पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ३.pdf/२४९

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१३२६ . - वात प्रकट कराना। मंडा फोड़वाना । भेद खुलवाना ।. गृहाछीठी.-संवा स्त्री० [हिं० गृह+छोछो] १.अश्लील और गाली .. गूलर फोड़कर जीव उड़ाना=गुप्त भेद प्रकट करना । भरी कहा सुनी । बदनामी । २. अपवाद । कलंक । - मूलर-संभा पुं० दिश०] मेढक । दादुर! गृजन-संशा पुं॰ [सं० गृजन] १. गाजर । २. शलगम ! ३. लाल

गूलरकवाद-संवा पुं० [हिं० गूलर+फा० कबाब] एक प्रकार का लहसुन (फो०)। ४.गाँजा (को०)। ५.विपैले बाग से नारे
कवाव। .

हुए जानवर का मांस (को०)। - विशेष—यह उबल और पिसे हुए मांस के भीतर अदरक, पुदीना. गृडिव, गृडीव संचा पुं० [सं० पण्डिद, गृल्डीव एक प्रकार का - प्रादि भरकर भूनने से बनता है। . . . सियार जो । __ गुला-संज्ञा पुं० [हिं० गोला हुरा। छोर । उ०--ठंडाई के चढ़ते गृत्स' वि० [सं०] १. कुशल । दश। प्रवीण । २.विवेकी। विचा- .. हरे दशे में रामसिंह यांचे खोल मूद रहे थे कि जमींदार रक । ३. धूर्त । चालाक (को०] । - ... का सिपाही लट्ठ का बंधा गूला जमीन पर दे मारकर.रानसिंह गृ-स- संचा पुं० कामदेव [को०)। - के साधारण जमींदार को साथ लिए वोला।--काले०, पृ. २२। गृद्ध -संशा पं० [मं० गृत्र] दे० 'गृध्र' । उ०--चुचनि चुत्यै गुद्ध - गूल-संझा श्री० [देश॰] एक वृक्ष का नाम जिसे पुंड्रक भी कहते हैं। मांस जंबुक मिलि भच्छै । हम्मीर०, पृ० ५८ । - विशेष -इससे एक प्रकार का सफेद गोद निकलता है जिसे गृद्ध-वि० [मं०] १. चाहनेवाला । इच्छा करनेवाला। २. फिदा। पतीला या तीरा कहते हैं और जो पानी में नहीं घुलता। आसक्त (को०)। इस वृक्ष की छाल की रस्सियां बटी जाती हैं। जब यह वृक्ष गृधु-संज्ञा पुं० [सं०] कामदेव [को०। " दस वर्ष का हो जाता है तब इसे काट डालते हैं और डालियों गृधु-- वि० विषयी । कामी किो०] । .. को छांटकर तने के छह छह फुट के टुकड़े कर डालते हैं। गव'-.-वि० [सं०] खल । दुष्ट (को॰] । ... फिर छाल को उतारकर रस्सियों वटते हैं। पत्तियां अरि गव--संशा स्त्री. १. अपान वायु । २. समझ । बुद्धि (को०)। ... डालियाँ चारे और दवा के काम आती हैं। लकड़ी से खिलौने गृन्न-वि० [सं०] १. लालची । लोभी । २. उत्सुक । इच्छुक को०) । तथा सितार सारंगी आदि वाजे बनते हैं। कोई कोई जड़ी गृव्य -- संघा पुं० [मं०] १. इच्छा । २. लोभ [को०] । की तरकारी भी बनाते हैं या उन्हें गुड़ के साथ मिलाकर खाते गृध्य-वि०१. इच्छा के योग्य । चाहने योग्य । २. लोमनीय कोना हैं। यह उत्तरी भारत, मध्य भारत, दक्षिण तथा वर्मा के गृव्या-संज्ञा श्री [सं०] १. इच्छा 1 २.लोभ (को०] । ... 'सूखे जंगलों में होता है। पश्चिमी घाट के पहाड़ों पर यह गृव्या-वि० १.कामना योग्य । चाहने योग्य । २. लोभनीय क्रिो०] । ... बहुत मिलता है। गृध्र--संज्ञा पुं० [सं०] १. गिद्ध । गीध पक्षो। २. जटायु, संपःनि ग्रादि .. गूवार-मंशा पुं० [सं०] दे० 'गुवाक' । पौराणिक पक्षी। पणा--संग्रा पुं० [सं०] मोर की पूछ पर दना हा अर्धचंद्र चिह्न यौर-गृध्रकूट । गृध्रव्यूह । गृह-संज्ञा पुं० [सं०] गलीज । मल । मैला । विष्ठा । वीट । महाकाह उठाना--(१) पाखाना साफ करना। (२) तुच्छ गृध्रकूट-संधा ५० [सं०] राजगृह के निकट एक पर्वत का नाम । . स तुच्छ सेवा करना। बड़ी सेवा करना । गह की तरह गृध्रराज-संज्ञा पुं० [सं०] जटायु फिो०] । बचाना-वृणापूर्वक दूर रहना। जैसे-हम ऐसे यादमियों गृध्रव्यूह---संधा पुं० [सं०] सेना की एक प्रकार की रचना या स्थिति को गृह की तरह बचाते हैं। गृह की तरह छिपाना-निंदा जो गीध के आकार की होती थी। उ०---तब प्रद्युम्न तुरत ... और लज्जा के. भय से गुप्त रखना । गृह उछलना-कलंक प्रभु टेरा । मुत्रव्यूह विरचहु दल केरा। रघु राज (शब्द०)।

फैलना । निंदा होना। गृह उछालना=बदनामी कराना । मूह गृध्रसी संघा वी० [सं०] एक प्रकार का वातरोग।

करना=गंदा और मैला करना । गृह का चोय-भद्दा और विशेप-यह पहले कूल्हे से उठता है और धीरे धीरे नीचे को घिनौना (वस्तु या व्यक्ति) । गृह का टोकरा=बदनामी का उतरता हुआ दोनों पैरों को जकड़ लेता है। इसमें सुई चुमने टोकरा । कलंक का भार । गृह खाना=बहुत अनुत्रित और की ती पीड़ा होती है, पैर कांपते हैं और रोगी बहुत धीरे प्रप्ट कार्य करना। गृह गोड़ते फिरना-अगम्या स्त्रियों से चलता है, तेज नहीं चल सकता । गमन करवे फिरना । नह यापना-पागलपन के काम करना। गृध्राण-वि० [सं०] १. गृध्र जैसा (लोम में)। २. उत्कट भाव से होश में न रहना । गृह में ढेला फेंकना=बुरे ग्रादमी से छेड़छाड़ चाहनेवाला कि० । करना । (बच्चों और रोगियों का) गृह मूत करना=मलमूत्र निका- सदा खी० [सं०] गिद्धों की ग्रादि माता जोक करना । मुह में गृह देना=बहत धिक्कारना । किसी को ठी छो कहना। . ___ताना की पुत्री थी [को०।

गृहन-संशा पं० [सं०] छिपाना । छिपाय (को० ॥

गृध्री-संज्ञा स्त्री० [मं०] मादा गिद्ध कोका ! . गृहजिनी--संघा सी० [हिं० गुहाजनी] दे० 'गुहाँजनी' । गृभ--संज्ञा पुं० [सं०] घर । गृह [को०] ।