पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२२६

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गुणानुवाद १३०३ गुड़िया गुणानुवाद-संज्ञा पुं० [सं०] गुणकथन । प्रशंसा । तारीफ । बढ़ाई। दूसरी वस्तु में सुई तागे ग्रादि के सहारे टॅकना । गोया जाना। गणान्वित-वि० [सं०] गुणों से युक्त (फो। जैसे,-मूल में मोती गुये हुए थे। ३. मद्दी सिलाई होना। गुणालय-वि० [सं०] गुणों का भंडार । अनेक गुणों से संपन्न (फो०] टाँका लगना । टाँक या सिलाई द्वारा दो वस्तुओं का जुड़ना। गुरिणका--संघा स्त्री० [सं०] १. गिल्टी 1 २. सूजन को। ४. एक का दूसरे के साथ लड़ने के लिये लिपट जाना!... मुरिणत-वि० [सं०] १. गुणा किया हुआ। २. एकत्र । संग्रहीत संयो.फि०-जाना-पड़ना । (को०) । ३. जिसकी गणना की गई हो (को०)। गथवाना-कि० स० [हिं० गुथना का 40] गुयने का काम गुणी--वि० [सं० गुणिन्] गुणवाला। जिसमें कोई गुण हो। जो करवाना। किसी कला या विद्या में निपुण हो । गुथुवा-वि० [हिं० गुथना जो गूथकर बनाया गया हो। गुणी-संज्ञा पुं० निपुण मनुष्य । कलाकुशल पुरुप । हुनरमंद गुद-संगमी० [सं०] गाँट । मलद्वार । आदमी। २. झाड़ फूक करनेवाला । उ०-श्याम भुजंग गदकार, गदकारा-वि० [हि मुदा या गुदार.] १. गूदेदार। इस्यो हम देखत ल्यावहु गुणी वोलाई। रोवन जननि कंठ जिस में गुदा हो। २.गुदगुदा। मोटा। उ०-चाय कपोज लपटानी सूर श्याम गुनराई।-सूर (शब्द०)। गोल गुदकारे मनुदर सो ठोड़ी। परति धारक होड़ाहोड़ी. : गुणीभूत-वि० [सं०] १. मुख्यार्थ से रहित। २. गोण बनाया सबकी टीहि निगोड़ी।-सूदन (शब्द०)। ... हुआ । [को०11 मुदकील, गुदकील --संप पु० [म० अर्श रोग। बवासीर । गुणीभूत व्यंग्य-संज्ञा पुं० [सं० गुणीभूत व्यङ्ग्य] काव्य में यह । गुदगर --वि० [हिं० गूदा+गर= (प्रत्य०). 'गुदगुदा। व्यंग्य जो प्रधान न हो, वरन् वाच्यार्थ के साथ गौण रूप से गुदगुदा-वि० [हिं० गूदा] १. गूदेदार) मांसत । मांस से भरा . पाया हो। हुमा । २. गुदगुदा। जिसकी सतह दबाने से दब जाय । गुणेश्वर-संज्ञा पुं० [सं०] १. तीनों गुणों पर प्रभुत्व रखनेवाला मुलायम । ईश्वर । २. चित्रकूट पर्वत । गुदगुदाना-कि०म० [हिं० गुदगुवा] १. कांब, तनवे, पेट प्रादि । गुणोपेत-वि० [सं०] १. गुणी । गुणयुक्त । जिसमें गुण हो। २. मांसल स्थानों पर उगली प्रादि फेरना जिससे सुरसुराहट या किसी कला में निपुण । मीठी सुजलो मालूम हो और आदमी हेराने और उछलने कूदने .. गुरुय-संया पुं० [सं०] वह अंक जिसको गुणा करना हो। लगे। किसी को हँसाने या छेड़ने के लिये उसके तलवं, . गुण्य-वि० १. गुणा करने योग्य । २. गुणी । ३. वर्णनीय (को॰] । कायमादि को महराना । २. मन बहलान चा विनोद के. गुण्यांक-संशा पुं० [सं० गुण्याव] वह अंक जो गुणा किया जाय । लिये छड़ना। गुतेला-संज्ञा पुं॰ [देशा०] एक प्रकार की मछली जिो बंगू भो मुहा०---गुदगुदाना वहीं तक जहां तक हँसी नावे उतनी ही कहते हैं। हँसी दिल्लगी करना जितनी अच्छी लगे। गुत्ता ---संथा पुं० [देश॰] १. लगान पर खेत देने का व्यवहार । ३. चित्त को चलायमान करना । उमगाना। उलंठा उत्पन्न : २. लगान । करना। गस्थ--संझ ० [हिं० गुथना] १. हुक्के के नैचों की वह बुनावट जो गदगदाहट-संघा स्री० [हिं० गुदगुदाना+पाहट (प्रस) : चटाई की बुनावट के ढंग की होती है। २. इसी चुनावट का 'गुदगुदी'। नैचा। गुदगुदी-संशा यी [हि० गुदगुराना] १. वह सुरसुराहट या मोठी । गुत्थमगुत्था-संशा पुं० [हिं० गुथना] १. उलझाव । फंसाय । दो या । चुगली जो कांच, पेट प्रादि मांसल स्थानों पर उगली आदि .. . . कई कस्तुओं का ऐसा मिलना या जुटना कि दोनों लिपट गए धू जाने से होती है । .' हों । २. हाथापाई । भिडंत । लड़ाई। कि० प्र० - लगना ।—होना । गुत्थी--संक्षा सी० [हिं • गुथना] वह गांठ जो कई वस्तुओं के एक मुहा०--गुदगुदी करना=गुदगुदाना। में गुथने से बने । गिरह । उलझन । २. उत्कंठा। शौक। ३. माहलाद । उल्लास । 'उमंग! . .. क्रि० प्र०-पड़ना। ४. प्रसंगेच्छा । काम का वेग । चुल । . महा०-गुत्थी सुलझाना-समस्या हल करना। कठिनाई दूर गदग्रह-संपा० [सं०] कौप्ठबद्धता का रोग। उदायत्त । करना। " पु० [सं०] कोष्ठबद्धता का रोग । उदावत रोग।... गुत्स--संश्था पुं० [सं०] ३० 'गुच्छ । गुदड़िया-संघा पु० [हिं० गूदड़+इया (प्रत्य०) ] १. गुदड़ी पहनने या योढ़नेवाला । गुत्सक-संबा पुं० [सं०] १. गुच्छा । २. फूलों का गुच्छा । ३. चवर। यौ--गुदडिया फकीर-गुदड़ी पहननेवाला फकीर। गुदा ४. ग्रंथ का भाग या अध्याय (को०]। . पीर-गांव के पास का वह पेड़ जिसपर ग्रामीण जन चिया . गुथना-- क्रि० अ० [सं० गुत्सन, प्रा. गुत्थन ] १. कई वस्तुओं का इत्यादि वाँधने शोर मनौती मानते हैं।........ तागे आदि के द्वारा एक में बँधना या फैसना। कई वस्तुओं २. फटे पूराने कपडे प्रादि वेचनेवाला। ३. खेमा, फश) पस का एक लड़ी या गुच्छे में नाथा जाना । २. किसी वस्तु का आदि भाड़े पर देनेवाला ।