰] अफगानिस्तान में रहनेवाली एक जाति । . गिरोही-संज्ञा पुं० [हिं० गिरोह+ई (प्रत्य)] समूह का प्रादमी। विशेप--इस जाति के लोग अच्छे शूर वीर होते हैं। -...जमातं का आ दमी । संगी। साथी (को०] । गिलट-संज्ञा पुं० [अं० गिल्ड-सोना चढ़ाना] १. सोना चढ़ाने का - गिगिट. . संबा पुं० हिं० गिरगिट] दे० 'गिरगिट' । काम । २. एक प्रकार की बहुत हलकी और कम मूल्य की गिर्जा--संश पुं० [हिं०] दे० 'गिरजा' । (प्रार्थनामंदिर) धातु, जिसका रंग सफेद और चमकीला होता है और जिससे जेवर और वरतन बनते हैं। गिर्जाघर---संज्ञा पुं० हिं० गिरजा+घर] दे० 'गिर्जा'। गिलटी'--संज्ञा स्त्री० [सं० ग्रन्यि] १. चेप की गोल छोटी गाँठ।। , गिर्द-अन्य० [फा०] आसपास । चारों ओर । उ०-माया लता रह विशेप--यह शरीर के अंदर संधिस्थान में होती है । कुहनी, . दुर्म गिर्द है विविध रचा फुलवारी।-सं० दरिया, पृ० १३४ । - बगल, गरदन और घुटने में तथा पेडू और रान के बीच में यो०-इर्द गिर्द । ... एक से अधिक गाँठे होती हैं। मुहा०-गिर्द होना=पास होना । पहुचना । उ०—पादमी की २. एक प्रकार का रोग। ग्रावाज कान में आई और हम लठ ले के गिर्द हुए। सैर .विशेप-इसमें या तो संधिस्थान की इन्हीं गांठों में से कोई एक क०, भा०१, पृ० १४।। गांठ सूज या फूल जाती है अथवा शरीर के किसी अन्य भाग गिर्दीव-संज्ञा पुं॰ [फा०] भंवर । में कोई गाँठ उत्पन्न हो जाती है। भावप्रकाश के अनुसार गिविर-संश्च पुं० [फा०] १. घूमनेवाला । दौरा करने वाला। २.. इनकी उत्पत्ति का कारण मांस, रक्त या मेदादि को दूषित . वूम घूमकर काम की जांच करनेवाला । • हो जाना है। गिलटी में प्रायः बहुत पीड़ा होती है, और कभी यौ०--गिर्दावर कानूनगो-कलक्टरी मुहकमे का वह छोटा कभी उसके चीरने तक की नौबत आ जाती है । यदि निकलने ... अफसर जो गांवों में घूम घूमकर पटवारियों या लेखपालों के के साथ ही गिलटी को सेंक दिया जाय, तो वह दव भी कागजों की जाँच करता है। जाती है। गिलंका-संशोदेश.] परिहास । मजाक । दिल्लगी। . क्रि० प्र०-उभरना ।-निकलना।- बैठना। - गिलंदाजो-संवा श्री. [फा० गिलपंदाजी] १. सड़क बांध आदि पर गिलटो' --संचा बी० [देश॰] कहकर मुकरना या पलटना। . मिट्टी डालना । २. पुश्ताबंदी। - गिलण'-वि० [हिं० गिलना ] निगलनेवाला।