पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२३६

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१३१३ गल गुलकेश - क्रि० प्र०—करना ।--मचाना। ३. पशुओं के शरीर में फूल के आकार का भिन्न रंग का गोल .... . .. - दाग। गुलअंदाम-वि० [फा०] फूल जैसा कोमले । मृदुल । पुष्पांगी। क्रि० प्र०—पड़ना। पुष्पांगना। . . . ... ४ फूल के आकार का वह गड्ढा जो फूले हुए गालों में हंसने गुलग्रकीक-संहा पुं० [फा० गुल+य. श्रकीक ] एक प्रकार का : आदि के समय पड़ता है। फूलदार पौधा। क्रि० प्र०-पड़ना। - विशेष--इसके वी सियों भेद पाए जाते हैं। यह प्रायः फाल्गुन, .." 'चैत या सावन भादों में लगाया जाता है।। ५.वह चिह्न जो मनुष्य या पशु के शरीर पर गरम को हुई धातु आदि के दागने से पड़ता है। दाग । छाप । . गुलअजायब-संथा पुं० [फा० गुल-+०. अजायब अजीव का बहु०] १.एक प्रकार का फूल । इस फूल का पौधा। .. मुहा०—गुल खिलना= अपने शरीर पर गरम धातु से दगवाना । गुल अनार-संशा पुं० [फा०] अनार का फूल' : क्रि० प्र०-दागना । - देना। . गुल प्रवास-संघा पु०फाल+० प्रवास] अब्बास नाम का ६.दीपक आदि में बत्ती का वह अंश जो विलकुल जल जाता है। पौधा। जिसमें बरसात के दिनों में लाल या पीले रंग के क्रि० प्र०काटना ।-झाड़ना ।—पड़ना। फूल लगते हैं। यौo-गुलगीर=चिराग का गुल काटने की कैची। गुल प्रवासी-वि० [फा० गुल+अब्बास + ई (प्रत्य॰)] हलकी महा.- (चिराग ) गुल करना=(चिराग') बुझाना या ठंडा स्याही लिए हुए एक प्रकार का खुलता लाल रंग। । करना। (चिराग)। गुल होना (चिराग) बुझना । विशेष यह ४ छैटाक शहाब के फूल, छंटाफ आम की खटाई ... ७ तमाकू का वह जला हुआ अंश जो चिलम पीने के बाद बच और ८-६ माशे नील के मिलाने से बनता है। इसमें यदि रहता है। जट्ठा। ८. जूते के तले का चमड़ा जो एड़ी के नील की मात्रा बढ़ाते जायें तो क्रमशः करौंदिया, किरमिजी, नीचे रहता है और जिसमें नाल आदि लगाई जाती है। जूते अबीरी और सौसनी रंग बनता जाता है। . . . का पान । गुल प्रशी --संथा पुं० [फा० गुल अशर्फी एक प्रकार का पीले रंग कि० प्र०—लगाना ।—जड़ना । का फूल। ६.कारचोवी की बनी हुई फूल के आकार की बड़ी टिकुली जिसे गल पातशी-संज्ञा पुं० [फा०] गहरे लाल रंग का गुलाब । कहीं कहीं स्त्रियाँ सुदरता के लिये कनपटी पर लगाती हैं। गलउरा-संवा पु० [हिं० गुलौर] ६० 'गुलार।... १०. चूने को वह गोल विंदी जो आँखें दुखने के समय उनकी गल औरंग-संथा पुं० [फा०] एक प्रकार का गदा। .. लाली दूर करने के लिये कनपटियों पर लगाते हैं। गुलकंद-संवा पुं० [फा० गुलकंद ] मिनी या चीनी में मिली हुई क्रि० प्र०-~-लगाना । . .गुलाब के फूलों की पंखुरियां जो धुपंकी गरमी से पकाई जाती ११. किसी चीज पर बना हुया भिन्न रंग का कोई गोल निशान हैं। इनका व्यवहार प्रायः दस्त साफ लान १ क्रि० प्र० पड़ना । बनना ।। १२. यांख का डेला । १३. एक प्रकार का रंगीन या चलता विशेष-सेवती के फूलों का जो गुलकंद बनता है उसकी तासीरः । ठंडी होती है। इसमें विशेषता यह है कि इसे चंद्रमा की ___ गाना । १४. जलता हुमा कोयला । अंगारा। ... . चाँदनी में सिद्ध करते हैं। मुहा०-गुल बँधना=(१) प्राग का अच्छी तरह सुलग जाना। (२) पास में कुछ धन हो जाना। कुछ पूजी हो जाना। गुलकट--संज्ञा पुं० [फा० गुल + हिं० काटना शीशम की लकड़ी का.. १५. कोमले. या गोबर का बना हुआ छोटा गोला जिसे भाग को . बना हुपा छोपियों का एक प्रकार का ठप्पा जिससे कपड़े पर:

. अधिक देर तक रखने के लिये अँगीठी आदि में राख के नीचे

वेल बूटै छापे जाते हैं। .... .. 1. गाड़ देते हैं। १६. सुदरी स्त्री । नायिका.। . गुलकदा--संज्ञा पुं० [फा० गुलकदह ] १. फुलवारी। बगीचा । २. . गुल-संक्षा पुं० [देश॰] १. हलवाई का भट्ठा। २. खेतों में बहुत वह घर जहाँ अत्यधिक फूल हों . . ... .... ... दूर तक पानी ले जाने के लिये बना हया वह वरदां जो गुलकार--संधा.पु० [फा०] किसी प्रकार के वेल बूटे बनानेवाला ... से कुछ ऊचा होता है। ३. अांख और कान के बीच का - कारीगर । ... स्थान । कनपटी। उ---गुल तासु गोली: सौ फुटी। कर की गलकारी-संज्ञा पुं० [फा०] १. किसी प्रकार के बेलबूटे या फूल पत्ता ...न वाग तऊ छुटी 1-सूदन (शब्द०)। ... इत्यादि बनाने, तराशने या काढ़ने का कामं । २..कोई ऐसा गुल -संज्ञा पुं० [सं०] १. गुड़ । २. लिंग या शिश्न का अंग्न भाग । . काम जिसमें बेल बूटे आदि बने हों।. .. , ३. भगनासा. (को०) ।....... . . गुलकेश-संज्ञा पुं० [फा०.गुल+केश] १. मुंगकेश का पौधा । गुल -- संसा पं० [फा० गुल] शोर । हल्लाः । .. कलगा ! २. मुर्गकेश या क्लगे का फूल । उ-जो गुलकेश। यो०-गुलगपाड़ा। - के फूल सराहें । मैन तुरीन के जीन झवाहैं।-गुमान (शब्द०)। ...... एक प्रकार का गेंदा।