पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२१३

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लास १२९० गिलास-संवा पुं० [अं० ग्लास] १. एक गोल लंबा पीने का वरतन । मुहा०—गिल्लियाँ गढ़ना = वितंडावाद करना । व्यर्थ वकवाद .पानयात्र। करना । . . - विशेष—यह पेंदी को और कम और मुह की और कुछ अधिक गिवल-संचा पुं०० ग्रीवा] ग रदन । गला । उ०-चूरहिं गिव - चौड़ा होता है और इसमें पानी दुध आदि तरल पदार्थ पीते हैं। अभरन प्रो हारू । अव काकहें हम करव सिंगारू ।-जायसी २. पालुबालू या अोलची नाम का पेड़ ! .. ग्रं० (गुप्त), पृ० २१० । - विशेप-इसका फल बहुत मुलायम और स्वादिष्ट होता है। यह गिवार-वि० [हिं० गॅवार] दे० 'गॅवार'। उ०~~-जरा नारा

सावन में केवल १५-२० दिन तक फलता है। यह कश्मीर का सुरा नार, जूज जीत लीधजार । धपे न कोता बुधार है गिवार

- फल है जिसे अंग्रेजी में चेरी कहते हैं। वि० दे० 'पाल वालू'। है गिवार !-रघु रू०, पृ० १६६ । । गिलित-वि० [सं०] निगला हया । भक्षित को गिष्ण-संज्ञा पुं० [सं०] १. सामवेद का गानेवाला । यज्ञों में सामवेद गिलिम- संचासी० [हिं० गिलम ] दे० 'गिलम'। उ०-~-गिलिम के मंत्र को स विधि गानेवाला मनुष्य । २. गया। गायक ।

गलीचे दूध फेन की लजाए हैं 1--रधराज (शब्द०)।

गिली-संथा. स्त्री० [हिं०] दे० 'गुल्ली' 1 उ०-खेलत हो लाल संग गीजना-क्रि० स० [हिं० मींजना] १. किसी कोमल पदार्थ, - गयो उहि दांव ल के भारी बैंच गिली देखि मंदिर में श्याम विशेषतः कपड़े, फूल आदि को इस तरह दबाना या मलना हैं।-प्रिया० (शब्द०)। जिसमें वह खराव हो जाय । उ०- गोंजी फूल माल सी लसत गिलेफ-संज्ञा पुं० [हिं० गिलाफ] दे० 'गिलाफ।। सेज परी हाय ऐसी सुकुमारी ऐसे मीजि मारियतु है। रघुनाथ

गिलोंणा,गिलोंना-क्रि० सं० [हिं० गीला नीला करना। (पाब्द०)। २ खाने के पदार्थ को भद्दे ढंग से एक दूसरे में

.. गिलोणा), गिलोंना-क्रि० स० [हिं० घालना] १. मिश्रित करना। मिलाना । सानना। मिलाना । २. गूधना । सानना। गीद-संचा ली० [सं० गिन्दुक, हिं० गेंद] दे० 'गेंद १' । उ.-

गिलोइ

.. -संवा स्त्री० [हिं० गिलोय दे० 'गिलोय'। उ०—अमर अपरणी भारी गीद चलाँऊ ।-कवीर ०, पृ० १७७। का .. स्वर्ग पवि तरुन तरु, अमर जुनास गिलोइ। अमर देव के देव गी-संज्ञा धी० [सं०] १. वाणी । बोलने की शक्ति । २. सरस्वती देवी। हरि, प्रभु सम अमर न कोइ ।-नंद० ग्रं०, पृ०७०। गउ:-संज्ञा पुं० [सं० ग्रीवा] गरदन । उ०—दौरघ नैन तोख - गिलोड़ी-संशा स्त्री० [हिं० घिलोड़ी] १. घी, गुड़ और ग्राटें से ' तह देखा। दौरय गीउ कंठी निति रेखा ।—जायसी, ___ बनाई जानेवाली मोटी रोटी। २. धी रखने का धातुपात्र । गिलोय-संका सी० [फा०] गुरुच । गुड़ ची। उ०- नीव की छाल गीजल-संज्ञा पुं॰ [डि.] अाँख का मैल । कीचड़ । उ०-यौखि मैं

.. चिरायता, प्रान फेर गिलोय ।-इंद्रा०, पृ० १५१ ।

गीज र नाक में सेडौ।-सुंदर ग्रं, भा॰ २, पृ० ४३६ । । गिलोला श्री० [हिं० गुलेल ] दे॰ 'गुलेल । गीजड़ - संज्ञा पुं० [डि.] अाँख का मैल । कीचड़। गिलोला--संज्ञा पुं० [फा० गुलेला] मिट्टी का बना हुना छोटा गोला गीठम-संवा पुं० [देश॰] एक प्रकार का घटिया सादा कालीन या -: . जो गुलेल से फेंका. जाता है। उ०- तेरी कंठसिरी के नवल गलीचा।

मुकता फल न तिनके गिलोला काम करतु बनाय के ।- गीड़ा-संशा पुं० [सं० किट्ट अथवा हिं० कोट-मल] पाँव का कीचड़

गुमान (शब्द०)। या मल! गिलौंदाई-संया पुं० [हिं० गुलंदा ] दे० 'गुलंदा' । गीडर- संचा पुं० [हिं० कोट ?] कीचड़ [फो०] । गिलोरी---संज्ञा स्त्री० दिश०] एक या कई पानों का बीड़ा जो गीणना - क्रि० स० [हिं० गिनना] १० 'गिनना'। उ०--मइला ...: साधारण बीड़े से कुछ भिन्न और तिकोना, चौकोना तथा राजा धारउ फीसउ हो वेसास, तो हूँ दासी करि गीणी।-- कई अाकार का होता है। बी० रासो, पृ० ३७ । --क्रि०प्र०-बनाना। गीत-संबापुं० [सं०] वह वाक्य, पद या छंद जो गाया जाता हो। यो०- गिलौरोदान। . गाने की चीज । गाना। - गिलौरीदान-संथा पुं० [हिं० गिलौरी+दान ] पान रखने का विशेष-संगीत शास्त्र के अनुसार जो वाक्य धातु और मायायुक्त - डिब्बा । पानदान । पनडव्या । - हो वही नीत कहलाता है। गीत दो प्रकार का होता है- - गिल्टी-संवा पौ. [ हि गिलटी] दे० 'गिलटी'। वैदिक और लौकिक । वैदिक नी३ को साम कहते हैं। - गल्यान-संञ्चा मी० [सं० ग्लानि] दे० 'ग्लानि' । उ०-ताक्रे मन (दे० 'साम' ) सारा सामवेद ऐने ही गीतों से भरा हया . . उपजी गिल्यान । मैं फोन्ही बहु जिय की हान । -सूर है। लौकिक गीत भी दो भागों में विभक्त हैं -- मार्ग और देशी। शुद्ध राग और रागिनियां मार्ग के अंतर्गत हैं और . गिल्ला संज्ञा पुं॰ [हिं॰ गिला] दे० 'मिला। प्राजकल के चलते गाने (दादरा, टप्पा, गजल. तुमरी, मादि) गिल्ली- सी० [हिल गुन्ली] ३० 'गुन्नी'। . देशी कहलाते हैं। गीत के दो भेद ग्नौर है-यंत्र और गात् । fr मा