पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२२७

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गुदड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० गूथना] = नोटो सिलाई करना] फटे पुराने गुदरिया-संवा पुं० [देश०] एक प्रकार का नौबू । कपड़ों की कई तहों को एक में गाँव वा सीकर बनाया हुअा गुदरी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० गुदड़ी] दे॰ 'गुदड़ी'। . पोड़ना या विछावन । फटे, पुरानै टुकड़ों को जोड़कर बनाया गुदरनाल-संधा बी० [हिं० गुदरना] १.पंढ़ा हुआ पाठ शुद्धतापूर्वक हुआ कपड़ा । कया। सुनाना जिससे ज्ञात हो जाय कि पाठ भली भांति याद किया विशेप-साधुनों को गुदड़ी में कभी कभी रंग बिरंगे कपड़ों के गया है। जायजा । २. परीक्षा इम्तहान । परताल । उ०- जोड़ भी लगते हैं। । सारो शुक शुभ मराल, केकी कोकिल रसाल बोलत कल मुहा०-गुदड़ो में लाल-तुच्छ स्थान में उत्तम वस्तु । छोटे पारावत भूरि भेद गुनिए । मनहु मदन पंडित ऋषि शिष्य "स्थान में बहुमूल्य वस्तु या गुणी व्यक्ति । गुदड़ी का लाल= गुणन मंडित करि अपनी गुदरैन देन पठए प्रभु सुनिए !------ . : कोई ऐसा धनी या गुणी जिसके रूप रंग, वेश आदि से उसका केशव (शब्द०)। ...धन या गुण न प्रकट होता हो। क्या गुदड़ी है ? क्या वित्त गुदवदन-संवा पुं० [सं०] गुदा [को०] । .. है ? क्या मजाल है ? क्या हकीकत है ? गुदवाना-क्रि० स० [हिं० गोदना ] दे० 'गुदना'। २. गुदड़ी फरोश-संशा पुं० [हिं० गुदड़ी+फा० फ़रोश] रद्दी और फटा गुदस्तंभ-संज्ञा पुं० [गुदस्तम्म] कब्ज [को०] । - पुराना सामान बेचनेवाला। गुदांकुर-संचा पुं० [सं० गुदाकर] बवासीर । .. गुदडीबाजार-संञ्चा पुं० [हिं० गुदड़ी+फा बाजार] वह बाजार जहाँ गुदा-सच्चा बा [सं०] मलद्वार। गाड़ ': फटे पुराने कपड़े या टूटी फूटी चीजें विकती हों। यह बाजार' गुदा । गुदाज-वि० [फा० गुदाज़] गूदेदार । गदराया हुआ । गुदकार। . प्रायः संध्या समय लगता है। ___ मांस से भरा हुआ। गुदाना- क्रि० स० [हिं० गोदना का प्रे०] गोदने की क्रिया कराना । "गुदन--संवा भी० [हिं० गोदना] वह स्त्री जिसके शरीर पर गोदना गुदाभंजन-संथा पुं० [सं० गुदा+मजन] पुरुप का पुरुप से मथुन । गुदा हुआ हो (पश्चिम)। समलैंगिक मथुन। गुदनहर-संज्ञा पुं० [हिं० गोदनहारी का पुं॰] दे॰ 'गोदनहर'। कि० प्र०- करना।-कराना।

गुदनहारी-संशा सी० [हि. गोदनहारी] दे० 'गोदनहारी' ।

गुदाम–संञ्चा पुं० [हिं० गोदाम] दे॰ 'गोदाम'। . • गुदनाचा पुं० [हिं० गोदना] दे० 'गोदना' । गुदाम संज्ञा पुं० [सं० पुर्त० बोताव, हिं० बुताम] वटन । घुडी। • . गुदना-क्रि०अ० [हिं० गोदना] चुभना । चँसना । गड़ना। खुभना । गुदार-वि० [हिं० गूदा+पार (प्रत्य॰)] गुदेदार । जिसमें अधिक

मुदनिर्गम-संज्ञा पुं० [सं०] गुदा का एक रोग। काँच निकलनाको०] | गूदा हो। मसीला । गुदाज । गुदकारा।

- गुदनी--संवा सी० [हिं० गोदनी] दे० 'गोदनी'। गुदारा'-संज्ञा पुं॰ [फा० गुजारह ] १. नाव पर नदी पार करने की गुदपाक-संज्ञा पुं० [सं०] गुदा पक जाने का रोग। . किया । उतारा। उ०-यहि विधि राति लोग सब जागा ।

'विशेप-छोटे बच्चों को यह रोग बहुधा हुआ करता है।

भा भिनसार गुदारा लागा।—तुलसी (शब्द०)। . - गुदभ्रंश-संशा पुं० [सं०] काँच निकलने का रोग । क्रि० प्र०-लगना। गुदमी-संचा पु० [देश॰] एक प्रकार का मोटा और मुलायम कंबल जो २.०'गजारा। . .. ठंडे पहाड़ी देशों में बुना जाता है । ...गुदरनाल-क्रि० अ० [फा० गजर-+-हिं० ना (प्रत्य॰) 12. त्याग गुदारा'-वि० [हि० गूदा+पारा (प्रत्य॰)] ० 'गुदार। करना । अलग रहना। दर गुजर करना । उ० मिलि न गुदावत-संज्ञा पुं० [सं०] कोष्ठबद्धता कोग। जाय नहि गुदरत बनई। सुकवि लखन मन की गति भनई। गुदियारा-वि० [हिं० मुदकारा] दे० 'गुदकारा'। तुलसी (शब्द०)। निवेदन करना । हाल कहना। गदोसंहा बी० [देश॰] नदियों के किनारे का वह स्थान जहाँ नावें उ.-तब द्वापर ही नप सों गुदरे। सुकदेव अवै दरवार खरे। बनती हैं या मरम्मत के लिये रखी जाती हैं। - -केशव (शब्द०)। ३. व्यतीत होना। बीतना । गुजरना। गुदुरी- संज्ञा श्री० [हिं० गवरना] १.मटर की फली। २.एक

मंतर लेह होह सँग लाग । गुदर जाइ तब होइहि बाग। प्रकार का कीड़ा जो मटर और चने की फसल को हानि

"..." जायसी (शब्द०)। ४. उपस्थित किया जाना। पेश होना। पहुचाता है। _गदरानना-क्रि० स० [फा० गुजरान+हि. ना (प्रत्य॰)] १. पेश कि.प्र.-प्राना |-निखोरना ।-लगना । - करना। सामने रखना। उपस्थित करना । नजर करना। गुदौष्ठ-संशा पुं० [सं०] गुदा के मुख पर का चमड़ा (को०। ___ भेंट देना । उ०-गुदरानी तेहि दूरि ते पारिजात की माल। गुदा-संवा पुं० [हिं० गूदा दे० 'गूदा'। ." ---गुमान (शब्द०) '२. निवेदन करना । हाल कहना। गुदा- संज्ञा पुं० [देश॰] पेड़ की मोटी डाल। . E: उ०-देखि तिन्हैं तव दुरि ते गुदरांन्यो प्रतिहार ! पाए गूदी-संशा पुं० [हिं०गुदा] १.मींगी। गिरी ।. किसी फल के .. . विश्वामित्र जू जनु दूजो करतार 1--केशव (शब्द०)। भीतर का गूदा। मज । २.. सिर का पिछला भाग। - गुर्दारया संद्या स्त्री० [हिं० गुदड़ी+इया (प्रत्य॰)] 2. 'गुदड़ी। . . ल्यौंडी।