पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२२४

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गुरग १३०१ - गुणराशि - यौल-गुणगाथा । उ.--प्रानपियारे को गुनगाथा साधु कहाँ तक गणगोरी . संथा सी० [सं०] १. गौरी के समान गुणवाली कोई . मैं गाऊँ।-श्रीधर (शब्द०)। सौभाग्यवती स्त्री। पतिव्रता स्त्री। सोहा गिन ,स्त्री । २. . मुहा०-गुरा गाना-प्रशंसा करना 'तारीफ करना। गुरण : . स्त्रियों का एक व्रत । 30-धीस गुणगोरि के 'सु गिरिजा.. मानना एहसान मानना । निहोरा मानना । कृतज्ञ होना। गोसाइन को प्रावत यहाँ को अति आनंद इतैः रहै ।- : ६. विशेषता । स्वभाव । लक्षण । खासियत । प्रवृत्ति । जैरो,-- पद्माकर (शब्द०)। . . ... ..... . अपने इन्हीं गुणों से तो तुम मार खाते हो । ७. तीन की विशेष--यह चैत में चौथ के दिन किया जाता है। सौभाग्यवती संख्या। ८. राजनीति में परराष्ट्र के साथ व्यवहार के छहढंग स्त्रियाँ इस दिन व्रत करती हैं। संधि, विग्रह, यान, आसन, दूध और आश्रय । ६. प्रकृति गुणग्रहण--संज्ञा पुं० सं०] (किसी का) गुण या. महत्त्व समझना। (छांदोग्य)। १०. व्याकरण में ', 'ए' और 'यो' को गुण गुण का आदर करना । कहते हैं । ११. रस्सी या तागा । डोरा । सूत । १२. धनुप गुणग्राम -संज्ञा पुं० सं०] गुणों का समूह । की प्रत्यंचा । १३ बह रस्सी जिससे मल्लाह नाव खींचते हैं। गणग्राम-वि० गुणकर । गुणनिधान । . ....... (का०) । १५. स्नायु (का)। १५. गुराग्राहक'-संवा पुं० [सं०] गुण की खोज करनेवाला मनुष्य । ज्ञानेंद्रिय का विषय (को०)। १७. बत्ती (को०)। १८. पाचक गुणियों का प्रादर करनेवाला मनुष्य । कदरदान । (को०)। १६. सूद (को०) । २०. भीम (को०) । २१. परित्याग गुणग्राहक-वि० गुण की खोज करनेवाला । गुणियों का प्रादर . (को०)। २२. विभाग (को०) । २३. काव्य को सौंदर्य प्रदान ... करनेवाला । करनेवाला तत्व, (प्रोज, प्रसाद, माधुर्य) (को०) 1 गुणग्राही–वि० [सं० गुणग्राहिन्] [वि० ची० गुणग्नाहिनी] गुण की : गुण-प्रत्य० एक प्रत्यय जो संख्यावाचक शब्दों के आगे लगता है की खोज करनेवाला। गणियों का प्रादर करनेवाला। - और उतनी ही बार किसी विशेष संख्या, मात्रा या परिमाण गणघाती-वि० [सं० गणघातिन] पी। ईलि [को। .. को सूचित करता है । जैसे, द्विगुण, चतुगुण ।' गुणज्ञ वि० [सं०] १. गुण का जाननेवाला । गुण को पहचानने- गुणक--संज्ञा पुं० [सं०] १. वह अंक जिससे किसी अंक को गुणा करें। वाला । गुण का पारखी २. गुणी । . २. माली (को०)। गुरगज्ञता -संज्ञा स्त्री० [सं०] गुण की जानकारी । गुण की परख । ... गुणकथन--संज्ञा पुं० [मं०] १. गुणगान । प्रशंसा । २. नाटक में गुण की पहिचान । नायिका की एक दशाविशेष (को०)। गुणतंत्र-संज्ञा पुं० [सं० गुणतन्त्र] गुणों के आधार पर विचार " गुणकर-वि० [सं०] फायदेमंद । लाभदायका को . ... . .. ... .. गुरगकरी-संहा सी० [सं०] एक रागिनी। गुणत्रय, गुणत्रितयसंज्ञा पुं० [सं०] प्रकृति के तीन गुण--सत्व, .:: विशेष-यह किसी के मत से भैरव राग की और किसी के मन रज और तम [को०] । से हिडोरन राग की भाी मानी जाती है। इनमत के मत से गुणधर्म-संसा सं० [सं०] गुण विशेप की प्राप्ति के लिये धर्म या इसका स्वरग्राम इस प्रकार है-पनि सा रा म पनि । कर्तव्य [को०] । . . . ... अथवा-सा गमप नि सा । इसके गाने का समय संवरे गुणन--संज्ञा पुं० [सं०] [वि. गुण्य, गुरणनीय, गुरिगत. गुणा। से ५ दंड तक है। जरब । .. . ......... . गुणकर्म-संशा पुं० [सं० गुणकर्मन] दे० 'कर्म'। . . गुणनफल-संज्ञा पुं० [सं०] वह अंक या संख्या जो एक अंक को गुणकली- संज्ञा स्त्री० [सं०] एक रागिनी । दे० 'गुणकारी' । उ०- . दूसरे अंक के साथ गुणा करने से आवे। - सखि गावती अहलादिनी अहलादिनी वर रागिनी । गुणकली गुरगना -क्रि० स० [सं० गुणन] जरव देना । गुणन करना। रामकली भली सुरकली सरस सुहागिनी। रघुराज (शब्द०)। र गुणनिका--संघा सी० [सं०] नाटक में वह. अनुष्ठान जो नट लोगः . . गुणकार--संघा पुं० [सं०] १. संगीत विद्या का पूर्ण ज्ञाता। २. अभिनय प्रारंभ करने से पहले ग्रहों की शांति के लिये .. पाकफर्ता । रसोइया। बावर्ची । पाचक । ३. पावाशास्त्र का करते हैं । पूर्वरंग । ज्ञाता । ४. भीमसेन ( पांडव )। . गुणनिधान--वि [सं०] गुरागार । गुरपी को। गुणकारक-वि० [सं०] फायदा करनेवाला । लाभदायक। . गुणनिधि-वि० [सं०] गुणागारं । गुणी (को०] ।. .. गुणकारी-वि० [सं० गुणकारिन् ] [ वि० सी० गुणकारिणी] गुरणनीय-वि० [सं०] गुणा करने योग्य । .. .. . .. लाभदायक ! फायदेमंद गुणभोक्ता--संज्ञा पुं० [मं० गुणमोक्त पदार्थों से गुणों को समझन- विशेष-औपध के लिये अधिक आता है। वाला (को०] । गुणराग--संघा पुं० [सं०] दूसरों के गुणों पर मानंदित होने गुणकीर्तन- संा पुं० [सं०] गुणगान । प्रशंसा [को०] । वाला [को०)। ..... .. .... ... गुणगाथा-संज्ञा सी० [सं०] प्रशंसा । वड़ाई। : . गुणराशि-वि० [सं०] गुणनिधि । गुणसमूह (को०)!: .... गणगान-संज्ञा पुं० [सं०] गणेवर्णन । प्रशंसाकथन (फो। गएराशि-संज्ञा पुं० शिव को