पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२४२

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गुलू १३१६ गुल्लक है जिससे रस्से बनते हैं और एक प्रकार का कपड़ा भी बुना गुलोह-संझा को [फा० गिलोय मुडच । गुरुच। जाता है। इसकी लकड़ी से कई तरह के खिलौने यादि गुलौरी-संञ्चा पुं० [सं० गुल- गुड़+पोर (प्रत्य॰)] वह स्थान : बनते हैं। प्रायः अकाल में इसकी छोटी छोटी टहनियाँ पशुओं जहाँ रस पकाने का भट्ठा हो और जहाँ गुड़ बनाया जाता हो। के चारे का काम देती हैं। कतीरा नाम का गोंद इसी वृक्ष गुलौरा-संहा पुं० [सं० गुल+हिं० प्रौरा (प्रत्य॰)] दे० 'गुलौर।। से निकलता है। गुल्गा-संशा पुं० [देश॰] एक प्रकार का ताड़। २. एक प्रकार की मछली जो हाथ सवा हाथ लंबी होती है। विशेष---यह सुंदरबन में पानी के किनारे लता की तरह फैलता ३ एक प्रकार की बटेर । है तथा चटगाँव- वरमा आदि में पाया जाता है । इसके पुराने . मुलू-संज्ञा पुं० [फा०] गला । गरदन । फल. जिसे गोलफल कहते हैं बहुत बड़े बड़े होते हैं और समुद्र गुलूखलासी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० गुलू+० खुलास] गला छूटना । में बहते बहते बहुत दूर तक चले जाते हैं । पत्तों के डंठलों को मुक्ति । छुटकारा । एक में बांधकर उनपर सुदरबन के लट्ठ बहाए जाते हैं। . . गुलूबंद-पुं० [फा०] १. सलाई से या करधे पर बुनी हुई वह पत्तै छप्पर बनाने के काम में आते हैं और 'गोलपत्ता' सूती, ऊनी या रेशमी लंबी और प्रायः एक वालिश्त चौड़ी कहलाते हैं। पट्टी जो सरदी से बचने के लिये सिर, गले या कानों पर गुल्फ-संज्ञा पुं० [सं०] एड़ी के ऊपर की गाँठ। . . लपेटी जाती है। २.स्त्रियों के पहनने का एक प्रकार का गुल्म-संशा पुं० [सं०] १.ऐसा पौधा जो एक जड़ से कई होकर जेवर जो गले से सटा रहता है। निकले और जिसमें कड़ी लकड़ी या डंठल न हो । जैसे, ईख, गुलूला--- संज्ञा पुं० [फा० गुलूलह ] १. गुलेल का गुल्ला। २.बंदूक की शार आदि। गोली । ३. दवा की गोली। विशेष-अप्रकाश में गुल्म गण के अंतर्गत परियारा, पाठा, गुलेंदा--संज्ञा पुं० [हिं० गोल] महुए का पका फल । कोयंदा । तुलसी, काकजंघा, चिरचिरा आदि पौधे लिए गए हैं। गुले- संधा पुं० [देश॰] एक प्रकार का छोटा पेड़। २.सेना का एक समुदाय जिसमें हागी, ६ रथ, २७ धो विशेष - यह उत्तर भारत में अधिकता से होता है। इसकी और ४५ पैदल होते हैं। ३.पेट का एक रोग जिसमें उसके लकड़ी बहुत मजबूत और चमकदार होती है जिसपर खुदाई भीतर एक गोला सा बंध जाता है। का काम बहुत अच्छा होता है। कहीं कहीं इसके बीजों की विशेष-हृदय के नीचे से लेकर पेड़ तक के बीच कहा पर यह माला बनाई जाती है। इसे रंगचोल भी कहते हैं । गोला उत्पन्न हो सकता है। भावप्रकाश के अनुसार यह गुलेटन-संज्ञा पुं० [हिं० गोल] कुरंड पत्थर का वह छोटा गोला गोला अनियमित आहार विहार तथा वायु और पित्त के .. जिससे सिकलीगर अपना मसाला 'रगड़ते हैं । दूषित होने से होता है। गुलेनार--संज्ञा पुं० [हिं० गुलनार] दे॰ 'गुलनार'। ४.नसों की सूज़न जो गाँठ के प्राकार की हो। ५.झाड़ी (को०)। गुलेराना-संज्ञा पु० [फा० गुल+० राना] १ सुंदर फूल । २. ६. दुर्ग । किला (को०)। ७.खाईवंदी (को०)। ग्राम का एक फूल जो भीतर की ओर लाल और बाहर की भोर पीला थाना (को०)। ६. नदी के किनारे या पाट पर सुरक्षा के लिये होता है। बनी हुई चौकी (को०)। १०.शिविर । सेनानिदेश (को०)। गुलेल --संज्ञा स्त्री [फा० गिलूल] वह कमान या धनुप जिससे गुल्मकेतु-संशा पुं० [सं०] अम्लवेतस [को०] । चिड़ियों और बंदरों आदि को मारने के लिये मिट्टी की गुल्मकेश-वि० [सं०] भवरीले वालोंवाला [को०)। गोलियां चलाई जाती हैं। उ०-(क) गुप्त गुलेल मोलये गुल्ममूल-संज्ञा पुं० [सं०] ताजी अदरक (को०)। धारे। रिपु चिरई दिन लाखक मारे। हनुमान (शब्द०)। गुल्मप - संज्ञा पुं० [सं०] एक गुल्म का नायक | गौल्मिक । (ख) तिलक विदु को मानि निशाना। गूरा हनत - गुलेल गुल्मवल्ली- संमा सी० [सं०] सोमलता [को० । महाना 1-रघुराण (शब्द०)। गुल्मवात--संज्ञा पुं॰ [सं०[ तिल्ली का एक रोग [को० । गुलेल - संज्ञा पुं० फा० गिलोय] दे॰ 'गुरुच' । गुल्मी'-वि० [सं० गुल्मिन्] [जी गुल्मिनी] १.झुरमुट के रूप में .. गुलेलची- संशा पुं० [हिं० गुलेल+ची (प्रत्य॰)] गुलेल चलानेवाला। उत्पन्न होनेवाला । २. तिल्ली के रोग से पीड़ित (को०]। . .. . वह मनुष्य जो गुलेल चलाने में चतुर हो।' गुल्मी--संद्धा लो०१. पेड़ों का झड। झाड़। २.बेर । ३. छोटी .... गुलेलबाजो-संधामो फिा० गुलेल-+-बांजी] १.गुलेल चलाना। . इलायची का पेड़ । ४.तंबू । खेमा।६ प्रविले का पड़ा . २. गुलेल से चिड़ियाँ आदि मारना।। गुल्मोदर-संक्षा पुं० [सं० दे० 'गुल्मवात' को०] 1 , . . गुलेला- संज्ञा पुं० [फा० गुलूला] १. मिट्टी की बनाई हुई गोली गुल्य--संज्ञा पुं० [सं०] मिठास । मीठापन [को०)। ... जिसका गुलेल से फैकयार चिड़ियों का शिकार किया जाता गल्लव-संज्ञा पुं० [हिं० गोलक] वह संदक या थैली जिसमें विक्रा है। २ गुलेल । . द्वारा या और किसी प्रकार आई हुई रोजाना आमदनी रखी . गलैंदा-संज्ञा पुं० [हिं० गुलदा] दे॰ 'गुलेंदा'। जाती है।