पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२४

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क्षारक्ष ' ... हया । . क्षिप्रश्येन क्षाराक्ष-वि० वनावटी प्राख लगानेवाला [को०] 1... ... क्षितिपति संज्ञा पुं० [सं०] राजा । भूपति [को०]:..... क्षारागद-संशा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रौपध। ... क्षितीश, क्षितीश्वर--संधा पुं० दे० 'क्षितिपपति' [को०] ... "विशेष-यह पलास, नीम, देवदार, धव, आंवला, मिलावा, ग्राम क्षित्यादात-संज्ञा पुं० [सं०] देवका का तान, जो भगवान् कृष्ण का प्रादि कई लकड़ियों के भस्म को क्षारपाक की रीति से गोमूत्र माता थीं (को०] में मिलाकर पकाने से बनती है। यह प्रौषध प्रर्श, वावगल्म, क्षित्यधिप-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'क्षितिपति' को०] । काश, अजीर्ण, संग्रहणी ग्रादि रोगों में दी जाती है।... क्षिद्र--संघा पुं० [सं०] १. रोग । २.सूर्य । ३. सींग । क्षाराष्टक-संज्ञा पुं० [सं०] अाह प्रकार के क्षारों का समूह। , क्षिप'-संक्षा पुं० [सं०] १. फेंकने की क्रिया । क्षेपण । २. अपमानित . विशेप-पलास, हड़जोड़, चिचड़ा, इमली, तिल, मदार, जौ तथा ..करना। झिड़कना [को०] 1 ' सज्जीखार इस वर्ग के अंतर्गत हैं। " .. क्षिप-वि०१-क्षेपक । फेंकनेवाला । २.अपमान करनेवाला [को॰] । . क्षारिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] भूख । दुमुक्षा (को०] । क्षिपक--संवा पुं० [सं०] [म्मी० क्षिपिका योद्धा। धनुर्धर [को०] । क्षारित-वि० [सं०] १. अपवादग्रस्त । दूषित । २. नावित। झरा क्षिपण--संज्ञा पुं॰ [सं०] १. फेंकना । डालना। २. भेजना । ३. अभियोग करना । भर्त्सना करना [को०1 क्षिपरिण-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ डाँड । चप्पू । २.अस्त्र । फेंककर प्रहार क्षारोद-संज्ञा पुं० [सं०] खारा समुद्र । लवणं समुद्रा ....किया जानेवाला हथियार । जाल । ४.पुरोहित [को०] । भारोदक क्षारोदधि-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'क्षारोद' [को०] ! क्षिपणी-संज्ञा ली [सं०] चावुक का प्रहार। कशाधान [को०] । क्षाल-संहा पुं० [सं०] क्षालन 1 धोना। साफ करना किो क्षिपण-संज्ञा पुं० [सं०] १.हवा । पवन । ० 'क्षिपरिण' [को०] । .. क्षालन-संज्ञा पुं० [सं०] धोना । निर्मल वरना । साफ करना । क्षिपण्यु-संघा पुं० [सं०] १. शरीर २. बसंत ऋतु । ३. सुवाम। ' क्षालित-वि० [सं०] धुला हुआ । साफ किया हुआ । उ०-क्षालित : सुगध [को०] । .शत तरंग तनु पालित प्रवाहित निकली दुति निर्मल !- क्षिपा---संज्ञा स्त्री० [सं०] १. फेंकना 1 डालना । २. रात । . क्षिप्त'-वि० [सं०] १. त्यक्त । २. विकीर्ण । उ-क्षिप्त खिलोने देख .. गीतिका, पृ० ८३. .. क्षिण@-संहा पुं० [सं०क्षण दे० 'क्षण' । उ०-बहूँ ते तृण हठीले बाल के, रख दे माँ ज्यों उन्हें संभाल समाल के।-- क्षिण में होई । तृण ते बच कर पुंनि सोई।