पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२४८

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गूदे दार १३२५ , गूलर • खोपड़ी का सार भाग । उ०---सोनित सो सानि गूदा खात गुरू -संथा पुं० [मं० गुरु] दे० 'गुरु' । उ० ----सूरी मेलु हस्ति कर सतुमा से एक एक प्रेत पियत बहोरि घोरि घोरि कै ।- पूरू। हौं नहिं जानी जानै मूरू। जायसी ग्रं० (गुप्त), तुलसी (शब्द०)। . पृ० २०४। मुहा०---मारते मारते गूदा निकालना गहरी मार मारना । गुर्जर - संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'गुर्जर' [को०] । .. ३. किसी चीज के भीतर का सार भाग । मींगी। गिरी । ४. गूण-वि० [सं०] कृतज्ञ । ग्राभारी (को०)। . .. किसी वस्तु का सार भाग । गूर्त-वि० [म०] कृतज्ञ । कनौड़ा । कनावड़ा [को०। मुहा० - वातों का गूया निकाल नावाल की खाल निकालना। गूति संज्ञा श्री० [सं०] १. प्रशंसा । २. सहमति [को०)।.. ., बहुत खोद विनोद करना। गुर्द-संज्ञा पुं० [सं०] कुदान । कूदने की क्रिया [को०। ...... : गूदेदार--वि० [हिं० गूदा+फा० दार] गूदायुक्त । जिसमें गूदा हो। मूलड़- संघा पुं० [हिं० गूलर ] दे॰ 'गूलर' 1 उ०--ग्राम और जिसमें पयप्ति गूदा हो । गुदार। जामुन के फल हैं, कुछ गूलड़, कुछ गुल्लू कच्चे।-याराधना: गूधना--संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'गूयना' । उ०-वेइलि चमेलि निव पृ०७४। गुधिए हार । सोधा चरचित करू' सिंगार 1---सं० दरिया, गूलभांग-संशा स्त्री॰ [हिं० फूल का अनु० गूल+हिं० मांग ] . पृ० १७३ । हिमालय में होनेवाली एक प्रकार की भांग का मादा पेड़ गून'--संज्ञा स्त्री॰ [सं० गुण रस्सी] १. रस्सी जिससे नाव खींचते जिसकी टहनियों से रेशे निकाले जाते हैं। . .. हैं । २. रीहा घास। गुलर'--संज्ञा पुं॰ [सं० उदुंबर ?] वट वर्ग: अर्थात् पीपल और बरगद गून-संज्ञा पुं० [सं० गुण ] दे० 'गण'। उ०--- जौवन याहि कम की जाति का एक बड़ा पेड़ जिसकी पेड़ी, डाल धादि से एक नहि ऊन, धनि तुम विसय देखिन सब गून ।--विद्यापति, प्रकार का दूध निकलता है। पृ० ३१५। विशेष--इसके पत्ते महुवे के पत्ते के आकार के पर उससे छोटे गूनसराई--संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का वृक्ष । रोहू । होते हैं । पेड़ी और डाल की छाल का रंग ऊपर कुछ सफेदी . विशेष-यह पूर्वी हिमालय और विशेषतः दारजिजिंग तथा लिए और भीतर ललाई लिए होता है। अश्वत्यवर्ग के 'पीर । आसाम में पाया जाता है। पेड़ों के समान इसके सूक्ष्म फूल भी अंतर्मुख अर्थात् एक कोश ... गूना-संघा पुं० [फा० गूनह =रंग] एक प्रकार का सुनहला रंग के भीतर बंद रहते हैं। पुं० पुष्प और ची पुष्प के अलग अलग जो सोने या पीतल से बनाया जाता है और सदूकों, शीणों कोश होते हैं । गर्भाधान कीड़ों की सहायता से होता है । पुं० : तथा धातु की अन्य वस्तुमों पर चढ़ाया जाता है। केसर की वृद्धि के साथ साथ एक प्रकार के कीड़ों की उत्पत्ति ... गूना --शा पुं० [हिं० मुना] दे० 'गुना' । उ०-दह गूना दल होती है जो पुं० पराग को गर्भकेसर में ले जाते हैं। यह साहि सज्जि चतुरंग सजी उर।--पृ० रा०,२७ । २६ । नहीं जाना जाता कि कीड़े किस प्रकार पराग से जाते हैं गूनागून -संक्षा ० [सं० गुण+अगुण ] अच्छे बुरे गुण । गुण पर यह निश्चय है कि ले अवश्य जाते हैं और उसी से गर्भाधान :: और अवगुण। होता है तथा कोश बढ़कर फल के रूप में होते हैं। यह गूप -वि० [हिं० गुप] दे० 'गुप्त' । उ---नाम नहीं यौ नाम सद मांसल और मुलायम होता है। इसके ऊपर कड़ा छिलका रूप नहीं सब रूप । सहजो सब कुछ ब्रहा है हरि परगट हरि नहीं होता, बहुत महीन झिल्ली होती है। फल को तोड़ने से । गूप :----सहजो०, पृ० ४६ । उसके भीतर गर्भकेसर और महीनं महीन धीज : दिखाई : गूमट---संज्ञा पुं० [हिं० गुम्मट] दे॰ 'गुम्मट'। ' पड़ते हैं तथा भुनगे या कीड़े भी मिलते हैं। गूलरं की छाया गूमठ@--संज्ञा पुं० [हिं० गुम्मट] दे० 'गुम्मट'। उ०-गूमठ में जब बहुत शीतल मानी जाती है। वैद्यक में गूलर शीतल, घाव. जाय लगो, मुराकवे नजरि में प्रावता है।-पलटू पृ०५११ को भरनेवाला, कफ, पित्त और अतीसार को दूर करनेवाला गूमड़ा-संघा पुं० [सं० गुल्म] बह गोल और कड़ी सूजन जो सिर या माना है। इसकी छाल स्त्री गर्भ को हितकारी, दुग्धवर्धक माथे पर चोट लगने से होती है। और वनाशक मानी जाती है। अंजीर यादि वट जाति गूमना-क्रि० स० [देशा०] १. गूधना। माड़ना। आटे की तरह के और फलों के समान इसका फल भी रेचक होता है। ___माँड़ना । २. कुचलना । रौंदना । ..पर्या-उदुघर। असमा। क्षीरी। खत्पनिका ।' कुठनी। गूमा-संज्ञा पुं० [सं० कुम्मा, मुम्भा] एक छोटा पौधा । राजिका । फल्गुवाटिका । अजीजा । फल्गुनी । मलयु। ... विशेष-इसकी गाँठ गाँठ पर गुच्छा सा होता है। इसी गुच्छे मुहा०--पूलर का कीड़ा-एक ही स्थान पर पड़ा रहनेवाला। . ' पर दो पत्ते निकलते हैं और सफेद फूल भी लगते हैं। यह . अनुभव प्राप्त करने के लिये घर या देश से बाहर न निकलने-.. पौषध के काम में आता हैं। इसे गूम और गूम भी कहते हैं। वाला । इधर उधर की कुछ खबर न रखनेवाला । कूपमंडूका ; पर्या-तोगा । द्रोणपुष्पी ! कुंभा। कुभयोनि । गूलर का फूल-वह जो कभी देखने में न पाये । दुर्लभ व्यक्ति गूरण-संवा पुं० [सं०] प्रयत्न । उद्योग फिो०] । गूरा-संवा पुं० [हिं० गुल्ला गुल्ला देला। या वस्तु । गूलर का फूल होना कभी देखने में न आना। दुर्लभ होना । गूलर का पेट फड़वाना गुप्त या दवी दवाई,