पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२३२

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गुरिदल १३०६ गुरिदल-संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. किलकिला की जाति का एक पक्षी जो ६. वह व्यक्ति जो विद्या, बुद्धि बल, वय या पद में सबसे .. जलाशयों के निकट रहता है और मछली खाता है । इसे बदामी बड़ा हो। कहते हैं । २. कचनार का पेड़ । यौं -गुरुजन । गुरुवर्य। .. . ......; :, . गुरिया--संज्ञा स्त्री० [मं० गुटिको] १. वह दाना, मक्का या गाँठ जो १०. ब्रह्मा । ११. विष्णु । १२. शिव । १३. कौं। १४. पिता . किसी प्रकार की माला या लड़ी का एक अंश हो । जैसे- (को०)। १५. द्रोणाचार्य (को०)। : . . माला की गुरिया, रीढ़ की गुरिया, साँप की गुरिया आदि। गुरुभई-संघा श्री० [हिं० गुरु-+-यई (प्रत्य॰)] दे० 'गुरुमाई. .. २. चौकोर या गोल छोटा टुकड़ा जो काटकर अलग किया गुरुपाइन -संज्ञा श्री० [20 गुरु+श्राइन (प्रत्य॰)] १. गुरु की स्त्री। गया हो । कटा हुआ छोटा खंड । ३. मांस का छोटा टुकड़ा। २. वह स्त्री जो शिक्षा देती हो। .. . . . बोटी। गुरुमाई --संज्ञा क्षी० [सं० गुरु+माई (प्रत्य॰)] १. गृह का धर्म । २० गुरिया-संवा स्त्री॰ [देश॰] १. दरी बुनने के करधे की वह बड़ी गुरु का कृत्य । गुरु का काम । ३. चालाकी । धूर्तता। .. लकड़ी या शहतीर जिसमें वै का बाँस लगा रहता है। इसे गुरुपानी--मंणा बी० [हिं० गुरु+पानी (प्रत्य॰)] १० 'गुरुमाइन' । । । झिल्लन भी कहते हैं । २. हेंगे या पोटे की बह रस्सी जिसका गुरुकंठ-संज्ञा पुं० [सं० गुरुफए] मयूर । मोर (को०) ।' एक सिरा हेंगे में और दूसरा वैलों की गरदन के पास जुए के गुरुकार्य-संवा पुं०[सं०] कोई गंभीर कार्य । गंभीर महत्व का कार्य। - वीच में बंधा रहता है। २. आध्यात्मिक गुरु का कार्य । प्राचार्य का कार्य अथवा गुरिल्ला--संज्ञा पुं० [अं० गोरिला] दे॰ 'गोरिल्ला' । प्राचार्य का पद [को॰] । गुरीरा-वि० [हिं० गुड़+ईला (प्रत्य॰)] १. गुड़ का सा मीठा। गुरुक-वि० सं०] १. थोड़ा। भारी। २. दीर्घ (पिंगल) को । २. सुदर । वढ़िया । उत्तम। उ०-~-सूर परस सों भयो गुरुकार-संक्षा पुं० [सं०] उपासना । पूजा [को०)। ... गुरीरा!--जायसी (शब्द०)। गुरुकुडली - संज्ञा स्त्री० [सं० गुरुंकुए डली] फलित ज्योतिष में एक चक्र।। गरु'--वि० [सं०] [संञ्चा गुरुत्व, गुरुता] १. लंबे चौडे आकारवाला। विशेष इसके द्वारा जन्मनक्षत्र के अनुसार एक एक वर्ष के बड़ा । २. भारी। वजनी । जो तौल में अधिक हो। ३. लिये अधिपति ग्रह का निश्चय किया जाता है। इस चक्र के कठिनता से पकने या पचनेवाला (खाद्य पदार्थ)। ४. चौड़ा मध्य में गुरु अर्थात वहस्पति रखे जाते हैं और उनके पाठ (डिं०)। ५. पूजनीय (को०)। ६. महत्वशील (को०)। ७. योर पाठ ग्रह रखे जाते हैं। इसी से इस चक्र को गुरुकुंडली कठिन (को०)। ८. दीर्घमात्रावाला (वर्ण) (को०)। ६. प्रिय कहते हैं। (को०)। १०. तीव्रतापूर्ण (को०) । ११. संमान्य (को०) सर्वो. गुरुकूल-संज्ञा पुं० [सं०] १. गुरु, प्राचार्य या शिक्षक के रहने का यह तम । सुदर (को०)। १२. दर्पपूर्ण (पात)। १३. अदमनीय स्थान जहाँ वह विद्यार्थियों को अपने साथ रखकर शिक्षा देता (को०)। १४. शक्तिशाली । बलवान् (को०)। १५. हो। गुरुगृह । मूल्यवान् (को०)। विशेष-प्राचीन काल में भारतवर्ष में यह प्रथा थी कि गुरु और गुरु-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री गुरुपानी ] १. देवताओं के प्राचार्य प्राचार्य लोग साधारण मनुष्यों के निवासस्थान से बहुत दूर बृहस्पति । १. बृहस्पति नामक ग्रह । एकांत में रहते थे और लोग अपने बालकों को शिक्षा के लिये वहीं भेज देते थे। वे बालक, जबतक उनकी शिक्षा समाप्त न . • यो०--गुरुवार । होती, वहीं रहते थे। ऐसे ही स्थानों को गुरुकुल कहते थे। ३. पुष्य नक्षत्र जिसके अधिष्ठाता बृहस्पति हैं । ४. अपने अपने २. प्राचीन परिपाटी के रहन सहन का विद्यालय।। .. - गृह्य के अनुसार यज्ञोपवीत आदि संस्कार करानेवाला, जो गुरुकृत-वि० [सं०] १.पूजित । मानित । २.अत्यधिक किया हुमा का गायत्री मंत्र का उपदेष्टा होता है। प्राचार्य । ५. किसी मंत्र गरुक्रम--संज्ञा पुं० सं०] गरुपरंपरा द्वारा दी जानेवाली शिक्षा का०' का उपदेष्टा । ६. किसी विद्या या कला का शिक्षक। सिखाने, गरुगंधर्व-संज्ञा पुं० [सं० संगीत शास्त्र में गुरुगन्धर्व] इंद्रताल क ६ पढ़ाने या बतलानेवाला । उस्ताद । भेदों में से एक भेद ।। यो०--गुरुकुल। गुरुगृह-गुरुकुल । .. । गुरुगृह-संघा पुं० [सं०] १. गुरुकुल । २. धनु और मीनं नामक .. ७. दो मात्राओंवाला अक्षर । दीर्घ अक्षर जिसकी दो मात्राएँ या . राशियां को०)। ___ कलाएँ गिनी जाती हैं । जैसे-राम में रा!--(पिंगल)। गुरुघ्न'-संथा पुं० [सं०] १.वह पापी जिसने अपने किसी गुरुजन को विशेष-संयुक्त अक्षर के पहलेवाला अक्षर (लघु होने पर भी) मार डाला हो । गुरु को मार डालने वाला व्यक्ति । २. सफेद ' .. सरसों (को०)। . .. .. ... गुरु माना जाता है। पिंगल में गुरु वर्ण का संकेत 5 है। अनुस्वार और विसर्गयुक्त अक्षर भी गुरु ही माने जाते हैं। गुरुघ्न - वि० गुरु या गुरुजन को मार डालनेवाला (को०)।. . गुरुच-संज्ञा स्त्री० [म गुड़ची एक प्रकार की मोटी बेल जो रस्सी ८. यह ताल जिसमें एक दीर्घ या दो. साधारण मात्राएँ हों। के रूप में वहत दूर तक चली जाती है। -:: .. विशेष-पिंगल के गुरु की भांति ताल के गुरु का चिह्न भी विशेष-यह बेल पेड़ों पर चढ़ी मिलती है और बहुत दिनों तक ही है।-(संगीत), .. . . रहती है।