-कधीर वी०, साकेत, पृ० ११५ । ३.प्रवज्ञात । अपमानित । ४.पतित । ५. पृ० १३०। वात रोग से ग्रस्त । पागल । ६. स्थापित को०] 1. .. क्षिप्त--संघा पुं० [सं०] योग में चित्त की पाँच वृत्तियों या अवस्थामों क्षित-वि० [सं०] १. नष्ट । ध्वस्त । २.क्षीण 1. छीजा हमा।. ३. ' में से एक, जिसमें चित्त रजोगण के द्वारा सदा स्थिर रहता . दुर्बल किया हुमा ४. दीन हीन [को० . ..... .. है। कहा गया है, यह प्रवस्था योग के लिये अनुकूल या क्षित-संज्ञा पुं०.१: वध, २. आघात । क्षति । प्रहार [को०1.. क्षिता-संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी । क्षिति [को०1 उपयुक्त नहीं होती। नि० दे० 'चित्तभूमि' . . क्षिप्ता--संज्ञा स्त्री० [सं०] रात्रि। रात (को०)। क्षिति-संज्ञा पुं० []-१. पृथिवी । २. वासस्थान । जगह । ३. गोरोचन ४.एक ऋषि का नाम । ५.पंचम स्वर की चार क्षिाप्त-संज्ञा पुं० [सं०] १. फकना। डालना। २. फूट . . करना [को०] । श्रुतियों में से पहली श्रुति । ६. क्षयः। ७.प्रलय काल । क्षितिक्षम-संज्ञा पुं० [सं०] वर का पेड़1.:. क्षिप्र-क्रि० वि० [सं०] १.शीघ्र । जल्दी। २.तत्क्षण । तुरंत । ..:. क्षितिजंतु-संघा पुं० [सं० क्षितिजन्तु] केंचुवा । क्षिप्र-वि० [सं०] १. तेज । जल्द । जैसे- क्षिप्रहस्त, क्षिप्रहोम । क्षितिज-संज्ञा पुं० [१०] १. मंगल ग्रह । २. नरकासुर । ३.केंचुना। ...२. चंचल । " ४. वृक्ष । पेड़ ५.खगोल में वह तिर्यग वृत्त जिसकी दूरी क्षिप्र--संग्रा पुं० [सं०] १ सुश्रत के अनुसार शरीर के एक सौ सात प्रकाश के मध्य से ९० अंश हो । ऊँचे स्थान पर खड़े होकर । मर्म स्थानों में से एक, जो अंगूठे और दूसरी उँगली के बीच में देखने से चारों ओर दिखाई पड़ता हुग्रा वह वृत्ताकार स्थान है। २.एक महत का पंद्रहवाँ भाग। जही याकाश और पृथ्वी दोनों मिले जान पड़ते है।.. क्षिप्रकर-वि० [सं०] कुशल । मुस्तैद । उ-मकरंद तबला के बजाने क्षितिजा--संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथिवी की कन्या-सीता का ....... - में क्षिप्रकर था ।-श्यामा०, पृ०१०१। । क्षितितनय-संशा पुं० [सं०] मंगल ग्रह । .. ... क्षिप्रकारी-वि० [सं० क्षिप्रकारिन् ] शीघ्र काम करनेवाला [को०। क्षितितल--संशा पुं० [सं०] पृथ्वीतज । धरातल [को०] । क्षिप्रचेता-वि० [सं० क्षिप्रचेतस्] सचेत । जागरूक । प्रत्युत्पन्न क्षितिदेव--संज्ञा पुं० सं०] भूसुर । ब्राह्मगा. . . . . . . मति । क्षितिधर-संज्ञा पुं० [सं०] पर्वत । भूधर-1 . . क्षिप्रपाकी--संज्ञा पुं० [सं०] गर्दभमंड नाम का वृक्ष । पारस पीपल । क्षितिप-संया पुं० [सं०] भूपति । राजा । उ०--सब हर्पनिमग्न हो क्षिप्रमूत्र-संया पुं० [स०] मूद्रिय संबंधी एक प्रकार का रोग।.. गए, क्षित्रियों के मन भग्न हो गए।--साकेत, पृ० ३५६ 1. क्षिप्रश्येन-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की शिकारी चिड़िया । ..