पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२४४

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गुसीला १३२१ गुहार गुसीला@f-वि० [हिं० गुस्सा+ईला (प्रत्य॰)] गुस्सैल । उ०-- गुह-~-संशा पुं० [स०] १. कार्तिकेय । २.अश्व । घोड़ा । ३:विष्ण का जानि गैरमिसिल गुसीले गुसा धारि मनु कीन्हों ना सलाम न • एक नाम । ४. निपाद जाति का एक नायक जो शृगवेरपुर वचन बोले सियरे । भूपण ग्र०, पृ० १०२। । में रहता था और राम का मित्र था। गुह जाति का व्यक्ति । गुसुलखान-संथा पुं० [हिं० गुस्लखाना दे० 'गुस्लखाना'। उ०- . ५. सिंहपुच्छी लता। पिठवन । ६. शालपणी । सरिवन । भूपन भनत है गुसुलखान ५ खुमान अवरंग साहिबी हथ्याय ७. गुफा । ८. हृदय । ६. माया ।:१०. मेढ़ा। ११. बुद्ध । हरि लाई है।--भूपण ग्रं॰, पृ० ५६ । १२.बंगाली कायस्थों की एक जाति । .. गुसया--संशा गु० [हिं०] दे० 'गोसाई' या 'गोस्वामी'। गुह-संज्ञा पुं० [सं० गुह्य अथवा गूः = मल, विष्ठा] गुह । मैला। गुसैल-वि० [हिं० गुस्सा+ऐल (प्रत्य॰)] दे० 'गुस्सैल . रेल ल ... विशेष-~-मुहावरों आदि के लिये है। 'मूह' । . . . गुस्ताख---वि० [फा० गुस्ताख] धृष्ट । ढीठ । अशालीन। अशिष्ट । गुहड़ा-संञ्चा पुं० [देश॰] चौपायों का एक रोग जिसे · खुरपका भी वेअदब । बड़ों का संकोच न रखनेवाला। . कहते हैं। गुस्ताखाना-क्रि० वि० [फा० गुस्ताखानह ] अशिष्टतापूर्वक । .. विशेष--इसमें उनके मुह से लार बहती है, खुर में दाने पड़ वेपदवी से । . जाते हैं और उनका शरीर गरम. रहता है । चलने में भी वे : गुस्ताखी--संशा को [फा० गुस्ताखी] धृष्टता। ढिठाई । अशिष्टता। लंगड़ाते हैं। वेपदवी। गुहना --क्रि० स० [ सं० गुम्फन ] १. गूथना । .एक में पिरोना । गुस्ल-संक्षा पुं० [अ० गुस्ल स्नान। गूधना । गाँथना । To--(क) शंभु जू मंजु गुहे गुह सो उर यो०-गुस्लखाना। डारत और बढ़ी दुति नारि की।--शंभु (शब्द॰) । (ख) पर गुस्लखाना--संज्ञा पुं० [अ०ग स्ल+फा० खानह, ] स्नानागार । काजै कहा यहि गांव के लोग गुहैं चरचान को चौसर है।- नहाने का घर। सुंदरीसर्वस्व (शब्द०)। २. सुई . तागे से दृढ़ करके सी देना। गुस्लसेहत संा पुं० [अ०] बीमारी से ठीक होने के बाद किया गृहराज-संज्ञा पुं० [सं०] वह प्रासाद या महल जो गुह (कातिकेय) जानेवाला पहला स्नान । - के आधार का बनता है। इसका विस्तार. सोलह हाथ का गस्सा- संथा (० [अ० गुस्सह ] [वि० ग स्सावर, गुस्सैल ] क्रोध। ..... होता है।--(वृहत्संहिता)। . . कोप । रिस । गुहराना--क्रि० स० [हिं० गुहार] पुकारना । चिल्लाकर बुलाना ।' क्रि० प्र०-माना।---करना होना।--में माना। . उ--कहै रघुराज. सो करिद तजि फंद सब कर अरविंद ल... महा---गुस्सा उतरना= क्रोध शांत होना । (किसी पर ) गोविंद गुहरायो है। -रघुराज (शब्द०)। . . . . गुस्सा उतारना=(१) क्रोध में जो इच्छा हो उसे पूर्ण करना। कोप प्रकट करना । अपने कोप का फल खाना । (२) एक गुहवाना--क्रि० स० [हिं० गुहना का प्रे० रूप ] गुहने का काम के ऊपर जो क्रोध हो उसे दूसरे पर प्रकट करना । जैसे,-- कराना । गुधवाना। उससे तो जीतते नहीं, हमारे ऊपर गुस्सा उतारते हो । गुस्सा गुहषष्ट्री-संघा वी० [सं०] अगहन मुदी छठ जो कार्तिक की जन्मतिथि चढ़ना-क्रोध का आवेश होना । रिस का लगना। गुस्सा मानी जाती है। .. .. यूक देना=क्रोध को दूर कर देना । क्षमा करना । गई गुजरी गुहांजनो-संज्ञा स्त्री० [सं० गुह्य + अञ्जन ] अाँख की पलक पर. करना। (स्त्रियाँ) गुस्सा निकालना= दे० 'गुस्सा उतारनों।' होनेवाली फुड़िया । बिल नी । घुरघुरी। अंजनहारी।.. . माना। वात वात गुहा- संज्ञा स्त्री० [सं०] १. गुफा । कंदरा ।.खोह । मदि। 3.०-कोल .. पर क्रोध करना। क्रोध करने के लिये सदा तैयार रहना । बिलोकि भूप बड़ धीरा । भागि पैठ गिरि गुहा गभीरा ।- गुस्सा पीना % क्रोध रोकना । भीतर ही भीतर क्रोध करके तुलसी (शब्द)। २. गुप्त स्थान । छिपने का स्थान (को०)। . रह जाना, प्रकट न करना । गुस्सा मारना क्रोधं रोकना । ३. (ला०) हृदय । अंतःकरण (को०) । ४. बुद्धि (को०) । ५. गुस्से से लाल होना-क्रोध से तमतमाना। क्रोध के आवेश में सिंहपुष्पी (को०)। ६. शालपणी (को०)। आना। गुहाई-संचा श्री० [हिं० गुहना१. गुहने की क्रिया या भाव । गुस्साना-क्रि० प्र० [हिं० गुस्सा से नाम०] गुस्सा करना। ऋद्ध २. गुहने की मजदूरी। ... ... ___ होना। गुहाचर-मंना पु० [सं०] ब्रह्म। .. गुस्सावर--वि० [हिं० गुरसा+फा० पावर (प्रत्य॰)] गुस्सल । गुस्सा गुहाचर-वि० गुहा में निवास करनेवाला [को०] । .. करनेवाला। . . . गुहाना-क्रि० स० [हिं०] १. 'गुह्वाना'। गुस्सैल- वि० [अ० गुस्सा+हिऐल (प्रत्य॰)] जिसे जल्दी कोध गुहार-मा स्त्री॰ [सं० गो+हार] रक्षा के लिये पुकार । दोहाई। पावे। गुस्सावर । थोड़ी थोड़ी बात पर विगड़नेवाला । जैसे--- वि० दे० 'गोहार'। वह बड़ा गुस्सल प्रादमी है, उससे मत बोलो।। यो पड़ना ।-मारना ।--लगना।----लगाना ।। - ई